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Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

Why Rupee Falling: सोमवार को रुपया 78.04 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। सोमवार को एक वक्त ऐसा आया था जब रुपये ने 78.28 रुपये का न्यूनतम स्तर छुआ था। मंगलवार को रुपया मामूली मजबूती के साथ 78.03 रुपये के स्तर पर बंद हुआ। रुपये में गिरावट की वजह विदेशी निवेशकों का पूंजी निकालना और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं।

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

rupee falling

कैसे रुपये के गिरने से भारत को हो रहा है नुकसान?
चलिए एक उदाहरण से समझते हैं कैसे रुपये का गिरना एक बड़ी समस्या है। मान लीजिए आपको कोई सामान आयात करने में 1 लाख डॉलर चुकाने होते हैं। इस साल की शुरुआत में रुपये की कीमत डॉलर की तुलना में करीब 75 रुपये थी। यानी तब हमें इस आयात के लिए 75 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे। आज की तारीख में रुपया 78 रुपये से भी अधिक गिर गया है। ऐसे में हमें उसी सामान के लिए अब 75 के बजाय 78 लाख रुपये से भी अधिक चुकाने होंगे। यानी 3 लाख रुपये का नुकसान। यह आंकड़ा तो सिर्फ 1 लाख डॉलर के हिसाब से निकाला है, जबकि आयात के आंकड़े लाखों-करोड़ों डॉलर के होते हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को कितना नुकसान झेलना पड़ रहा है।

US Fed Rate Hike : अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से दुनिया में क्यों मच जाता है हाहाकार? इस बार हो सकता है 28 साल का सबसे बड़ा इजाफा
क्यों गिरता जा रहा है रुपया?
बाजार सूत्रों के अनुसार घरेलू कारोबार का नीरस माहौल, कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और विदेशी पूंजी को भारतीय बाजार से लगातार निकालने के चलते रुपये की कीमत पर असर पड़ा है। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा का दाम 0.72 प्रतिशत बढ़कर 123.15 डॉलर प्रति बैरल हो गया। शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे। उन्होंने सोमवार को शुद्ध रूप से 4,164.01 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

तो फिर विदेशी निवेशक क्यों निकाल रहे हैं पैसे?
मौजूदा समय में अमेरिका में महंगाई दर 40 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है और तेजी से बढ़ रही है। मई महीने में यह 8.6 फीसदी दर्ज की गई थी। भारत में भी महंगाई काफी अधिक हो चुकी है और मई में यह करीब 7 फीसदी है। जिस तरह भारत के रिजर्व बैंक ने महंगाई को काबू में करने के लिए पिछले करीब डेढ़ महीनों में दो बार में 90 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है, वैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक भी बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा है।

अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि यह बढ़ोतरी 28 सालों की सबसे बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में विदेशी निवेशक शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल कर अमेरिका में लगा सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा हो। भारत के पूंजी बाजार में विदेशी निवेशक इसीलिए पैसे लगाते हैं, क्योंकि वहां की तुलना में यहां रिटर्न अधिक मिलते हैं। वैसे विदेशी निवेशक दुनिया भर के बाजारों में पैसे लगाते हैं और जहां ये लोग पैसे लगाते हैं, वहां बाजार भागता है।

गिरते रुपये को रोकें कैसे?

साल भर पहले तक एक डॉलर की कीमत 54 रुपये के आसपास थी। लेकिन इस साल मई से रुपये की कीमत गिरने लगी। इस सोमवार को तो रुपया इतना गिरा कि डॉलर की कीमत 61 रुपये तक जा.

गिरते रुपये को रोकें कैसे?

