Venture Capital क्या है?

उद्यम पूंजी (Venture Capital) निजी इक्विटी वित्तपोषण का एक रूप है जो उद्यम पूंजी फर्मों या स्टार्टअप, प्रारंभिक चरण और उभरती कंपनियों को प्रदान की जाती है जिन्हें उच्च विकास क्षमता माना जाता है या जिन्होंने उच्च विकास का प्रदर्शन किया है।

वेंचर कैपिटल क्या है? [What is Venture Capital? In Hindi]

वेंचर कैपिटल (वीसी) निजी इक्विटी का एक रूप है और एक प्रकार का वित्तपोषण है जो निवेशक स्टार्टअप कंपनियों और छोटे व्यवसायों को प्रदान करते हैं जिनके बारे में माना जाता है कि उनके पास दीर्घकालिक विकास क्षमता है। उद्यम पूंजी आम तौर पर अच्छी तरह से निवेशकों, निवेश बैंकों और किसी भी अन्य वित्तीय संस्थानों से आती है। हालांकि, यह हमेशा एक मौद्रिक रूप नहीं लेता है; इसे तकनीकी या प्रबंधकीय विशेषज्ञता के रूप में भी प्रदान किया जा सकता है। उद्यम पूंजी आम तौर पर असाधारण विकास क्षमता वाली छोटी कंपनियों या उन कंपनियों को आवंटित की जाती है जो तेजी से बढ़ी हैं और विस्तार जारी रखने के लिए तैयार हैं।

हालांकि यह उन निवेशकों के लिए जोखिम भरा हो सकता है जो फंड लगाते हैं, लेकिन औसत से अधिक रिटर्न की संभावना एक आकर्षक अदायगी है। नई कंपनियों या उद्यमों के लिए जिनका सीमित परिचालन इतिहास (दो वर्ष से कम) है, Venture capital Funding capital जुटाने के लिए एक लोकप्रिय - यहां तक ​​कि आवश्यक - स्रोत बन रहा है, खासकर यदि उनके पास पूंजी बाजार, बैंक ऋण, या अन्य ऋण साधनों तक पहुंच की कमी है। . मुख्य नकारात्मक पक्ष यह है कि निवेशकों को आमतौर पर कंपनी में इक्विटी मिलती है, और इस प्रकार, कंपनी के फैसलों में एक कहावत होती है।

'उद्यम पूंजी' की परिभाषा [Definition of "Venture Capital"] [In Hindi]

बढ़ने की क्षमता वाली स्टार्ट-अप कंपनियों को एक निश्चित मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है। धनवान निवेशक लंबी अवधि के विकास के नजरिए से ऐसे व्यवसायों में अपनी पूंजी निवेश करना पसंद करते हैं। इस पूंजी को उद्यम पूंजी के रूप में जाना जाता है और निवेशकों को Venture capitalist कहा जाता है।

Venture Capital क्या है?

उद्यम पूंजी के प्रकार [Type of Venture Capital] [In Hindi]

Venture Capital को उस चरण के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है जिसमें इसे निवेश किया जा रहा है। सामान्यतः यह निम्न 6 प्रकार का होता है -

