पर्सनल इनकम टैक्स में कुछ कमी और धारा 80-सी और पीपीएफ के तहत निवेश की सीमा बढ़ाकर बचत को प्रोत्साहन देने से जेटली ने उपभोक्ताओं की जेब ढीली करने में मदद दी है. उपभोक्ता सामान पर उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क में कमी और छूट से भी मांग पैदा होगी. हालांकि यह कदम मजबूत कराधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.

News Par Views: देखिए Bikaji Foods International मैनेजमेंट से अनिल सिंघवी की खास बातचीत

कल खुलेगा Bikaji फूड्स इंटरनेशनल का IPO. Bikaji फूड्स का क्या है फ्यूचर प्लान? कैसा है बिजनेस मॉडल? कहां होगा IPO से जुटाई रकम का इस्तेमाल? देखिए Bikaji फूड्स इंटरनेशनल मैनेजमेंट से अनिल सिंघवी की खास बातचीत.

शेयरों में निवेश मिटाए महंगाई की मार

सारी दुनिया में इस समय महंगाई विकट समस्या बन गई है। सितंबर में अपने यहां थोक मुद्रास्फीति की दर 10.70% और रिटेल मुद्रास्फीति की दर 7.41% रही है। इसी दौरान अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 8.2%, यूरो ज़ोन में 9.9% और ब्रिटेन में 10.1% रही है। वहां यह दो-चार साल नहीं, करीब चार दशकों का उच्चतम स्तर है। बड़े-बड़े देशों की मुद्राएं भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरती जा रही हैं। अपना रुपया भी इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 12% गिर चुका है। ब्याज दर बढ़ रही है तो पूंजी की लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे में निवेशक के सामने दोहरी चुनौती है पुराने निवेश पोर्टफोलियो को छीझने से बचाना और ऐसा निवेश पकड़ना जिसमें बढ़ने की पूरी संभावना हो। इस चुनौती के सामने तथास्तु में आज की कंपनी…

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निवेश – तथास्तु

ज्यों-ज्यों निफ्टी 20,000 अंक के करीब पहुंचता जा रहा है, बाज़ार में उन्माद बढ़ता जा रहा है। लेकिन किसी भी किस्म का उन्माद समझदारी को धुंधला कर देता है और हम बहक कर गलत फैसले ले सकते हैं। इसलिए उन्माद में भी हमें संतुलित रहना चाहिए। वहीं, अगर मान लीजिए कि निफ्टी 20,000 का स्तर छूने से पहले ही फिसलकर गिर गया या लम्बे तक सीमित रेंज में भटकता रहे, तब भी हमें न तो हताश होना […]

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टाटा ग्रुप की इस कंपनी ने एक साल में 1 लाख रुपये को बना दिया 10 लाख

करीब 15 दिन पहले अपने निवेशकों को कंगाल करने वाले टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज लि. (टीटीएमएल) के शेयर पर खरीदारी का चटख रंग चढ़ा हुआ है। केवल 9 सत्रों में ही टीटीएमएल के शेयरों ने करीब.

टाटा ग्रुप की इस कंपनी ने एक साल में 1 लाख रुपये को बना दिया 10 लाख

करीब 15 दिन पहले अपने निवेशकों को कंगाल करने वाले टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज लि. (टीटीएमएल) के शेयर पर खरीदारी का चटख रंग चढ़ा हुआ है। केवल 9 सत्रों में ही टीटीएमएल के शेयरों ने करीब 44 रुपये प्रति शेयर का मुनाफा दिया है। आठ मार्च को यह स्टॉक 93.40 रुपये पर आ गया था और आज अपर सर्किट के साथ एनएसई पर 137.95 रुपये पर है। एक साल में इसने 903.27% रिटर्न दिया है। एक साल पहले जिसने भी एक लाख रुपये इसमें लगाए होंगे, उसका एक लाख 10 लाख 3000 रुपये हो गया होगा। क्योंकि एक साल पहले इसकी कीमत 13.75 रुपये थी।