साल भर पहले तक एक डॉलर की कीमत 54 रुपये के आसपास थी। लेकिन इस साल मई से रुपये की कीमत गिरने लगी। इस सोमवार को तो रुपया इतना गिरा कि डॉलर की कीमत 61 रुपये तक जा पहुंची। इसके बाद से रुपये की कीमत में थोड़ा सुधार जरूर हुआ, लेकिन अब भी यह एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा है। आपके और हमारे लिए इसका क्या अर्थ है? खासकर जब हमारी कमाई और ज्यादातर खर्च डॉलर में नहीं होते हैं। आटा, दाल-चावल, दूध, अंडे वगैरह हम डॉलर के हिसाब से नहीं खरीदते। हम अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाने या बस का टिकट खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान नहीं करते। अपने लिए मोबाइल फोन या बच्चों के लिए लैपटॉप खरीदते समय भी हमें डॉलर की जरूरत नहीं पड़ती। तो क्या हमें इस गिरते रुपये की चिंता करनी चाहिए? बिलकुल करनी चाहिए। ग्लोबल हो चुकी इस दुनिया में हर देश की मुद्रा की दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्या कीमत है, इसका न सिर्फ उस देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है, बल्कि बाजार में बहुत सारी चीजों की कीमतों पर भी। जैसे- भारत का 75 फीसदी आयात कच्च तेल है, जिसके लिए डॉलर में भुगतान होता है। अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, यानी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती है, तो हमें इस आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नतीजा क्या होगा? हालांकि, सरकार तेल कंपनियों और रिफाइनरियों को पैसा देकर सब्सिडी से इसकी कीमत को कम करने की कोशिश करती है, लेकिन यह काम अनंत काल तक नहीं किया जा सकता। इसलिए तेल कंपनियों के पास इसकी कीमत बढ़ाने के अलावा कोई और चारा नहीं होता। यही वजह है कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस सभी की कीमत पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है। बावजूद इसके कि दुनिया भर में इनकी कीमत इन दिनों स्थिर है। लेकिन क्योंकि रुपये की कीमत गिर रही है, इसलिए हमें और आपको ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है।

लेकिन रुपये की कीमत के गिरने का यह हम पर पड़ने वाला अकेला असर नहीं है। सब्जी, अनाज, मीट, मछली वगैरह जो भी चीजें हम खाते हैं, वे जिन ट्रक, टैंपू वगैरह पर लदकर आती हैं, उनके लिए भी डीजल और पेट्रोल की जरूरत पड़ती है। इसका असर माल भाड़े पर पड़ता है, जिससे इन सब चीजों की कीमत बढ़ जाती है। रुपये की गिरती कीमत हम पर और भी कई तरीकों से असर डालती है। जिस भी चीज के उत्पादन में कच्चे माल का आयात होता है, उसकी लागत बढ़ जाती है। इसका अर्थ हुआ कि उपभोक्ता को उसके लिए अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी होती है। इसलिए अगर आप कार या स्कूटर खरीदने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादा कीमत चुकानी होगी, क्योंकि इनके उत्पादन में कई आयातित चीजों का इस्तेमाल होता है। मोबाइल फोन, टैबलेट, कंप्यूटर और लैपटॉप भी आपको महंगे मिलेंगे, क्योंकि इनके ज्यादातर सामान आयात होते हैं। जो लोग विदेश में पढ़ रहे हैं या पढ़ने जाना चाहते हैं, उन्हें भी अब रुपये की कीमत गिरने के कारण ज्यादा खर्च करना होगा।

