गूगल प्ले स्टोर से पैसे कैसे कमाए – Play Store se Paise kaise Kamaye
Google Play Store का इस्तेमाल लगभग सभी एंड्राइड यूजर अपने मोबाइल में जरुर करते है जिससे कि वह अपने Android फ़ोन में आसानी से कोई भी एप्लीकेशन को डाउनलोड कर सकें. लेकिन क्या आप जानना चाहते हैं कि Play Store se Paise kaise Kamaye तो इस लेख को आप पूरा जरुर पढ़ें इसे पढने के बाद आप समझ जायेंगे कि क्या वाकई में Play Store से पैसे कमा सकते हैं और यदि हाँ तो वे तरीके कौन से हैं जिनके द्वारा आप Play Store से पैसे कमा सकते हैं.
इस लेख के माध्यम से हम आपको गूगल प्ले स्टोर के द्वारा पैसे कैसे कमायें की पूरी जानकारी देंगे जिससे कि आपको प्ले स्टोर से पैसे कमाने के तरीकों के बारे में पता चल सके. तो चलिए बिना किसी देरी के शुरू करते हैं इस लेख को और जानते हैं गूगल प्ले स्टोर से पैसे कमाने के तरीके.
जब शेयर मार्केट गिरता है तो कहां जाता है आपका पैसा? यहां समझिए इसका गणित
Share market: जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. आइए इसका जवाब बताते हैं.
- शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है
- अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो उसके शेयर के दाम बढ़ेंगे
- राजनीतिक घटनाओं का भी शेयर मार्केट पर पड़ता है असर
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नई दिल्ली: आपने शेयर मार्केट (Share Market) से जुड़ी तमाम खबरें सुनी होंगी. जिसमें शेयर मार्केट में गिरावट और बढ़त जैसी खबरें आम हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जब शेयर मार्केट डाउन मार्केट मेकर्स पैसा कैसे कमाते हैं? होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. इस सवाल का जवाब है नहीं. आपको बता दें कि शेयर मार्केट में डूबा हुआ पैसा गायब हो जाता है. आइए इसको समझाते हैं.
कंपनी के भविष्य को परख कर करते हैं निवेश
आपको पता होगा कि कंपनी शेयर मार्केट में उतरती हैं. इन कंपनियों के शेयरों पर निवेशक पैसा लगाते हैं. कंपनी के भविष्य को परख कर ही निवेशक और विश्लेषक शेयरों में निवेश करते हैं. जब कोई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसके शेयरों को लोग ज्यादा खरीदते हैं और उसकी डिमांड बढ़ जाती है. ऐसे ही जब किसी कंपनी के बारे में ये अनुमान लगाया जाए कि भविष्य में उसका मुनाफा कम होगा, तो कंपनी के शेयर गिर जाते हैं.
डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है शेयर
शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है. लिहाजा दोनों ही परिस्थितियों में शेयरों का मूल्य घटता या बढ़ता जाता है. इस बात को ऐसे लसमझिए कि किसी कंपनी का शेयर आज 100 रुपये का है, लेकिन कल ये घट कर 80 रुपये का हो गया. ऐसे में निवेशक को सीधे तौर पर घाटा हुआ. वहीं जिसने 80 रुपये में शेयर खरीदा उसको भी कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन अगर फिर से ये शेयर 100 रुपये का हो जाता है, तब दूसरे निवेशक को फायदा होगा.
कैसे काम करता है शेयर बाजार
मान लीजिए किसी के पास एक अच्छा बिजनेस आइडिया है. लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए पैसा नहीं है. वो किसी निवेशक के पास गया लेकिन बात नहीं बनी और ज्यादा पैसे की जरूरत है. ऐसे में एक कंपनी बनाई जाएगी. वो कंपनी सेबी से संपर्क कर शेयर बाजार में उतरने की बात करती है. कागजी कार्रवाई पूरा करती है और फिर शेयर बाजार का खेल शुरू होता है. शेयर बाजार में आने के लिए नई कंपनी होना जरूरी नहीं है. पुरानी कंपनियां भी शेयर बाजार में आ सकती हैं.