यह स्टॉक 290.15 रुपये से 93.40 रुपये तक लुढ़कने के बाद पिछले 9 सत्रों से लगातार अपर सर्किट के साथ कारोबार कर रहा है। बता दें पिछले दिनों टीटीएमएल के शेयर निवेशकों को लगातार कंगाल कर रहे थे। इसके खरीदार नहीं मिल रहे थे और आज कोई बेचने को तैयार नहीं है। सोमवार को भी टीटीएमएल का शेयर 5 फीसद के अपर सर्किट के साथ 137.95 रुपये पर पहुंच गया। इसका 52 हफ्ते का लो 10.45 रुपये है।

इस टेलीकॉम कंपनी के शेयर ने पिछले 9 दिनों में छप्परफाड़ रिटर्न दिया है। अगर पिछले 6 महीने की बात करें तो इसके हर शेयर पर 94.25 रुपये का मुनाफा यानी 253.70 फीसद का रिटर्न दिया है। इधर लगातार अपर सर्किट लगने से पिछले 1 महीने में इस शेयर ने अपने निवेशकों को होने वाले नुकसान की भरपाई कर दी है। अब 0.44 फीसद के साथ बढ़त पर है। अगर इस साल की बात करें तो यह अबतक 903.27% फीसद छलांग लगा चुका है। हालांकि एक साल पहले जिसने भी इसमें पैसा लगाकर रखा है, वह अभी 903.27% फीसद के मुनाफे में है। 22 मार्च 2021 को टीटीएमएल के शेयर का मूल्य 13.75 रुपये का था और आज 137.90 रुपये है।

बता दें टाटा टेलीसर्विसेज लि. (टीटीएमएल) ने समयोजित सकल राजस्व (एजीआर) बकाये से संबंधित ब्याज को इक्विटी में बदलने के निर्णय के बाद यह स्टॉक बुरी तरह गिरा। इसके बाद कंपनी ने अपने इस निर्णय को रद्द कर दिया तो शेयर कुछ दिन उछला, लेकिन कंपनी को दिसंबर 2021 को समाप्त तीसरी तिमाही में 302 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा होने की खबर आने के बाद से ही इसमें हर रोज लोअर सर्किट लगने लगा। एक साल पहले की तिमाही में 298 करोड़ का नुकसान हुआ था। बता दें 11 जनवरी को टीटीएमएल का शेयर अपने ऑल टाइम हाई 290.15 रुपये पर बंद हुआ था।

क्या करती है टीटीएमएल?

बता दें टीटीएमएल, टाटा टेलीसर्विसेज की सब्सिडियरी कंपनी है। यह कंपनी अपने सेगमेंट में मार्केट लीडर है। कंपनी वॉइस, डेटा सर्विसेज देती है। कंपनी के ग्राहकों की लिस्ट में कई बड़े नाम है। मार्केट एक्सपर्ट्स के मुताबिक बीते महीने कंपनी ने स्मार्ट इंटरनेट बेस्ड सर्विस कंपनियों के लिए शुरू की है। इसे जबरदस्त रिस्पॉन्स मिल रहा है, क्योंकि इसमें कंपनियों को फास्ट इंटरनेट के साथ क्लाउड बेस्ड सिक्योरिटी सर्विसेज और ऑप्टोमाइज्ड कंट्रोल मिल रहा है। इसकी सबसे बड़ी खासियत क्लाउड आधारित सिक्योरिटी है जिससे डेटा को सुरक्षित रखा जा सकेगा। जो बिजनेस डिजिटल आधार पर चल रहे हैं, उन्हें इस लीज लाइन से बहुत मदद मिलेगी। इसमें हर तरह के साइबर फ्रॉड से सुरक्षा का इंतजाम इन-बिल्ट किया गया है, साथ में फास्ट इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है।

(डिस्‍क्‍लेमर: यहां सिर्फ शेयर के परफॉर्मेंस की जानकारी दी गई है. यह निवेश की सलाह नहीं है। शेयर बाजार में निवेश जोखिमों के अधीन है और निवेश से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)

