Rupee Record Low: डॉलर के मुकाबले रसातल में जा रहा है रुपया ! कारण क्या हैं और आप पर कैसे असर पड़ेगा ?

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले हमारा रुपया गिरावट के रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है. फिलहाल रुपया अपने पूरे जीवनकाल में सबसे नीचे के स्तर पर पहुंच गया है. आखिर इसकी वजहें क्या हैं और हम पर इसका क्या असर पड़ेगा?

अमेरिकी डॉलर (U.S. Dollar) के मुकाबले हमारा रूपया गिरावट के रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है. शुक्रवार को भी एक डॉलर के मुकाबले रुपया (rupee against dollar) 79.88 के वैल्यू पर रहा. दूसरे शब्दों में कहें तो बीते 5 दिनों से एक डॉलर मोटा-माटी 80 रुपये के आस-पास बना हुआ है जो रूपये के पूरे जीवनकाल में सबसे ज्यादा है. रुपये के रसातल में डाने का असर ये हो रहा है कि जनता को महंगाई की मार (Effect of inflation) झेलनी पड़ रही है. होमलोन या कारलोन तो छोड़िए किचन से लेकर बच्चों की फीस तक पर इसका असर पड़ रहा है. आइए जानते हैं इसकी क्या वजहें, क्या असर पड़ रहा और क्या ऐसी स्थिति में भी हमारे लिए खुश होने की वजह है क्या?

रुपए में ऐतिहासिक गिरावट, पहली बार डॉलर के मुकाबले 83 के नीचे फिसली इंडियन करेंसी

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Rupee at Record Low: डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में गिरावट का दौर लगातार जारी है। आज डॉलर के मुकाबले रुपए में एतिहासिक गिरावट दर्ज की गई। पहली बार रुपया डॉलर के मुकाबले 83 के नीचे फिसल गया। जानकारों के अनुसार रुपए में आई गिरावट के पीछे अमरीका के बॉन्ड रेट में बढ़ोतरी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। बुधवार को करेंसी बाजार के बंद होने पर रुपया 66 पैसे यानि 0.8 फीसदी की गिरावट के साथ 83.02 रुपये पर बंद हुआ। यह डॉलर के मुकाबले रुपए का सबसे निम्म स्तर है।

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विदेशी मुद्रा की दरें जानें

देश अपनी जरुरत का 80 फीसदी से ज्यादा तेल आयात करता है. वर्ष 2017-18 में देश ने 22.043 करोड़ टन कच्चा तेल आयात किया. इस पर 87.7 अरब डॉलर (5.65 लाख करोड़ रुपये) खर्च हुए. वित्त वर्ष 2018-19 में 22.7 करोड़ टन कच्चा तेल आयात होने की संभावना है.

एक सरकारी अधिकारी ने जानकारी दी कि चालू वित्त वर्ष की शुरुआत में हमें कच्चा तेल आयात बिल 108 अरब डॉलर यानी 7.02 लाख करोड़ रुपये रहने की उम्मीद थी. यह आकलन हमने कच्चा तेल की 65 डॉलर प्रति बैरल की कीमत और 65 रुपये प्रति डालर की मुद्रा विनियम दर पर किया था. लेकिन अब इसके ज्यादा रहने की उम्मीद है.

14 अगस्त तक रुपये की विनिमय दर का औसत 67.6 रुपये प्रति डॉलर रहा है. यदि वित्त वर्ष की बची अवधि में रुपया 70 के स्तर पर रहता है तो तेल आयात बिल 114 अरब डॉलर पर पहुंच जाने की संभावना है.

रुपया एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन मुद्राओं में से एक रहा है. इस वर्ष इसमें 8.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. जुलाई में व्यापार घाटी या निर्यात और आयात के बीच का अंतर 18 अरब डॉलर तक बढ़ गया, जो कि पांच साल में सबसे ज्यादा है. व्यापार घाटा चालू खाता घाटे (सीएडी) पर दबाव डालता है, जो अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण कड़ी है.

रुपये में गिरावट के परिणामस्वरूप घरेलू निर्यातकों के साथ-साथ तेल और प्राकृतिक गैस कॉर्प (ओएनजीसी) जैसे घरेलू तेल उत्पादकों की कमाई बढ़ती है.