शेयर का मतलब हिस्सा है. इसका मतलब जो कंपनियां शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट में लिस्टेड होती हैं उनकी हिस्सेदारी बंटी रहती है. स्टॉक मार्केट में आने के लिए सेबी, बीएसई और एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) में रजिस्टर करवाना होता है. जिस कंपनी में कोई भी निवेशक शेयर खरीदता है वो उस कंपनी में हिस्सेदार हो जाता है. ये हिस्सेदारी खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करती है. शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. कंपनी और शेयरधारकों के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर्स ही करते हैं.
निफ्टी और सेंसेक्स कैसे तय होते हैं?
इन दोनों सूचकाकों को तय करने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो लोग उसके शेयर खरीदना चाहेंगे और शेयर की मांग बढ़ने से उसके दाम बढ़ेंगे. अगर कंपनी का प्रदर्शन खराब रहेगा तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देंगे और शेयर की कीमतें गिरने लगती हैं.
इसके अलावा कई दूसरी चीजें हैं जिनसे निफ्टी और सेंसेक्स पर असर पड़ता है. मसलन भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बारिश अच्छी या खराब होने का असर भी शेयर मार्केट पर पड़ता है. खराब बारिश से बाजार में पैसा कम आएगा और मांग घटेगी. ऐसे में शेयर बाजार भी गिरता है. हर राजनीतिक घटना का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. चीन और अमेरिका के कारोबारी युद्ध से लेकर ईरान-अमेरिका तनाव का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. इन सब चीजों से व्यापार प्रभावित होते हैं.
Women’s Day 2022: महिला निवेशकों के लिए शेयर मार्केट में निवेश के ये हैं 5 गोल्डन रूल, सही इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी से बन सकते हैं अमीर
Women’s Day 2022: शेयर बाजार से मुनाफा कमाने के लिए बहुत तेज बुद्धि की ही जरूरत नहीं है, बल्कि एक अनुशासित और व्यावहारिक तरीके से भी निवेश करके अच्छा खासा रिटर्न जनरेट किया जा सकता है.
आम तौर पर महिलाओं को एक बेहतर निवेशक माना जाता है.
Women’s Day 2022: कहा जाता है कि शेयर बाजारों में निवेश करने वालों में से 5 फीसदी से भी कम निवेशक ही लगातार मुनाफा कमा पाते हैं. शेयर बाजार से मुनाफा कमाने के लिए बहुत तेज बुद्धि की ही जरूरत नहीं है, बल्कि एक अनुशासित और व्यावहारिक तरीके से भी निवेश करके अच्छा खासा रिटर्न जनरेट किया जा सकता है. यही वजह है आम तौर पर महिलाओं को एक बेहतर निवेशक माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में बचत करने में अच्छी होती हैं और प्राइस व वैल्यू के बीच बेहतर अंतर कर सकती हैं. हालांकि, मार्केट मेकर्स पैसा कैसे कमाते हैं? शेयर बाजार में निवेश करने के कुछ गोल्डन रूल हैं, जो महिलाओं को पैसा कमाने में मदद कर सकते हैं. आइए जानते हैं कि य रूल कौन से हैं.
एंट्री रूल्स
जिस तरह हम कोई सामान खरीदते हैं तो उसकी कीमत और क्वालिटी को परखते हैं, उसी तरह स्टॉक चुनते समय भी यही तर्क काम करता है. यह नियम महिलाओं को सही स्टॉक चुनने में मदद कर सकता है.
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क्वालिटी स्टॉक्स खरीदें
क्वालिटी वाले स्टॉक खरीदने का मतलब उन कंपनियों के स्टॉक खरीदना है, जिनके पास एक स्ट्रांग मैनेजमेंट है और जिन्होंने अलग-अलग बिजनेस सायकल का सामना किया है.
ऐसी कंपनियों में निवेश करें, जिन्हें आप अपने बच्चों को समझा सकें:
ऐसा माना जाता है कि ऐसी कंपनियों में निवेश करना चाहिए, जिन्हें हम आसानी से समझ सकें और किसी और को भी समझा सकें. ऐसी कंपनियों में निवेश का मतलब यह है कि जब बिजनेस में कुछ गड़बढ़ हो जाता है, तो ऐसे में यह समझना आसान होता है कि यह ठीक होगा या नहीं, और होगा भी तो कब तक होगा. इस आधार पर यह फैसला लेना भी आसान हो जाता है कि कंपनी के शेयरों में गिरावट पर और शेयर खरीदने चाहिए या नहीं.