  1. सीड फंडिंग (Seed Feeding): जैसा कि यह सुझाव देता है, सीड फंडिंग या सीड कैपिटल एक कंपनी की स्थापना के लिए प्रारंभिक गतिविधियों का संचालन करने वाले उद्यमियों की मदद करने के लिए निवेश की गई पूंजी है। इसमें उत्पाद अनुसंधान और विकास, बाजार अनुसंधान, व्यवसाय, व्यवसाय योजना निर्माण आदि शामिल हो सकते हैं। सीड फंडिंग भी मालिकों द्वारा स्वयं या उनके परिवार के सदस्यों और दोस्तों द्वारा प्रदान की जा सकती है।
  2. स्टार्ट-अप पूंजी (Start-up Capital): स्टार्ट-अप पूंजी का उपयोग अक्सर सीड फंडिंग के साथ एक दूसरे के स्थान पर किया जाता है। हालांकि, मामूली अंतर हैं। आमतौर पर, व्यवसाय के मालिक उन प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद स्टार्ट-अप पूंजी का लाभ उठाते हैं जिनमें सीड फंडिंग शामिल होती है। इसका उपयोग उत्पाद प्रोटोटाइप बनाने, महत्वपूर्ण प्रबंधन कर्मियों को काम पर रखने आदि के लिए किया जा सकता है।
  3. पहला चरण, पहला दौर या श्रृंखला ए (First stage, first round or series A): पहला चरण उन व्यवसायों को प्रदान किया जाता है जिनके पास एक उत्पाद है और वाणिज्यिक निर्माण, बिक्री और विपणन शुरू करना चाहते हैं।
  4. एक्सपेंशन फंडिंग (Expansion Funding): जैसा कि नाम से पता चलता है, एक्सपेंशन कैपिटल वह फंड है जो किसी कंपनी को अपने परिचालन के विस्तार के लिए चाहिए होता है। धन का उपयोग नए बाजारों को टैप करने, नए उत्पाद बनाने, नए उपकरणों और प्रौद्योगिकी में निवेश करने या यहां तक ​​कि एक नई कंपनी का अधिग्रहण करने के लिए किया जा सकता है।
  5. लेट-स्टेज फंडिंग (Late Stage Funding): लेट-स्टेज फंडिंग उन व्यवसायों को दी जाती है जिन्होंने वाणिज्यिक निर्माण और बिक्री में सफलता हासिल की है। इस चरण में कंपनियों को राजस्व में जबरदस्त वृद्धि हो सकती है लेकिन कोई लाभ नहीं दिखा।
  6. ब्रिज फंडिंग (Bridge Funding): Mezzanine financing के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिज फंडिंग एक कंपनी को प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) बनाने के लिए आवश्यक अपने अल्पकालिक खर्चों को पूरा करने में मदद करती है।

वेंचर कैपिटल एक एंजेल निवेशक से कैसे भिन्न होता है?

जबकि दोनों स्टार्टअप कंपनियों को पैसा मुहैया कराते हैं, वेंचर कैपिटलिस्ट आमतौर पर पेशेवर निवेशक होते हैं जो नई कंपनियों के व्यापक पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं और नई फर्म की मदद के लिए अपने पेशेवर नेटवर्क का लाभ उठाते हैं। दूसरी ओर, एंजेल निवेशक, धनी व्यक्ति होते हैं, जो नई कंपनियों में एक शौक या साइड-प्रोजेक्ट के रूप में अधिक निवेश करना पसंद करते हैं और वही विशेषज्ञ मार्गदर्शन प्रदान नहीं कर सकते हैं। एंजेल निवेशक भी पहले निवेश करते हैं और बाद में कुलपतियों द्वारा पीछा किया जाता अप कैपिटल क्या हैं है। Velocity of Money क्या है?

उद्यम पूंजीपति कंपनी का कितना प्रतिशत हिस्सा लेते हैं?

Company stage, इसकी संभावनाओं, कितना निवेश किया जा रहा है, और निवेशकों और संस्थापकों के बीच संबंध के आधार पर, Venture Capital आम तौर पर एक नई कंपनी के स्वामित्व का 25 से 50% के बीच ले जाएगा।

वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी में क्या अंतर है?

वेंचर कैपिटल निजी इक्विटी का एक सबसेट है। Venture Capital के अलावा, निजी इक्विटी में लीवरेज्ड बायआउट, मेजेनाइन फाइनेंसिंग और निजी प्लेसमेंट भी शामिल हैं।

इस तरह के निवेश जोखिम भरे होते हैं क्योंकि वे तरल होते हैं, लेकिन अगर सही उद्यम में निवेश किया जाए तो प्रभावशाली रिटर्न देने में सक्षम हैं। उद्यम पूंजीपतियों का प्रतिफल कंपनी की वृद्धि पर निर्भर करता है। उद्यम पूंजीपतियों के पास उन कंपनियों के प्रमुख निर्णयों को प्रभावित करने की शक्ति है जिनमें वे निवेश अप कैपिटल क्या हैं कर रहे हैं क्योंकि यह उनका पैसा दांव पर है।

ITR-2 ई-फॉर्म में देनी होगी सैलरी ब्रेक-अप की पूरी जानकारी

आयकर विभाग ने ITR-2 फाइल करने के लिए एक्सेल फॉर्मेट में 'सॉफ्टवेयर यूटिलिटी' को जारी किया है.

