वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा
रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।
[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?
इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।
विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।
इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।
विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।
कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार ही बदल जाएगा।
इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।
पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।
Dollar vs Currency: गिरता रुपया सिक्के के दो पहलू जैसा, 6 नुकसान तो ये 4 फायदे भी
Rupee vs Dollar: लगातार गिरता रुपया भारत के कुछ सेक्टर्स के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. वहीं, कुछ सेक्टर्स में उत्पादन की लगात बढ़ जाएगी और इसका असर देश की आम जनता की जेब पर पड़ेगा. अमेरिका से वास्ता रखने वाली कंपिनयों को फायदा होने वाला है. ईंधन की ऊंची कीमतों से महंगाई में भी इजाफा होता है.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 25 जुलाई 2022,
- (अपडेटेड 25 जुलाई 2022, 5:39 PM IST)
- दवाई उद्योग के सेक्टर को होगा फायदा
- तेल और गैस की कीमतों पर पड़ेगा असर
डॉलर (Dollar) के मुकाबले लगातार गिरते रुपये (Rupee) को बचाने के लिए भारत (India) अपने विदेशी मुद्रा भंडार (India Forex Reserves) से खर्च कर रहा है. विदेशी निवेशक भारत से अमेरिका भाग रहे हैं. जहां के केंद्रीय बैंक ने दरें बढ़ा दी हैं. व्यापार संतुलन के पलड़े पर भी भारत को नुकसान उठाना पड़ रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 80 वह कगार है, जहां से रुपये का लुढ़कना बेकाबू हो सकता है. इससे सरकारी वित्त और कारोबारी योजनाओं में भारी रुकावटें पैदा हो जाएंगी.
लगातार गिरता रुपया भारत के कुछ सेक्टर्स के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. वहीं, कुछ सेक्टर्स में उत्पादन की लगात बढ़ जाएगी और इसका असर देश की आम जनता की जेब पर पड़ेगा.
गिरते रुपये का नुकसान
सम्बंधित ख़बरें
डॉलर के मुकाबले 82 रुपये तक जा सकता है रुपया, ये रहेंगे कारण
गूगल के को-फाउंडर की पत्नी संग अफेयर पर एलन मस्क ने दी सफाई
प्लास्टिक के इस विकल्प की भारी डिमांड, 5 लाख महीने तक कमाई
शेयर मार्केट की कमजोर शुरुआत, ICICI Bank और RIL पर नजर
LIC की इस पॉलिसी में 4 साल जमा करें पैसा, मिलेंगे 1 करोड़ रुपये
सम्बंधित ख़बरें
1. ऑटोः करीब 10-20 फीसदी कल-पुर्जों और दूसरे पार्ट्स का आयात होने के कारण कारें महंगी हो सकती हैं. यह असर कंपनी के निर्यात और आयात वाले मार्केट पर निर्भर करेगा.
2. टेलीकॉम: इस उद्योग के विभिन्न पुर्जों का बड़ा आयातक होने के नाते अनुमान है कि भारत में कमजोर रुपया कंपनियों की लागत पूंजी को 5 फीसदी तक बढ़ सकता है. इस वजह वो टैरिफ बढ़ाने को मजबूर हो जाएंगी.
3. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स: इस कारोबार में आयातित वस्तुएं कुल लागत का 40-60 फीसदी के करीब बैठती हैं. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लाएंसेज निर्माताओं के मुताबिक, इस उद्योग की वस्तुओं की कीमतों में 4-5 विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार फीसदी तक का इजाफा हो सकता है.
4. सौर ऊर्जा: भारत के सौर ऊर्जा संयंत्र सोलर सेल और मॉड्यूल्स का आयात करते हैं. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में प्रति एक रुपये की गिरावट पर सौर ऊर्जा की लागत का खर्च 2 पैसे प्रति यूनिट बढ़ जाएगा.
5. एफएमसीजी: इन वस्तुओं के उत्पादन में करीब आधी लागत तो आयात किए कच्चे माल की होती है. दबाव बढ़ने पर कंपनियां इस लागत को उपभोक्ताओं पर डालने में गुरेज नहीं करेंगी.
6. तेल और गैस: भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल और गैस की आधी मात्रा का आयात करता है. इनके आयातकों के लिए कीमतें बढ़ती गई हैं. ऐसे में इसकी लागत या तो उपभोक्ताओं पर डाली जा सकती है या फिर सरकार इसे वहन करेगी. ऐसी स्थिति में उसके खजाने पर असर पड़ेगा. ईंधन की ऊंची कीमतों से महंगाई में भी इजाफा होता है.