डायवर्सिफिकेशन है जरूरी
निवेश करते समय डायवर्सिफिकेशन का ध्यान रखना जरूरी है. अलग-अलग सेक्टर में एक से ज्यादा स्टॉक में निवेश किया जाना चाहिए. डायवर्सिफिकेशन से किसी मार्केट मेकर्स पैसा कैसे कमाते हैं? एक सेक्टर में गिरावट पर भी ज्यादा नुकसान से बचा जा सकता है.
अपने निवेश की लगातार निगरानी जरूरी है. किसी भी स्टॉक में कमजोरी के संकेत होने पर फौरन जरूरी कदम उठाया जाना चाहिए. साथ ही कंपनियों की स्थिति को भी लगातार मॉनिटर करना चाहिए.
(By Vikas Singhania, CEO, TradeSmart)
(शेयर बाजार में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं. कृपया कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श लें.)
Box Office Collection: फिल्म का कलेक्शन तो 200-300 करोड़ हो जाता है… मगर इसमें फिल्म मेकर को कमाई कितनी होती है?
Box Office Collection: हाल ही में कई फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन चर्चा में है तो जानते हैं कि इस कलेक्शन से फिल्म मेकर्स को कैसे फायदा होता है.
कोरोनावायरस की वजह से फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) नुकसान में है. लंबे समय से फिल्म थियेटर बंद थे और सिनेमाघरों का बिजनेस (Cinemahall Business) ठप पड़ा है. हालांकि, हाल ही में रिलीज हुई कुछ फिल्मों से बॉक्स ऑफिस पर एक बार फिर बहार देखने को मिल रही है. फिल्म कश्मीर फाइल्स के बाद अब राजामौली की फिल्म आरआरआर बॉक्स ऑफिस (Box Office Collection) पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है. बताया जा रहा है फिल्म ने साढ़े 300 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर ये बॉक्स कलेक्शन क्या है?
अब लोगों के मन में ये सवाल आता है कि सिनेमाघरों में जितना कलेक्शन होता है, उससे फिल्म मेकर को कितनी कमाई होती है. दरअसल, कई लोग इस कलेक्शन को ही कमाई मानते हैं, ऐसे में जानते हैं कि आखिर इस कलेक्शन में कमाई का कितना हिस्सा होता है.
क्या होता है बॉक्स ऑफिस कलेक्शन?
बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का मतलब है सिनेमाघरों से होने वाली टिकटों की कमाई. दरअसल, एक कलेक्शन होता है ग्रॉस कलेक्शन. जिसमें टिकटों की खरीद से आया पूरा पैसा शामिल होता है. वहीं एक नेट कलेक्शन होता है, जिसमें एंटरटेनमेंट टैक्स और अन्य खर्च आदि हटा दिए जाते हैं.
कैसे होती है कमाई?
वहीं, अगर कमाई की बात करें तो कमाई टिकटों से ही नहीं बल्कि थिएटर के बाहर से सैटेलाइट राइट्स, म्यूजिक राइट्स आदि की वजह से भी होती है. थियेटर मार्केट मेकर्स पैसा कैसे कमाते हैं? मालिकों के पास टोटल कलेक्शन इकठ्ठा होता है और कुल कलेक्शन में से मनोरंजन कर (लगभग 30%) काटा जाता है. यह हर राज्य सरकार के हिसाब से अलग अलग तय होता है. ये ही टैक्स राज्य सरकारों की ओर से माफ किया जाता है, जो कश्मीर फाइल्स को लेकर कई राज्यों ने किया है.
इसके बाद बारी आती है डिस्ट्रीब्यूटर की. मनोरंजन कर चुकाने के बाद एग्रीमेंट के अनुसार जितना रुपया बचता है उसका एक हिस्सा डिस्ट्रीब्यूटर को लौटा दिया जाता है. डिस्ट्रीब्यूटर्स को थियेटर मालिकों से मिलने वाला रिटर्न सप्ताह के आधार पर दिया जाता है.