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इस फॉर्म का इस्‍तेमाल उन्हें करना है, जिन्हें कैपिटल गेंस हुआ हो या वे एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी के मालिक हों.

फॉर्म 16 में अब तक दी जाने वाली जानकारी से भी ज्यादा ब्योरा इनमें मांगा गया है. वैसे, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि नए फॉर्म 16 में भी इस तरह से विस्तृत ब्रेक-अप द‍िया जाएगा या नहीं.

अगर फॉर्म 16 में ब्रेक-अप नहीं दिया जाएगा तो करदाताओं को काफी गुणा-भाग करना पड़ेगा. इसके लिए सैलरी स्लिप जैसे विभिन्न स्रोतों से काफी आंकड़े जुटाने की जरूरत होगी.

वेतन पाने वाले लोगों को जो भी भत्ते मिलते हैं, उन्हें अलग से फाइल करना पड़ेगा. इसके लिए फॉर्म के ड्रॉप डाउन मून में 17 ऑप्शन दिए गए हैं. इनमें बेसिक सैलरी, डियरनेस अलाउंस, हाउस रेंट अलाउंस (HRA), ग्रेच्युटी इत्यादि शामिल हैं.

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(इनकम टैक्स ई-फाइलिंग वेबसाइट पर उपलब्ध ITR2 फॉर्म)

टैक्समैन डॉट कॉम में डीजीएम चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन वाधवा कहते हैं, "फॉर्म 16 और आईटीआर फॉर्मों में सैलरी शेड्यूल को बदला गया है. इसका मकसद इन्हें एक दूसरे के साथ सिंक करना है. ITR-2 के रिटर्न फाइलिंग यूटिलिटी में सैलरी के बेहद बुनियादी कंपोनेंट देने के लिए कहा गया है. इनमें बेसिक सैलरी, HRA, LTA, चिल्ड्रेन एजुकेशन अलाउंस इत्यादि शामिल हैं. हालांकि, अधिसूचित फॉर्म 16 में कुल टैक्स योग्य सैलरी की एक फील्ड है. यह सेक्शन 17(1) के तहत आती है. फॉर्म 16 कर्मचारियों को कंपनियां देती हैं. क्या कंपनियों को भी फॉर्म 16 में ये सभी ब्योरे देने होंगे, यह देखना होगा. तस्वीर तभी साफ होगी जब विभाग चौथी तिमाही के वास्ते TDS रिटर्न के लिए यूटिलिटी को जारी करेगा."

इसी तरह अगर आपने रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT) में निवेश किया है तो इस तरह के स्रोत से हुई आमदनी को 'इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी' के मद में देना होगा.

वाधवा कहते हैं, "REIT मुख्य रूप से रेंटल इनकम से कमाएंगे. ट्रस्ट को हुई इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आएगी. हालांकि, जब इसे यूनिट होल्डरों के बीच बांटा जाएगा तब इस पर टैक्स लगेगा."

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अब Infosys भी शेयर बायबैक करने की तैयारी में, जानिए आखिर ऐसा क्याें करती है कंपनियां