दीपावली की उमंग पर महंगाई की मार, सुना पड़ा बाजार

दीपावली की उमंग पर महंगाई की मार, सुना पड़ा बाजार

जमुई। रोशनी के पर्व दीपावली में अब सिर्फ एक सप्ताह का समय बचा है। बावजूद इसके बाजार में रौनक नहीं हैं। दुकानदार दीपावली पर बंपर शेयरों में निवेश मिटाए महंगाई की मार सेल की उम्मीद कर रहे है। धनतेरस को लेकर बाजारों में बर्तन वाहनों के शो रूम सजावटी सामान मिठाई की दुकान कपड़ों के दुकान ज्वेलरी के दुकान से लेकर मिट्टी के दीये खिलौने आदि के दुकान सज गए हैं।

जमुई। रोशनी के पर्व दीपावली में अब सिर्फ एक सप्ताह का समय बचा है। बावजूद इसके बाजार में रौनक नहीं हैं। दुकानदार दीपावली पर बंपर सेल की उम्मीद कर रहे है। धनतेरस को लेकर बाजारों में बर्तन, वाहनों के शो रूम, सजावटी सामान, मिठाई की दुकान, कपड़ों के दुकान, ज्वेलरी के दुकान से लेकर मिट्टी के दीये, खिलौने आदि के दुकान सज गए हैं। लेकिन बाजार में सन्नाटा छाया है। शहर के महाराजगंज बाजार, पुरानी बाजार, महिसौडी चौक, बाजार चौक में सजावटी सामान बेचने वाले दुकानदारों ने बताया कि वे सीजन और फेस्टिवल के हिसाब से बिजनेस करते हैं। पिछले साल कोरोना का डर था। मार्केट में खरीदार नहीं आ रहे थे। इस बार कोविड-19 का खौफ निकल गया है। बाजार में भीड़ तो है, मगर उस हिसाब से सेल नहीं हैं। दीपावली निकल गई और सामान नहीं बिका, तो फिर सालभर इंतजार करना पड़ेगा। पहले कोरोना संक्रमण और लाकडाउन ने आमदनी पर रोक लगाई, अब महंगाई का संक्रमण मुंह व पाकेट पर रोक लगा रहा है।

बायपास रोड मलयपुर में ट्रक में पीछे से घुसा स्विफ्ट डिजायर कार

दुकानदारों ने बताया कि इस बार सजावट के लिए बाजार में कुछ खास नया आइटम नहीं आया है। दरवाजे पर लगाने वाली बनावटी फूलों की झालर पिछले साल 100 रुपये में उपलब्ध थी, इस साल वो 200 रुपये में मिल रही है। आर्टिफिशियल फ्लावर बंच (बनावटी फूलों का गुलदस्ता) की कीमत भी 150 से बढ़कर 200-250 तक पहुंच गई है। लाइटिग के आइटम के दामों में भी इजाफा हुआ है। एलईडी लाइट पिछले साल 250 में रुपये उपलब्ध थे। इस साल वो 320 रुपये में मिल रहा है। कैंडल लाइट पिछले साल 200 रुपये में इस साल 300 रुपये में मिल रहा है।

जरूरी और साधारण वस्तु की कीमत में भी उछाल

घरेलू साज-सज्जा की सामान के दामों में भी इजाफा हुआ है। बंदनवार, मोमबत्ती, चाइनीज कैंडल, शुभ दीपावली बैनर, फ्लोटिग कैंडल, सेंटेड कैंडल, लक्ष्मीजी के पदचिन्ह, दीवारों और छतों की लटकन, फैंसी पर्दे आदि के कीमत में उछाल आया है। दुकानदार ने बताया कि पिछले साल मोमबत्ती 50 रुपये में 50 पीस बेचते थे। इस बार इसका रेट 70 रुपये में 30 पीस हो गया है। ग्राहक छह पैकेट की जरूरत पर तीन पैकेट की ही खरीदारी कर रहे हैं। हर आइटम पर 30 से 40 प्रतिशत का रेट बढ़ गया है। बंदनवार 150 से 1200 रुपये प्रति पीस, फैंसी कैंडल 20 से 500 रुपये प्रति पीस, दीये 8 से 25 रुपये प्रति पीस, लटकन 150 से 1000 रुपये प्रति पीस, लक्ष्मी के चरण 10 से 150 रुपये प्रति पीस, फैंसी पर्दे 350 से 400 रुपये प्रति पीस, शुभ दीपावली बैनर 40 से 250 रुपये प्रति पीस बिक रहा है।

