भारत सरकार 19 दिसंबर से देगी सस्ता सोना खरीदने का मौका, निवेश करने पर होगी मोटी कमाई

RBI 19 दिसंबर के दिन सोने में निवेश करने का शानदार मौका लेकर आ रहा है। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGBs) 2022-23 की तीसरी सीरीज़ सब्सक्रिप्शन के लिए सोमवार 19 दिसंबर के दिन खुलने जा रही है।

Sovereign Gold Bonds: इंडियन मार्केट में सोने-चांदी (gold and silver) की ज्वैलरी की अच्छी डिमांड देखने को मिलती है। अगर आप सोने और चांदी में निवेश (gold silver invest) करने का प्लान बना रहे हैं तो आपको सरकार शानदार ऑफर दे रही है। 19 दिसंबर यानी सोमवार से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond) की शुरुआत होने जा रही है, जहां कम कीमत पर सोना खरीदने का मौका मिलेगा।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से जारी आधिकारिक सूचना के मुताबिक, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGBs) 2022-23 की तीसरी सीरीज सब्सक्रिप्शन के लिए सोमवार 19 दिसंबर के दिन खुलने जा रही है। निवेशकों को 19 दिसंबर से 23 दिसंबर यानी पांच दिन तक गोल्ड बॉन्ड में निवेश करने का मौका मिलेगा। RBI ने बॉन्ड का इश्यू प्राइस 5409 रुपये प्रति ग्राम तय किया है। ये बॉन्ड सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। वहीं, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम चौथी सीरीज 06-10 मार्च 2023 के दौरान सब्सक्रिप्शन के लिए खुलेगी।

निवेश और मुनाफा

इश्यू प्राइस के बारे में जानकारी देते हुए RBI ने कहा, ऑनलाइन आवेदन और डिजिटल माध्यम से भुगतान करने वाले निवेशकों को 50 रुपये प्रति ग्राम की छूट दी जाएगी। SGB के लिए भुगतान नकद भुगतान (अधिकतम 20000 तक) या डिमांड ड्राफ्ट या चेक या इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के माध्यम से होगा। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के तहत एक वित्त वर्ष में निवेश 4 किलो अधिकतम गोल्ड के बॉन्ड में निवेश कर सकता है और न्यूनतम खरीद की सीमा 1 ग्राम है। संस्‍थाएं 20 ग्राम तक का अधिकतम गोल्ड बॉन्ड खरीद सकती है। स्कीम की मैच्योरिटी अवधि 8 साल है और 5 साल के बाद विड्रॉल ऑप्शन भी दिया जाता है। स्कीम के तहत 2.50 फीसदी सालाना ब्याज मिलेगा।

यहां से खरीदें गोल्ड बॉन्ड

SGB को बिक्री शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक (स्मॉल फाइनेंस बैंक, पेमेंट विश्लेषक की निवेश यात्रा बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर), स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CCIL), नामित डाकघरों और स्टॉक एक्सचेंजों एनएसई (NSE) और बीएसई (BSE) के माध्यम से बेचा जाएगा। एसबीआई की ऐप पर जाकर भी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं।

उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य डेलीगेशन विश्लेषक की निवेश यात्रा के साथ पहुंचे नीदरलैंड

उप मुख्यमंत्री (Chief Minister) केशव प्रसाद मौर्य डेलीगेशन के साथ पहुंचे नीदरलैंड

लखनऊ (Lucknow), . उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में निवेश और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के उप मुख्यमंत्री (Chief Minister) केशव प्रसाद मौर्य अपने कैबिनेट सहयोगी मंत्री योगेंद्र उपाध्याय के साथ नीदरलैंड के एम्स्टर्डम पहुंच गये हैं. प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन, प्रमुख सचिव परिवहन एल. वेंकटेश्वर लू व वरिष्ठ अधिकारियों के डेलीगेशन के साथ फिलिप्स इन्नोवेशन सेंटर आइंडहोवन के लिए प्रस्थान किया . उप मुख्यमंत्री (Chief Minister) ने एमस्टर्डम में नीदरलैंड की भारतीय राजदूत रीना संन्धू से के साथ विभिन्न विषयों पर वार्ता की.

केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि भारत अर्थव्यवस्था की दृष्टि से विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तथा विगत कुछ वर्षों से विश्व भर में सबसे पसंदीदा निवेश गंतव्य में से एक है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में भारत को 05 ट्रिलियन यूएस डॉलर (Dollar) की अर्थव्यवस्था बनाने का विजन दिया था.

इस विजन को साकार करने के लिए भारत वर्ष में सरकार द्वारा किए जा रहे व्यावसायिक कार्यों में व्यावसायिक विशेषज्ञ को जोड़कर पीपीपी माडल पर व्यवसायों को विकसित करने की योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा है. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) को 01 ट्रिलियन यूएस डॉलर (Dollar) इकोनामी भी बनाने का संकल्प लिया है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं और इस बावत उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विदेशों से ज्यादा से विश्लेषक की निवेश यात्रा ज्यादा इन्वेस्टमेंट कराने के लिए लखनऊ (Lucknow) में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन फरवरी माह में प्रस्तावित है. उप मुख्यमंत्री (Chief Minister) ने बताया कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भी इन्वेस्टमेंट की अपार संभावनाएं हैं.