इंफाेसिस ओपन मार्केट रूप से अधिकतम करीब 5.3 करोड इक्विटी शेयरों का बायैबक करेगी

नई दिल्ली. इंफोसिस (Infosys) ने कहा है कि वह 1,750 रुपए प्रति शेयर भाव पर अपने 9,200 करोड़ रुपए के शेयर बायबैक ( buyback ) करेगी. इस बायबैक की ऑफर प्राइस शेयरों की वर्तमान प्राइस से करीब 30 फीसदी ज्यादा है. इंफाेसिस पहली कंपनी नहीं है जिससे अपने शेयर बायबैक करने की घाेषणा की है. वर्तमान में 10 से ज्यादा बॉयबैक ऑफर चालू हैं. इसमें HPCL, Jagran Prakashan, NIIT, Rane Braking, Aarti Drugs और Gujarat Apollo Industries के बॉयबैक शामिल हैं. क्याेंकि बॉयबैक को कोई बेहतर अधिग्रहण का मौका न होने और दूसरे विकल्प न होने पर कंपनियों के लिए सरप्लस फंड को उपयोग में लाने का सबसे बेहतर तरीका समझा जाता है. यही वजह है कि इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि 2020-21 में 35,000 करोड़ रुपये के कुल 61 बॉयबैक ऑफर आए. सिर्फ साल 2021 के शुरुआती 3 महीनों में हमको 2,000 करोड़ रुपये के 16 बॉयबैक ऑफर देखने को मिले.

इंफोसिस भी ओपन मार्केट रूप अप कैपिटल क्या हैं से अधिकतम करीब 5.3 करोड इक्विटी शेयरों का बायैबक करेगी जो उसके पेड - अप कैपिटल के 1.23 फीसदी हैं. कंपनी की बॉयबैक कमेटी उस तरीके और फ्रिक्वेंसी का निर्धारण करेगी जिसके आधार पर बाजार से शेयरों का बॉयबैक किया जाएगा.

बायबैक है क्या ?

सरल शब्दों में बायबैक का मतलब होता है कि कंपनी बाजार से अपने ही शेयर खरीदने जा रही है. ये प्रक्रिया दो तरीके से सम्पन्न की जाती है. इसके पहले तरीके को ओपन मार्केट रूट ( खुले बाजार में खरीदारी ) कहा जाता है जिसके तहत जिसके तहत कंपनी अपने ही शेयरों को सेकेंडरी मार्केट से खरीदती है. जबकि दूसरे तरीके को टेंडर ऑफर रूट कहा जाता है जिसमें शेयरधार कंपनी की तरफ से रखे गए ऑफर के तहत अपने शेयर टेंडर कर सकते हैं. बायबैक को सामान्यतौर पर शेयरधारकों को फायदा पहुचानें या कंपनी की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने के एक तरीके के तौर पर देखा जाता है. क्योंकि इससे कंपनी फाइनेंशियल रेश्यो ( वित्तीय अनुपातों ) में सुधार आता है और कंपनी का वैल्यूएशन बेहतर होता है. ये कंपनी में उसके प्रोमोटरों के विश्वास को भी बताता है. क्योंकि बायबैक के बाद कंपनी में प्रोमोटरों की हिस्सेदारी बढ़ती है. प्रोमोटर अपनी हिस्सेदारी तभी बढ़ाना चाहेंगे जब कंपनी का आगे का आउटलुक मजबूत हो. बता दें कि बायबैक में खरीदे गए या टेंडर किए गए शेयर रद्द (extinguishe) कर दिए जाते हैं और आउट स्टैडिंग शेयरों की कुल संख्या कम हो जाती है.

Buyback offer के निवेशकों के लिए क्या हैं मायने ?

शेयर बाजार सामान्यतौर पर बायबैक ऑफर को सकारात्मक तौर पर लेता है. बाजार ये मानकर चलता है कि जिन प्रमोटरों को इस बात का भरोसा होता है कि उनकी कंपनी मजबूत है और आगे भी उसके कारोबार में ग्रोथ जारी रहेगी वही बायबैक लाने का विकल्प अपनाते हैं. इस बात के साक्ष्य भी हैं कि buyback ऑफर के बाद शेयरों में बढ़ोत्तरी होती है. बायबैक से कंपनी के वैल्यूएशन में भी सुधार होता है. ये देखने को मिला है कि बायबैक ऑफर के बाद अर्निंग प्रति शेयर (EPS), रिटर्न ऑन कैपिटल (return on capital) और रिटर्न ऑन नेटवर्थ जैसे अहम रेश्यो में बायबैक के बाद सुधार देखने को मिलता है.