लेकिन रुपया इतना ज्यादा गिरा क्यों? इसके लिए हमें अमेरिकी अर्थव्यवस्था को देखना होगा। पिछले कुछ साल में अमेरिका आर्थिक सुस्ती से गुजरा है। कुछ लोग इसे मंदी भी कहते हैं। इस दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई, रोजगार के नए अवसर नहीं पैदा हुए, बेरोजगारी बढ़ी और नए कारोबार में ज्यादा निवेश नहीं हुआ। अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व (जो हमारे रिजर्व बैंक जैसी ही संस्था है) नोट छापने शुरू कर दिए, ताकि अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ाई जा सके। यह काम आम तौर पर सरकारी बांड खरीदकर किया जाता है, सरकार इस पैसे का इस्तेमाल खर्च और उपभोग बढ़ाने के लिए करती है। इसका एक असर यह भी हुआ कि डॉलर की कीमत कम हो गई। लेकिन इस साल के शुरू में जब अर्थव्यवस्था के अपने रंग में वापस आने के संकेत दिखाई दिए, तो फेडरल रिजर्व ने बांड खरीदने का सिलसिला रोक दिया। इसका अर्थ था बाजार में डॉलर की आपूर्ति का पहले के मुकाबले कम हो जाना। इससे डॉलर की कीमत बढ़ने लगी, जिसकी वजह से वैश्विक निवेशक उन देशों के बाजारों को छोड़ने लगे, जहां की मुद्रा कमजोर है। भारत और दूसरे विकासशील देश इसका शिकार बने। भारत में निवेश करने वाले वैश्विक फंड तुरंत ही अमेरिका के मजबूत बाजार की ओर रुख करने लगे।

इससे भी बुरी बात यह हुई कि भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त होने लगी। जहां कभी आठ और नौ फीसदी की विकास थी, वहां अब विकास दर पांच फीसदी के आसपास हो गई। तो क्या इसका अर्थ है कि रुपये की कीमत के गिरने में सब बुरा ही बुरा है? और फिर भारत रुपये की इस गिरावट का मुकाबला कैसे कर सकता है? पहले बात करते हैं गिरते रुपये के फायदे की। जब रुपया गिरता है, तो विदेशी बाजार में भारतीय सामान सस्ता हो जाता है। इससे विदेशी खरीदारों को भारतीय निर्यात ज्यादा आकर्षक लगने लगता है। और अगर निर्यात तेजी से बढ़े, तो डॉलर में कारोबार करने वाले निर्यातकों की आमदनी भी तेजी से बढ़ेगी। इससे हमारा विदेश व्यापार घाटा भी कम हो सकता है। क्योंकि अभी तक हम आयात करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा खर्च करते हैं, उसके मुकाबले कम निर्यात के कारण बहुत कम विदेशी मुद्रा ही हमें मिल पाती है। रुपये की कीमत कम होने के कारण निर्यातकों को फायदा हो सकता है, लेकिन यह इस पर भी निर्भर करेगा कि चीन और दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले हमारा माल कहां ठहर पाता है। इसका फायदा भारत के आउटसोर्सिंग उद्योग को भी होगा, खास तौर पर कॉल सेंटर और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनियों मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है को। इन सबका कारोबार भी डॉलर में होता है और अब ये सेवाएं विदेशी ग्राहकों के लिए सस्ती पड़ेंगी।

और अब आता है गिरते रुपये का मुकाबला करने का मुद्दा। इसका सबसे अच्छा तरीका है कि भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया जाए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या एफडीआई के रूप में जो धन आता है, वह भारतीय बाजार के दीर्घकालिक महत्व को देखते हुए आता है। यह शेयर बाजार या मुद्रा बाजार में होने वाला निवेश नहीं है, जो थोड़े से उतार-चढ़ाव से ही बाहर आ जा सकता है। जैसे-जैसे एफडीआई की आमद बढ़ेगी, रुपये की कीमत सुधरेगी। यही वजह है कि सरकार इन दिनों खुदरा बाजार, टेलीकॉम, ऊर्जा और दूसरे क्षेत्रों में एफडीआई लाने की कोशिश तेज कर रही है। निर्यात और विदेशी निवेश को बढ़ाकर ही हम गिरते रुपये को थाम सकते हैं।

डॉलर के मुकाबले रुपये में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट, रुपया गिरने का मतलब क्या है, आम आदमी को इससे कितना नफा-नुकसान

भारतीय मुद्रा (रुपया) में हो रही गिरावट के बाद गुरुवार को एक अमरीकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 19 पैसे की गिरावट के साथ 79.04 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया.