दीपावली को ले बाजारों में सजी दुकानें

दीपावली को लेकर मिट्टी के दीपकों, बर्तनों व घर की सजावट के लिए कृत्रिम फूलों की लडियों, तोरण और इलेक्ट्रानिक आइटम में झालर आदि की दुकाने सज गई है। मिठाई की दुकानें भी सजी दिख रही है। सोना, चांदी की दुकानदारों ने भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इस बार कई तरह की उपहार योजना चला रहे हैं। दीपावली से पहले ज्वेलरी दुकानों में सोने के कंगन, हार, चैन, झुमका, अंगूठी सहित विभिन्न वेरायटी के आभूषण उपलब्ध हैं। इसी तरह चांदी के सिक्कों के अलावा पायल, बिछिया, लक्ष्मी गणेश प्रतिमा, श्रीयंत्र वेरायटी हालमार्क के साथ उपलब्ध है। इसके अलावा चांदी में लक्ष्मी गणेश प्रतिमा की भी मांग है। दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक की दुकानों पर टीवी, फ्रिज, कूलर, एसी, डीवीडी, मिक्सर ग्राइंडर आदि उपलब्ध हैं। वहीं आटोमोबाइल, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि के दुकानें सजी है।

आटोमोबाइल पर भी दिख रहा है महंगाई की मार

विजया आटो के प्रोपराइटर संजय प्रसाद ने बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष धनतेरस में बिक्री ठंडी पड़ रही है। यामाहा शोरूम के मालिक सौरभ कुमार ने बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार धनतेरस में ऐसी स्थिति नहीं देखी जा रही है। बालाजी आटोमोबाइल के डीलर शशि शंकर सिंह ने बताया कि धनतेरस पर गाड़ियों की बुकिग बहुत कम हो रही है।

महंगाई के कारण घरों को सजाना ख्वाब जैसा प्रतीत हो रहा है। बच्चों का मन रखने के लिए थोड़ी-बहुत खरीदारी कर संतोष कर लेंगे।

खाद्य मूल्यों में वृद्धि से घर खर्च जलाना मुश्किल हो गया है। आवश्यक वस्तु में शामिल सरसों तेल, घी, रिफाइंड सहित रोजमर्रा की चीजों का दाम आसमान छू रहा है। हम मध्यमवर्गीय परिवार की माली हालत खस्ता है। बाजार में चारों ओर रंग-बिरंगी लाइट जली है। इसे देखकर ही संतोष कर लेंगे। इस महंगाई में किसी प्रकार त्योहार खुशी पूर्वक निकल जाए यह काफी है।

बढ़ती महंगाई ने हम गरीबों की कमर तोड़ दी है। त्योहार मनाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। रसोई गैस, दाल, दूध के दाम पहले ही आसमान को छू रहे थे। अब हरी सब्जी ने तो नाक में दम कर दिया है। महंगाई इस दौर में गुजर बसर और बच्चों को शिक्षा दिलाना गंभीर चुनौती है। ऐसे में खरीदारी करना मुश्किल है। बाजार में कुछ सस्ता चीज ढूंढ रहे हैं।

पहले कोरोना ने काम धंधा प्रभावित किया अब बढ़ती महंगाई ने परेशान कर दिया है। हर चीज का दाम आसमान छू रहा है। रसोई का बजट गड़बड़ाने लगा है। आमदनी सीमित है लेकिन महंगाई दिन पर दिन बढ़ रही है। खाद्य पदार्थों के दाम लगभग दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं। हर चीज के दाम बढ़ने से त्योहार मनाने को लेकर भी सोचना पड़ रहा है।