सबसे अहम बात ये है कि शेयर बायबैक ऑफर चाहे टेंडर रूट से लाया गया हो या ओपन मार्कट रूट से शेयर धारकों को हरहाल में फायदा होता है. इसके अलावा चूंकि शेयर बायबैक प्रस्ताव बाजार भाव से प्रीमियम पर लाए जाते हैं इस लिए ऑफर प्राइज कई मायनों में बेंचमार्क बन जाते हैं. इंफोसिस के बायबैक के मामले में इसका ऑफर प्राइस शेयर के बाजार भाव से 29 फीसदी ज्यादा प्रीमियम पर है.

Buyback offer के निवेशकों के लिए क्या हैं मायने ?

बायबैक के जरिए कंपनी पर प्रोमोटर्स की होल्ड या अप कैपिटल क्या हैं पकड़ और मजबूत हो जाती है क्योंकि बायबैक के बाद कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या कम हो जाती है. इसका महत्व उस समय समझ में आता है जब किसी कंपनी को होस्टाइल तरीके ( जबरन ) से अधिग्रहित करने की कोशिश होती है. क्योंकि जिस कंपनी में प्रोमोटरों का होल्डिंग ज्यादा होती है उसका होस्टाइल एक्वीजीशन करना मुश्किल अप कैपिटल क्या हैं होता है. इसके अलावा बायबैक कंपनी को निवेशकों के बीच ज्यादा लोकप्रिय बनाता है. इसकी वजह ये है कि बायबैक निवेशकों को फायदा पहुचाने का ज्यादा टैक्स इफिसिएंट तरीका होता है. इसका मतलब ये है कि बायबैक के जरिए मिलने वाली राशि पर लागू टैक्स की दर डिविडेंड से मिलने वाली राशि पर लागू टैक्स की दर से कम होती है. बता दें की डिविडेंड में तीन स्तरों पर टैक्स चुकाना होता है.

इसके अलावा बायबैक किसी कंपनी की पूंजी घटाने का आसाना और जल्दी से पूरा होने वाला तरीका है. समान्य तरीके से पूंजी घटाने के लिए किसी कंपनी को National Company Law Tribunal (NCLT) से अनुमति लेनी होती है. इसके अलावा कंपनियां मंदी और बाजार के उतार - चढ़ाव की स्थिति में अपने शेयर प्राइस को सपोर्ट देनें के लिए भी ये तरीका अपनाती हैं.

कंपनियों और निवेशकों के लिए बायबैक की ऊपर बताई गई अहमियत के अलावा कुछ और भी ऐसे कारण हैं , जिनकी वजह से बाजार बायबैक को सकारात्मक नजरिए से देखता है . बायबैक के जरिए कंपनियां अपने सरप्लस कैश को उपयोग में ला सकती हैं.शेयर होल्डर्स के फंड को कंपनी के ऊपर अतिरिक्त उत्तरदायित्व समझा जाता है. बायबैक के जरिए शेयरधारकों के फंड में होने वाली कमी से लिस्टेड कंपनी के ओवरऑल दायित्व में कमी आती है जिससे उसकी बैलेंस शीट मजबूत होता है.

इंफोसिस के शेयर धारकों के लिए बायबैक ऑफर के क्या हैं मायने

इंफोसिस ओपन मार्केट रूप से अधिकतम करीब 5.3 करोड इक्विटी शेयरों का बायबैक करेगी जो उसके पेड - अप कैपिटल के 1.23 फीसदी हैं. इसका मतलब ये है कि कंपनी के वर्तमान शेयर धारक इस ऑफर में सीधे अपने शेयर टेंडर नहीं कर पाएंगे. लेकिन इस बायबैक ऑफर से कंपनी के शेयर धारकों को अप्रत्यक्ष फायदा होगा क्योंकि कंपनी द्वारा करीब 30 फीसदी प्रीमियम यानी 1,750 रुपये प्रति शेयर के भाव पर रखे गए इस ऑफर से बाजार के सेंटीमेंट को बूस्ट मिलेगा. जिससे सेकेंड्री मार्केट में शेयरों के भाव में बढ़त देखने को मिलेगी और शेयर धारक अप्रत्यक्ष रूप से इसका लाभ हासिल करेंगे.