गिरते रुपये का फायदा
1. दवाई उद्योग: अमेरिका से वास्ता रखने वाली कंपिनयों को फायदा होने वाला है. भारत का एक तिहाई निर्यात अमेरिका को ही होता है. 2013-14 के मुकाबले निर्यात 103 फीसदी बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 1.83 लाख करोड़ रुपये हो गया. लेकिन 4-5 अरब डॉलर के सामान का आयात भी हुआ. घरेलू बाजार पर केंद्रित रहने वाली कंपनियों और दवाओं के तत्व सप्लाई करने वालों पर असर पड़ेगा.
2. आईटी सर्विस: ज्यादातर कंपनियां क्लाइंट का बिल डॉलर में ही बनाती हैं और बड़ी कंपिनयों का 50-60 फीसदी राजस्व अमेरिकी मार्केट से ही आता है. रुपये में 100 बीपीएस की गिरावट का मतलब है मुनाफे में सीधे 30 बीपीएस का फायदा.
3. कपड़ा उद्योग: भारतीय निर्यातकों को बांग्लादेश जैसे मुल्कों से मुकाबले के लिए लागत के मामले में बढ़त मिल जाती है. ज्यादातर कच्चा माल यहीं मिल जाता है. चीन, इंडोनेशिया और बांग्लादेश से भारत भी सिलेसिलाए और दूसरे कपड़े आयात करता है.
4. स्टील: भारत अपने स्टील का 10-15 विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार फीसदी निर्यात करता है. कमजोर रुपये ने उस नफे-नुकसान के असर को बराबर कर दिया, जो मई में सरकार के निर्यात पर 15 फीसदी टैक्स लगाने से पैदा हुआ था. (इनपुट: इंडिया टुडे मैगजीन-हिंदी)
ट्रेडिंग अकाउंट क्या है?
वर्तमान परिदृश्य अपने आप में इस बात का प्रमाण है विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार कि व्यापारिक दुनिया पहले से कहीं अधिक सुलभ हो गई है। हालांकि 1840 के दशक में वापस शुरू हुआ, भारतीय व्यापार प्रणाली ने निवेशकों विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार और व्यापारियों के लिए कई प्रतिबंध लगाए।
हालांकि, डिपॉजिटरी एक्ट, 1996 के साथ, पेपरलेस ट्रेडिंग एक संभावना के रूप में बदल गई; इसलिए, इसने इस धारा में अनंत अवसरों की ओर मार्ग प्रशस्त किया। आज, चूंकि ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म आसानी से उपलब्ध हैं, उपयुक्त जानकारी वाला कोई भी व्यक्ति इस उद्यम में शामिल हो सकता है।
इतना कहने के बाद, यह पोस्ट ट्रेडिंग खाते और इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में अधिक समझने के लिए समर्पित है। आइए इसके बारे में और पढ़ें।
व्यापार में एक ट्रेडिंग खाता क्या है?