चीन को समझ क्यों नहीं पाता भारत?

border dispute with China

चीन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के लिए भी रहस्य था और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी रहस्य है। सबसे दिलचस्प बात चीन का मायाजाल है, जिसे भारत के नेता समझ नहीं पाते हैं। नेहरू जब तक समझते तब तक धोखा खा चुके थे और उस धोखे ने उनकी जान ले ली थी। उन्होंने 1962 में चीन के हमले के बाद चीन को समझ लिया था और देश को भी उसके बारे में समझाया था। नेहरू ने अपने अधिकारियों को नोट्स लिखे थे, राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठियां लिखी थीं, संसद में भाषण दिए थे और चीन के बारे में बताया था। देश के मूर्धन्य पत्रकार और लेखर अरुण शौरी ने इन सब बातों को लेकर एक किताब लिखी थी, ‘सेल्फ डिसेप्शनः इंडियाज चाइना पॉलिसी विश्लेषक की निवेश यात्रा ऑरिजिन्स, प्रिमाइसेज, लेशंस’।

अरुण शौरी ने यह किताब 2009 में लिखी थी। इससे दो साल पहले 2007 कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने चीन को लेकर एक किताब लिखी थी। उनकी किताब का शीर्षक था, ‘मेकिंग सेंस ऑफ चिंडियाः रिफ्लेक्शंस ऑन चाइना एंड इंडिया’। उन्होंने चीन और इंडिया को मिला कर चिंडिया शब्द गढ़ा था। जहां जयराम रमेश को चीन के साथ व्यापार और दूसरे क्षेत्र में सहयोग की बड़ी संभावना दिख रही थी वहीं अरुण शौरी को चीन की चुनौती और उसका खतरा दिख रहा था। चीन ने जो शक्तियां हासिल की हैं और उसकी जो सैन्य रणनीति है, उसके भारत के संदर्भ में क्या परिणाम हो सकते हैं, इसके बारे में बताया था। उनका आकलन वास्तविकता और चीन के साथ भारत के जो अनुभव रहे थे उस पर आधारित था, जबकि रमेश की किताब भविष्य की रूमानी उम्मीदों पर आधारित थी।

जाहिर है नेहरू के अनुभव और देश ने चीन के हाथों जो भुगता था उसके बावजूद भारत के लोगों पर चीन के मायावी रूप का असर बना चला आ रहा है। अरूण शौरी जैसे थोड़े से लेखक और मुलायम सिंह यादव जैसे थोड़े से नेता थे, जो चीन का खतरा याकि चुनौती समझ रहे थे, जबकि बाकी लोग किसी न किसी भ्रम या धोखे के शिकार थे। शौरी और रमेश की किताब ऐसे समय में आई थी, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। बाद में बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार बार चीन की यात्रा की थी और चीन ने गुजरात में भारी निवेश किया था या निवेश का वादा किया था। जब मोदी प्रधानमंत्री बन कर दिल्ली आए तब भी उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग के खूब स्वागत किया। उनको अपने गृह प्रदेश गुजरात में बुलाया। साबरमती रिवर फ्रंट पर दोनों नेताओं की झूला झूलते हुए फोटो खूब हल्ले में रहे।

बाद में चीन के साथ मोदी की औपचारिक और अनौपचारिक कई चर्चाए हुई। प्रधानमंत्री मोदी अनौपचारिक चर्चा के लिए चीन गए और वुहान में उनकी शी जिनफिंग के साथ मीटिंग हुई। वे ‘वुहान स्पिरिट’ के साथ भारत लौटे। इसके बाद शी जिनफिंग अनौपचारिक चर्चा के लिए भारत आए। ममलापुरम में मोदी और शी की वार्ता हुई। मोदी राज के शुरू के करीब पांच साल रूमानियत में गुजरे। इसकी तुलना उस समय से की जा सकती है, जो आजादी के ठीक बाद का समय था। तब नेहरू को चीन से बहुत प्रेम था और वे चीन के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। उसी तरह अपने शासन के शुरू के पांच साल मोदी भी चीन के साथ कुछ भी करने को तैयार थे। उन्होंने 2017 में डोकलाम में हुए गतिरोध से भी सबक नहीं लिया। फिर चीन से निकला कोरोना पूरी दुनिया में फैला। जून 2020 में गलवान घाटी में चीन व भारत के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए। नेहरू के मुकाबले मोदी की नासमझी या गलती ज्यादा बड़ी है क्योंकि नेहरू के पास चीन को लेकर कोई पूर्व अनुभव नहीं था, जबकि मोदी के सामने आजाद भारत के इतिहास के तथ्य थे कि कैसे चीन से भारत धोखा विश्लेषक की निवेश यात्रा खाता आया है।

इसके बावजूद नरेंद्र मोदी ने चीन पर न सिर्फ भरोसा किया, बल्कि उसके साथ लगातार अच्छे संबंध बनाने की उम्मीद में है। चीन की आर्थिक गुलामी होने दे रहे है। चीन की कूटनीति के बारे में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो दुनिया के देश नहीं जानते हैं। उसकी नीतियां विस्तारवादी हैं। उसने पड़ोसी देशों की जमीन कब्जाई है। दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप बना रहा है। हांगकांग को मिलाने के बाद वहां से लोकतंत्र खत्म कर रहा है। ताइवान पर कब्जा करने का खुले तौर पर ऐलान है। पाकिस्तान को सैन्य मदद देता है और कूटनीतिक स्तर पर हर जगह उसका बचाव करता है। भारत के साथ कारोबार बढ़ा कर वह भारत को आर्थिक रूप से गुलाम बना रहा है। इसके बावजूद मोदी सरकार ने चीन पर से आर्थिक निर्भरता कम करने और सामरिक रूप से उसका मुकाबला करने के लिए देश के तैयार करने की बजाय चीन के साथ अच्छे संबंधों की विश्लेषक की निवेश यात्रा उम्मीद बनवा रखी है।तभी इसके नतीजे डोकलाम से लेकर पूर्वी लद्दाख और तवांग में दिख रहे है।

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक। ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था। आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य। संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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