न तो खरा और न ही खोटा है अरुण जेटली का पहला बजट

वित्तमंत्री अरुण जेटली के पहले बजट पर यूपीए की नीतियों का साया है और यह सही दिशा में है. लेकिन जेटली और मोदी सरकार के लिए असली परीक्षा आने वाले महीनों में इसके प्रस्तावों पर अमल करने की है. तभी पहले बजट से उत्पन्न निराशा दूर होगी. जानिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कैसे सहायक है यह बजट.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 जुलाई 2014,
  • (अपडेटेड 21 जुलाई 2014, 12:36 PM IST)

इसका संबंध कुछ हद तक नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक जीत से हो सकता है. इसकी एक वजह भी हो सकती है कि वे किसी भी कीमत पर यूपीए के हर निशान को मिटा देने को बेताब हैं या फिर इससे अधिक दिलेर रेल बजट पेश किया जा चुका है और केंद्रीय बजट से पहले पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में नई सरकार की सोच साफ झलकती है.

सही वजह जो भी हो, लेकिन अधिकतर लोग 10 जुलाई को वित्त मंत्री अरुण जेटली से ऐसे जानदार बजट की उम्मीद कर रहे थे जो रातोरात भारत को अच्छे दिनों में पहुंचा देता.

अपेक्षाओं के दबाव में भावनाएं कदमों को पीछे छोड़ रही थीं. जनवरी से शुरू होकर मोदी सरकार के शपथ लेने से पहले ही बीएसई सेंसेक्स 14 प्रतिशत उड़ान भर चुका था. कंसल्टेंसी कंपनियों ने इस उम्मीद में नए कर्मचारियों को नौकरी पर बुलाने की तारीखें पहले कर ली थीं कि नया निवेश जल्द आने लगेगा. कारोबारी सर्वेक्षण जुलाई की तिमाही से नौकरियों और निवेश में तेजी के संकेत दे रहे थे.

जेटली के बजट ने कम से कम पहली नजर में तो निराश ही किया है. सरकारी सहायता की बजाए विकास पर जोर कहां है? पात्रता की बजाए सशक्तिकरण के उपाय कहां है? बजट कहां यह कहता है कि हम बड़ी-बड़ी योजनाओं से बड़े पैमाने पर अमल की तरफ बढ़ रहे हैं? ये सुबूत कहां हैं कि सरकार तब तक भोजन या काम जैसे और अधिकारों के वादे नहीं करेगी जब तक इन अधिकारों की पूर्ति के कत्र्तव्य का पालन करने में सक्षम नहीं होगी?

यह बात सही है कि बजट में ऐसा कोई संकल्प नहीं है. लेकिन क्या ऐसा होना चाहिए था? यह बजट अपनी सही तारीख के चार महीने बाद आया है जिसका अर्थ यह हुआ कि खर्च या कमाई के आंकड़ों में कोई बुनियादी बदलाव करना चलती कार के इंजन को बदलने के समान होता. अगर वित्त मंत्री अपने पिछले वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के तय खर्च और आमदनी को नहीं बदल सकते थे तो बड़े सुधारों की घोषणा उतनी ही शेयरों में निवेश मिटाए महंगाई की मार बेमानी थी जितना कि 56 इंच का सीना दिखाकर बहादुरी का दावा करना था.

मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अशोक लाहिड़ी का कहना है, “बजट में वही किया गया जो किया जा सकता है. इच्छाएं तो अपार हैं.” कई बार अधकचरी शुरुआत कर चुकी अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण फिर दिख रहे हैं. ऐसी स्थिति में चार बातें बेहद जरूरी हैः
-उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी सुनिश्चत करानी होगी ताकि उत्पादक सुरक्षित ढंग से निवेश कर सकें.
-बेकाबू दिखने वाली महंगाई पर लगाम लगानी होगी ताकि ब्याज दरें कम हों और भारतीय कंपनियों के सिर पर टंगी कर्ज की तलवार थोड़ी हटें.
-सरकार को अपने साधनों के भीतर रहना होगा और बेहिसाब कर्ज लेकर भविष्य की चोरी रोकनी होगी.
-विदेशी निवेश में उदारता और निजीकरण के लिए राजनैतिक संकल्प दिखाना होगा.शेयरों में निवेश मिटाए महंगाई की मार