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अपूर्वा राय

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2022,
  • (Updated 30 जून 2022, 3:06 PM IST)

एक अमेरिकी डॉलर 79.04 रुपये का हो गया है,

अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो हमें आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा

आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है?

भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. अमेरिकी डॉलर (Dollar) की तुलना में रुपया अपने रिकॉड निचले स्तर पर है. मतलब एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 79.04 रुपये पहुंच गया है. यह स्तर अब तक का सर्वाधिक निचला स्तर है. देश की आजादी के बाद से ही रुपये की वैल्यू लगातार कमजोर ही हो रही है. भले ही रुपये में आने वाली ये गिरावट आपको समझ में न आती हो या आप इसे गंभीरता से ना लेते हों, लेकिन हमारे और आपके जीवन पर इनका बड़ा असर पड़ता है.

आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है? रुपये की गिरती कीमत हम पर किस तरह से असर डालती है. आइए जानते हैं.

क्या होता है एक्सचेंज रेट

दो करेंसी के बीच में जो कनवर्जन रेट होता है उसे एक्सचेंज रेट या विनिमय दर कहते हैं. यानी एक देश की करेंसी की दूसरे देश की करेंसी की तुलना में वैल्यू ही विनिमय दर कहलाती है. एक्सचेंज रेट तीन तरह के होते हैं. फिक्स एक्सचेंज रेट में सरकार तय करती है कि करेंसी का कनवर्जन रेट क्या होगा. मार्केट में सप्लाई और डिमांड के आधार पर करेंसी की विनिमय दर बदलती रहती है. अधिकांश एक्सचेंज रेट फ्री-फ्लोटिंग होती हैं. ज्यादातर देशों में पहले फिक्स एक्सचेंज रेट था.

रुपया गिरने का क्या अर्थ है?

आसान भाषा में समझें तो रुपया गिरने का मतलब है डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना. यानी अगर रुपये की कीमत गिरती है, तो हमें आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और निर्यात सस्ता हो जाएगा. इससे मुद्राभंडार घट जाएगा.

भारत अपने कुल तेल का करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है. जिसके मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है लिए डॉलर में भुगतान होता है. मान लीजिए सरकार को कोई सामान आयात करने के लिए 10 लाख डॉलर चुकाने हैं, आज की तारीख में रुपया 79 रुपये से भी अधिक गिर गया है. पहले जहां सरकार को उस सामान के आयात के लिए 7 करोड़ 5 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे अब रुपये की कीमत गिरने से 7 करोड़ 9 लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे.

रुपये की गिरती कीमत आम आदमी पर कैसे असर डालती है?

रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को तेल आयात करना और मंहगा पड़ेगा इसलिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें और ऊपर चली जाएंगी. इसका सीधा असर परिवहन की लागत पर पड़ेगा और इस तरह आम आदमी की जेब भी ढीली हो जाएगी.

रुपए के कमजोर होने से भारतीय छात्रों के लिए विदेशों में पढ़ना महंगा हो जाएगा.

अगर आप इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादा कीमत चुकानी मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है होगी, क्योंकि इनके उत्पादन में कई आयातित चीजों का इस्तेमाल होता है.

दैनिक जीवन की ऐसी कई चीजें जो हम इस्तेमाल करते हैं उसके लिए ट्रांसपोर्ट का खर्च आता है. तेल की महंगी होती कीमतों का असर माल भाड़े पर पड़ता है, जिससे इन सब चीजों की कीमत भी बढ़ जाती है.

रुपये की कमजोरी से खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

सरकार गिरते रुपये को उठाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करती है. क्योंकि रुपये की गिरावट को रोकने का वही एक तरीका होता है. इससे लोन लेना महंगा हो सकता है.

Dollar vs Rupee: डॉलर के आगे ‘नतमस्तक’ रुपया, इस कमजोरी से देश पर क्या असर पड़ेगा, कौन रहेंगे फायदे में?