जानिए क्यों है ये चिंता का कारण? भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घट रहा

भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार आठ जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में 8.062 अरब डॉलर घटकर 15 महीनों के सबसे निचले स्तर 580.252 अरब डॉलर पर आ गया है। आरबीआई की ओर से जारी साप्ताहिक आंकड़ों से पता चलता है कि फॉरेन करेंसी असेट्स (एफसीए) में गिरावट के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। एफसीए, स्वर्ण भंडार और पूरे विदेशी मुद्रा भंडार का प्रमुख हिस्सा है।

बीते हफ्ते में एफसीए 6.656 अरब डॉलर घटकर 518.09 अरब डॉलर रह गया है। एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर अमेरिकी करेंसी का बढ़ना या गिराना दोनों का असर शामिल है। वहीं इस दौरान सोने का भंडार 1.236 अरब डॉलर गिरकर 39.186 अरब डॉलर पर आ गया है। वहीं बीते हफ्ते में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ स्पेशल ड्राइंग राइट्स (SDR) 122 मिलियन डॉलर घटकर 18.012 बिलियन डॉलर रह गया है।

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक आठ जुलाई को समाप्त हफ्ते के दौरान देश की आईएमएफ की रिजर्व पोजिशन 49 मिलियन डॉलर घटकर 4.966 बिलियन डॉलर रह गई है। एक जुलाई को समाप्त हफ्ते के दौरान यह भंडार 5.008 अरब डॉलर कम होकर 588.314 अरब डॉलर हो गया था। विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट ऐसे समय में दर्ज की गई है जब भारतीय रुपया कमजोर होकर अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपया फिलहाल फिसलते हुए डॉलर के मुकाबले लगभग 80 रुपये प्रति डॉलर के पास पहुंच गया है।

देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की खबरों के बाद यह जान लेना अहम हो जाता है कि आखिर यह विदेशी मुद्रा भंडार है क्या? अगर विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है रही तो इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ने वाला है? दरअसल, भारत की बात करें तो हमारे देश का विदेशी मुद्रा भंडार केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास रखी गई धनराशि और परिसंपत्तियां हैं। इनमें विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां (FCA), स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (SDR) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिजर्व ट्रेंच शामिल होती हैं। अगर देश को जरूरत होती है तो वह विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल कर अपने विदेशी ऋण का भुगतान कर सकता है।

देश में विदेशी मुद्रा भंडार के कम होने का असर सबसे पहला असर रुपये की मजबूती पर पड़ता है, जैसे-जैसे विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगता है रुपये की डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है कीमत कम होती जाती है। हमने हाल के दिनों में देखा है कि रुपये की कीमत लगातार गिरती जा रही है। शुक्रवार को भारतीय रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरकर 79.72 रुपये प्रति डॉलर रह गई है।

आपको बता दें कि देश में जैसे-जैसे रुपये की कीमत कम होती जाती है देश का आयात मूल्य बढ़ने लगता है और निर्यात मूल्य घटने लगता है। ऐसी स्थिति में देश का व्यापार घाटा बढ़ने लगता डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है है। हमारा देश बीते कुछ महीनों से इस स्थिति का सामना कर रहा है। बीते जून महीने में व्यापार घाटा बढ़कर अब तक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचकर 25.6 अरब डॉलर हो गया है।

व्यापार घाटा को कम करने की कवायद के तहत ही रिजर्व बैंक ने बीते सोमवार (11 जुलाई) को विदेश व्यापार रुपये डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है में करने की भी सुविधा दे दी है। इसका इस्तेमाल कर वर्तमान परिस्थितियों में रूस और श्रीलंका जैसे देशों के साथ व्यापार किया जा सकता है, जिससे रुपये को थोड़ी राहत मिल सकती है। आपको बता दें कि भारत सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात करता है और रूस तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। अगर दोनों देशों के बीच रुपये में कारोबार शुरू होता है तो इससे रुपये को मजबूत बनाने में काफी मदद मिलेगी।

देश में जैसे-जैसे विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ता है रुपया मजबूत होता जाता है। इससे देश आर्थिक रूप से समृद्ध होता जाता और रुपये की कीमत में स्थिरता बनी रहती है। विदेशी रुपया भंडार बढ़ने से रुपये में आई मजबूती का फायदा विदेशों में निवेश करने वाले कारोबारियों पर भी पड़ता है। ऐसा होने से उन्हें अपनी मुद्रा का कम से कम निवेश करना पड़ता है।

Dollar vs Rupee: अभी और कितना गिरेगा रुपया, 39 सालों से गिरता आ रहा है

Dollar vs Rupee: 1983 में 10 के स्तर पर पहुंचा रुपया , 1991 में 20 के फिर 2022 में 80 के स्तर को पार कर गया.