अनिवार्य रूप से, भारत में एक ट्रेडिंग खाता एक निवेश खाता है जिसका उपयोग व्यापारी अपनी नकदी, प्रतिभूतियों और अन्य निवेशों को रखने के लिए करते हैं। शेयरों की बिक्री और खरीद जैसे प्रतिभूतियों में विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार लेनदेन करने के लिए यह आवश्यक उपकरणों में से एक है।
वास्तव में, कुछ परिदृश्यों में, जैसे कि इक्विटी ट्रेडिंग, ट्रेडिंग खाता गायब होने पर व्यापार करना संभव नहीं है। उसके ऊपर, एक ऑनलाइन ट्रेडिंग खाता लेनदेन को कुशल और तेज बनाता है।
विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का चयन करने से आपको समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों के बारे में अपडेट भेज सकते हैंमंडी. साथ ही, कुछ ऐसे खाते भी हैं जो आपको विशेष सुविधाओं के साथ ऑर्डर देने की अनुमति देते हैं, भले ही बाजार बंद हो जाए।
डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट के बीच अंतर
जिस तरह से आप अपने में पैसा रखते हैंबचत खाता, उसी तरह, आपके स्टॉक a . में रखे जाते हैंडीमैट खाता. जब भी आप कोई स्टॉक खरीदते हैं, तो वह आपके डीमैट खाते में जमा हो जाता है। और, स्टॉक बेचने पर, इस खाते से डेबिट हो जाता है।
इसके विपरीत, एक ट्रेडिंग खाता, शेयर बाजार में शेयर खरीदने या बेचने का एक माध्यम है। जब भी आप शेयर खरीदने के लिए तैयार होते हैं, तो आपको कुछ विवरण देने होते हैं, और फिर खरीदारी एक ट्रेडिंग खाते के माध्यम से की जाती है।
हालांकि, सुनिश्चित करें कि भारतीय शेयरों में ट्रेडिंग करते समय, आपको क्रमशः डीमैट खाता और ट्रेडिंग खाता खोलना होगा।
ट्रेडिंग खातों के प्रकार
विभिन्न प्रकार के ट्रेडिंग खाते हैं जो ट्रेडिंग स्टॉक, सोना, के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार बनाम स्टॉक व्यापार उपलब्ध हैं।ईटीएफप्रतिभूतियों, मुद्राओं, और बहुत कुछ। कुछ सबसे सामान्य और सर्वोत्तम ट्रेडिंग खाते हैं:
- ऑनलाइन कमोडिटी ट्रेडिंग खाता: व्यापारिक वस्तुओं में मदद करता है
- ऑनलाइन विदेशी मुद्रा व्यापार खाता: विदेशी मुद्रा बाजार में आंदोलन की अटकलों के लिए एक या एक से अधिक मुद्राओं में जमा रखता है
- ऑनलाइन इक्विटी ट्रेडिंग खाता: अनुमति देता हैनिवेश इक्विटी में, आईपीओ,म्यूचुअल फंड्स, और मुद्रा व्युत्पन्न उपकरण
- ऑनलाइन मुद्रा व्यापार खाता: मुद्राओं में व्यापार करने में मदद करता है
- ऑनलाइन डेरिवेटिव ट्रेडिंग खाता: के भविष्य के मूल्य पर जुए से लाभ प्राप्त करने में मदद करता हैआधारभूत संपत्ति, जैसे विनिमय दर, मुद्राएं, स्टॉक, और बहुत कुछ
ट्रेडिंग खाता खोलना
ट्रेडिंग यात्रा शुरू करने के लिए, पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम एक ट्रेडिंग खाता खोलना है। आप चाहें तो ऑनलाइन ट्रेडिंग अकाउंट से भी जा सकते हैं। नीचे संक्षेप में कुछ चरण दिए गए हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं:
एक विश्वसनीय खोजने के लिए पहला कदम है,सेबी-पंजीकृत ब्रोकर क्योंकि आपको डीमैट खाता खोलना पड़ सकता है। और, इसमें आपकी मदद करने के लिए, चयनित ब्रोकर के पास सेबी द्वारा जारी एक व्यवहार्य पंजीकरण संख्या होनी चाहिए।
एक बार जब आपको एक विश्वसनीय ब्रोकर मिल जाए, तो अधिक विवरण में जाएं और खाता खोलने की उनकी प्रक्रिया के बारे में पता करें। उनके द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं, उनकी फीस, अतिरिक्त शुल्क, और बहुत कुछ के बारे में और जानें।
एक सामान्य प्रक्रिया में केवाईसी के लिए कुछ फॉर्म भरना शामिल है, जैसे खाता खोलने का फॉर्म, ग्राहक पंजीकरण फॉर्म और बहुत कुछ।
मुट्ठी भर प्रासंगिक दस्तावेज जमा करना भी आवश्यक है, जैसे कि आईडी प्रूफ, पासपोर्ट, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और एड्रेस प्रूफ।
आपके दस्तावेज़ों और प्रपत्रों को संसाधित करने में कुछ समय लगता है। और फिर, सब कुछ सत्यापित होने के बाद आपको अपना ट्रेडिंग खाता प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
एक होने के नातेइन्वेस्टर, एक ट्रेडिंग खाता होने से इस क्षेत्र में कई अवसर खोलने में मदद मिल सकती है। एक कुशल और सीधी प्रक्रिया के साथ, आपको बस एक विश्वसनीय ब्रोकर ढूंढना है, फॉर्म भरना है, दस्तावेज जमा करना है और अपनी यात्रा शुरू करनी है।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 709