Dollar vs Rupee: रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी।

डॉलर के मुकाबले रुपया

डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।

रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।

तारीख एक डॉलर का मूल्य रुपये में

रुपये के कमजोर होने की स्थिति में विदेशों में अपना कारोबार करने वाली आईटी कंपनियों की कमाई बढ़ जाएगी। वहीं, फार्मा सेक्टर का निर्यात भी बढ़ जाएगा। इसके अलावे कपड़ा क्षेत्र को भी रुपये के कमजोर होने का फायदा होगा क्योंकि वस्त्रों के निर्यात के मामले में भारत फिलहाल विश्व में दूसरे स्थान पर मौजूद है। इसलिए अगर डॉलर मजबूत होता है इस सेक्टर को बड़ा फायदा होगा।

रुपये में आई बड़ी गिरावट के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते शनिवार को कहा कि रुपया अन्य मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले काफी मजबूत है। रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जाने से जुड़े सवाल पर सीतारमण ने कहा कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय स्थिति पर बहुत करीबी नजर रख रहे हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि अगर कोई एक मुद्रा है जो खुद को संभालाने में सक्षम है और अन्य मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है मुद्राओं की तुलना में उतार-चढ़ाव या अस्थिरता से बची हुई है, तो वह भारतीय रुपया है। हमने बहुत अच्छी तरह से वापसी की है। हमने काफी अच्छी तरह से इस स्थिति का सामना किया है।

उन्होंने रुपये की गिरती कीमत के बारे में पूछे जाने पर कहा कि गिरावट के मौजूदा दौर में डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की स्थिति पर भी अध्ययन करने की जरूरत है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया शुक्रवार को 81.09 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया था। पिछले कुछ महीनों में लगातार ये गिरावट जारी है।

विस्तार

डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।

रुपये की कमजोरी का बाजार पर क्या होगा असर?

शेयर बाजार

रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।

Dollar vs Rupee: डॉलर के आगे ‘नतमस्तक’ रुपया, इस कमजोरी से देश पर क्या असर पड़ेगा, कौन रहेंगे फायदे में?

Dollar vs Rupee: रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी।

डॉलर के मुकाबले रुपया

डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है ले सकता है।

रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।

तारीख एक डॉलर का मूल्य रुपये में

रुपये के कमजोर होने की स्थिति में विदेशों में अपना कारोबार करने वाली आईटी कंपनियों की कमाई बढ़ जाएगी। वहीं, फार्मा सेक्टर का निर्यात भी बढ़ जाएगा। इसके अलावे कपड़ा क्षेत्र को भी रुपये के कमजोर होने का फायदा होगा क्योंकि वस्त्रों के निर्यात के मामले में भारत फिलहाल विश्व में दूसरे स्थान पर मौजूद है। इसलिए अगर डॉलर मजबूत होता है इस सेक्टर को बड़ा फायदा होगा।

रुपये में आई बड़ी गिरावट के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते शनिवार को कहा कि रुपया अन्य मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले काफी मजबूत है। रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जाने से जुड़े सवाल पर सीतारमण ने कहा कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय स्थिति पर बहुत करीबी नजर रख रहे हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि अगर कोई एक मुद्रा है जो खुद को संभालाने में सक्षम है और अन्य मुद्राओं की तुलना में उतार-चढ़ाव या अस्थिरता से बची हुई है, तो वह भारतीय रुपया है। हमने बहुत अच्छी तरह से वापसी की है। हमने काफी अच्छी तरह से इस स्थिति का सामना किया है।

उन्होंने रुपये की गिरती कीमत के बारे में पूछे जाने पर कहा कि गिरावट के मौजूदा दौर में डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की स्थिति पर भी अध्ययन करने की जरूरत है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया शुक्रवार को 81.09 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया था। पिछले कुछ महीनों में लगातार ये गिरावट जारी है।

विस्तार

डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।

रुपये की कमजोरी का बाजार पर क्या होगा असर?

शेयर बाजार

रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।

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