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Paytm लेकर आया शेयर बायबैक प्लान, पहले जान लें क्या है यह प्लान ?

Kavita Singh Rathore

Paytm Share Buyback Plan : जहां कंपनियां अपना IPO मुनाफे के लिए लती हैं, वहीं वॉलेट सेवा देने वाली कंपनी Paytm अप कैपिटल क्या हैं की पैरेंट कंपनी वन97 कम्युनिकेशंस लिमिटेड (one97 Communications Limited) का IPO लॉन्च होते ही लोगों के बड़े नुकसान का कारण बन गया। इस IPO में निवेश करने वाले निवेशकों का सारा पैसा डूब ही गया। इतना ही नहीं Paytm के इस IPO को सबसे बर्बाद IPO के तौर पर तक देखा गया। इन सब के बाद अब कंपनी ने एक बड़ा फैसला लिया है। इस फेसले के तहत वह शेयर वापस खरीदेगी। कंपनी के इस प्लान को मंजूरी भी मिल गई है।

Paytm ने बनाया शेयर बायबैक प्लान :

जी हां, Paytm की पैरेंट कंपनी वन97 कम्युनिकेशंस लिमिटेड (one97 Communications Limited) की तरफ से 12 दिसंबर को 850 करोड़ रुपए के शेयर बायबैक प्लान को मंजूरी दे दी गई है। हालांकि, इस योजना में बायबैक टैक्स और अन्य ट्रांजैक्शन कॉस्ट को शामिल नहीं किया गया है। कंपनी ओपन मार्केट से 810 रुपए प्रति शेयर की कीमत पर और 6 महीने की अधिकतम अवधि के अंदर ये शेयर खरीदेगी। इस बारे में जानकारी तब सामने आई जब कंपनी ने स्टॉक एक्सचेंजों को इसकी सूचना दी है। इस मामले में Paytm का कहना है कि,

"मैक्सिमम बायबैक प्राइस और मैक्सिमम बायबैक साइज पर वापस खरीदे गए शेयरों का इंडिकेटिव मैक्सिमम नंबर अप कैपिटल क्या हैं अप कैपिटल क्या हैं 10,493,827 होगा। यह मार्च 2022 तक कंपनी का पेड-अप शेयर कैपिटल का लगभग 1.62% है। 850 करोड़ रुपए के फुल बायबैक और बायबैक टैक्स मिलाकर कुल रकम लगभग 1,048 करोड़ रुपए से ज्यादा हो जाएगी।"

इस प्रीमियम पर मिलेगा इतना बायबैक :

बायबैक प्राइस मंगलवार की क्लोजिंग प्राइस से लगभग 50% के प्रीमियम पर तय किया गया है। वर्तमान समय में Paytm के शेयरों का इश्यू प्राइस 2,150 रुपए बताया गया है। 18 नवंबर 2021 को इसकी लिस्टिंग करीब 10% डिस्काउंट पर 1,950 रुपए में हुई थी। 13 दिसंबर 2022 को ये शेयर की कीमत 539.50 रुपए पर बंद हुई थी। इस प्रकार देखा जाए तो, शेयर की कीमत अभी भी इश्यू प्राइस से 70% से ज्यादा नीचे ही है।

क्या है यह शेयर बायबैक प्लान ?

बताते चलें, शेयर बायबैक प्लान एक इसी योजना है, जिसके तहत कंपनियां अपने ही शेयर पब्लिक से वापस खरीद लेती हैं। ज्यादातर कंपनियां शेयर बायबैक में शेयर की मौजूदा कीमत पर प्रीमियम देती हैं। कंपनियां ऐसा इसलिए करती है क्योंकि, कंपनी अपने शेयरधारकों के लिए वैल्यू (वैल्यू का मतलब शेयर की बढ़ती कीमत) बनाना है। बता दें, बायबैक योजना के तहत कंपनी किसी भी शेयरहोल्डर पर अपने शेयर बेचने को लेकर दबाव नहीं बना सकती है।

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