Dollar vs Rupee: अभी और कितना गिरेगा रुपया, 39 सालों से गिरता आ रहा है

डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया (Rupee) 80 के स्तर पर आ गया है, जो इसका अबतक का निचला स्तर है. पिछले हफ्तों के आंकड़ों को देखे तो रुपया हर दिन अपने निचले स्तर को छू रहा है. ब्लूमबर्ग इकनॉमिक्स के अनुसार अगले कुछ महीनों तक रुपया 79 से लेकर 81 के बीच रह सकता है.

क्यों गिर रहा है रुपया?

बेसिक इकनॉमिक्स के मुताबिक रुपये का स्तर डिमांड-सप्लाय के मुताबिक बदलता है. अगर डॉलर की डिमांड रुपये के मुकाबले ज्यादा होगी तो रुपया गिरेगा.

अर्थव्यवस्था पर पड़ी कोरोना महामारी की मार के बाद रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया जिसके बाद सप्लाई चेन में आई बाधाओं ने समस्या बढ़ा दी. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ते कच्चे तेल की कीमत बड़ी वजह है. यही नहीं जैसे-जैसे विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा बाहर निकाल रहे हैं तो इसका दबाव रुपये पर पड़ रहा है, इसकी वजह से डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है.

मई में रुपया लगभग 1.6 प्रतिशत गिर गया, उभरती हुई एशिया की कई करेंसी में से यह बड़ी गिरावट है.

रुपये पर दबाव बढ़ता रहेगा क्योंकि तेल की कीमतें फिर से बढ़ रही हैं और साथ ही फेड ब्याज दर में वृद्धि लगातार कर रही है. कच्चे तेल की कीमतों में तेजी, विदेशों में मजबूत डॉलर और शेयर बाजार से विदेशी निवेश का लगातार बाहर आना रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण हैं.

क्विंट से बातचीत में रोहित अरोड़ा बताते हैं कि, महंगाई अपने उच्च स्तर पर है, चीन में लंबे समय तक कोरोना लॉकडाउन है, प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने अपनी नीति में कड़ा रुख अख्तियार किया है और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाय चेन में बाधा है. इन सब का भी रुपये पर असर दिखेगा. डॉलर के मुकाबले रुपया इस साल अब तक 7.5% से अधिक गिरा है.

वो आगे कहते हैं कि "हमें लगता है कि रुपये की गिरावट अभी और जारी रहेगी और जल्द ही 80 के आंकड़ें को भी रुपया पार करेगा."

रोहित कहते हैं कि, वैसे तो बड़ी तस्वीर को देखते हुए हालिया गिरावट के बावजूद भारतीय रुपया एशिया की बाकी करेंसी के मुकाबले सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. डीबीएस द्वारा 17 जून तक के विश्लेषण के अनुसार रुपया उन 19 करेंसी में से सातवां सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली करेंसी रहा. क्योंकि कई करेंसी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बेहद कमजोर हो गई हैं.

उन्होंने कहा कि FII यानी विदेशी निवेश अक्टूबर 2021 से लेकर अब तक लगभग 3 लाख करोड़ तक निकाला जा चुका है. अब जब सप्लाई चेन बेहतर होगी और महंगाई नीचे आएगी तभी रुपये का गिरना थम सकता है. हालांकि केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप कर रुपये को आगे और गिरने से रोक सकता है.

बीबीसी से बातचीत में आर्थिक विश्लेषक आलोक जोशी ने कहा कि, ''कमजोर रुपया एक्सपोर्ट के लिए अच्छा है. ये कहना ज्यादा अच्छा रहेगा कि रुपये की कमजोरी के बजाय डॉलर की मजबूती बढ़ रही है. दरअसल यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर लिक्वडिटी को सोखने का नतीजा है.''

साथ ही वे कहते हैं कि रुपये को सरकारी हस्तक्षेप कर मजबूत किया जा सकता है. लेकिन यह भारत के लिए नुकसानदेह साबित होगा. इसके बजाय सरकार को उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने के कदम उठाए चाहिए ताकि वे निर्यात करें और डॉलर कमाएं.''

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