बजट 2014


पर्सनल इनकम टैक्स में कुछ कमी और धारा 80-सी और पीपीएफ के तहत निवेश की सीमा बढ़ाकर बचत को प्रोत्साहन देने से जेटली ने उपभोक्ताओं की जेब ढीली करने में मदद दी है. उपभोक्ता शेयरों में निवेश मिटाए महंगाई की मार सामान पर उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क में कमी और छूट से भी मांग पैदा होगी. हालांकि यह कदम मजबूत कराधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.

महंगाई पर लगाम, कम से कम खाद्यान्नों से जुड़ी महंगाई पर लगाम बजट का उपाय नहीं है. कृषि उपज के लिए साझ राष्ट्रीय बाजार बनाने का संकल्प मददगार तो होगा लेकिन निकट भविष्य में नहीं. वित्त मंत्री को राजकोष की सेहत ठीक रखनी होगी और वे ऐसा कर सकते हैं. इस मामले में जेटली ने आधा सफर तय कर लिया है. उन्होंने खर्च को एक हद तक काबू में रखा है और 2014-15 में टैक्स से कमाई में 18 प्रतिशत उछाल पाने के लिए अर्थव्यवस्था के उबरने का इंतजार कर रहे हैं. 2013-14 में टैक्स राजस्व में वृद्धि 11 प्रतिशत रह गई थी जबकि उससे पिछले साल यह 16 प्रतिशत थी.

बजट 2014 ने अब तक का सबसे बड़ा विनिवेश लक्ष्य रखा गया है. एनडीए सरकार अगले आठ महीने में सरकारी कंपनियों के 63,000 करोड़ रु. मूल्य के शेयर बेचना चाहती है. एक साल में सबसे ज्यादा 23,956 करोड़ रु. का विनिवेश 2012-13 में हुआ था. बाजार आसमान छू रहा है. इसलिए सरकार इस रकम को दोगुणा कर सकती है और लक्ष्य से ज्यादा भी पा सकती है.

प्रत्येक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) लंबे समय से संसद में उलझ्ता रहा है. बीमा क्षेत्र में एफ डीआइ 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने का प्रस्ताव असल में पहली बार 2007-08 के बजट भाषण में सुनाई दिया था. लेकिन अब तक एफडीआइ बढ़ाने की सारी कोशिशें गठबंधन सरकारों के दबाव में रही हैं. लोकसभा में बीजेपी के बहुमत के दम पर जेटली अपने प्रस्ताव को मंजूरी दिला सकते हैं.

यह बात सही है कि अब तक बजट भाषणों में बड़े-बड़े नीतिगत बयान दिए गए हैं लेकिन जेटली ने इससे परहेज किया है. इसकी बजाए उनका कहना था, “नई सरकार बनने के 45 दिन के भीतर पेश पहले बजट में उस सबकी उम्मीद करना समझदारी नहीं है जो किया जा सकता था या किया ही जाना चाहिए.” स्मार्ट सिटी बसाने, गंगा साफ करने, कौशल बढ़ाने और खर्च आयोग के गठन जैसे कुछ कदम हैं लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में इससे कहीं दिलेर और बड़े संकल्प किए गए थे. उसमें श्रम सुधारों, कड़े राजकोषीय दायित्व कानून , उत्पादकता आयोग के गठन और मूल्य आधारित सब्सिडी की जगह आय समर्थन जैसी बातें की गई थीं.

अरुण जेटली और मोदी सरकार के लिए असली परीक्षा आने वाले महीनों में इन प्रस्तावों पर अमल करने की है. ऐसा करने से न सिर्फ पहले बजट से उत्पन्न निराशा दूर होगी और यह गलतफहमी भी दूर हो जाएगी कि सालाना बजट सिर्फ नीतिगत सुधार का औजार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशासन शैली को देखते हुए यह आसमान से तारे तोडऩे जैसी अपेक्षा नहीं है.

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