कितना हिस्सा होता है डिस्ट्रीब्यूटर का?
अगर फिल्म मल्टीप्लेक्स में रिलीज होती है तो पहले सप्ताह के कुल कलेक्शन का 50%, दूसरे सप्ताह में मार्केट मेकर्स पैसा कैसे कमाते हैं? 42%, तीसरे में 37% और चौथे के बाद 30% भाग फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर को जाता है. वहीं, यह किसी कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर अलग अलग भी हो सकता है. अगर फिल्म सिंगल स्क्रीन पर रिलीज होती है तो वितरक को फिल्म रिलीज़ के पहले सप्ताह से लेकर जब तक फिल्म चलती है वितरक को सामन्यतः 70-90% भाग देना पड़ता है.
इसके अलावा डिस्ट्रीब्यूटर को सिनेमाघरों में टिकट की बिक्री से होने वाली आय के अलावा नॉन थियेट्रिकल स्रोतों जैसे म्यूजिक राईट, सेटेलाइट अधिकार और विदेशी सब्सिडी आदि से भी इनकम होती है. बता दें कि डिस्ट्रीब्यूटर, प्रोडूसर और थियेटर मालिकों के बीच की कड़ी का काम करता है. प्रोड्यूसर अपनी फिल्म को ‘ऑल इंडिया’ के डिस्ट्रीब्यूटर को फिल्म के राइट्स दे देता है.
Box Office Collection: फिल्म का कलेक्शन तो 200-300 करोड़ हो जाता है… मगर इसमें फिल्म मेकर को कमाई कितनी होती है?
Box Office Collection: हाल ही में कई फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन चर्चा में है तो जानते हैं कि इस कलेक्शन से फिल्म मेकर्स को कैसे फायदा होता है.
कोरोनावायरस की वजह से फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) नुकसान में है. लंबे समय से फिल्म थियेटर बंद थे और सिनेमाघरों का बिजनेस (Cinemahall Business) ठप पड़ा है. हालांकि, हाल ही में रिलीज हुई कुछ फिल्मों से बॉक्स ऑफिस पर एक बार फिर बहार देखने को मिल रही है. फिल्म कश्मीर फाइल्स के बाद अब राजामौली की फिल्म आरआरआर बॉक्स ऑफिस (Box Office Collection) पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है. बताया जा रहा है फिल्म ने साढ़े 300 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर ये बॉक्स कलेक्शन क्या है?
अब लोगों के मन में ये सवाल आता है कि सिनेमाघरों में जितना कलेक्शन होता है, उससे फिल्म मेकर को कितनी कमाई होती है. दरअसल, कई लोग इस कलेक्शन को ही कमाई मानते हैं, ऐसे में जानते हैं कि आखिर इस कलेक्शन में कमाई का कितना हिस्सा होता है.
क्या होता है बॉक्स ऑफिस कलेक्शन?
बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का मतलब है सिनेमाघरों से होने वाली टिकटों की कमाई. दरअसल, एक कलेक्शन होता है ग्रॉस कलेक्शन. जिसमें टिकटों की खरीद से आया पूरा पैसा शामिल होता है. वहीं एक नेट कलेक्शन होता है, जिसमें एंटरटेनमेंट टैक्स और अन्य खर्च आदि हटा दिए जाते हैं.
कैसे होती है कमाई?
वहीं, अगर कमाई की बात करें तो कमाई टिकटों से ही नहीं बल्कि थिएटर के बाहर से सैटेलाइट राइट्स, म्यूजिक राइट्स आदि की वजह से भी होती है. थियेटर मालिकों के पास टोटल कलेक्शन इकठ्ठा होता है और कुल कलेक्शन में से मनोरंजन कर (लगभग 30%) काटा जाता है. यह हर राज्य सरकार के हिसाब से अलग अलग तय होता है. ये ही टैक्स राज्य सरकारों की ओर से माफ किया जाता है, जो कश्मीर फाइल्स को लेकर कई राज्यों ने किया है.
इसके बाद बारी आती है डिस्ट्रीब्यूटर की. मनोरंजन कर चुकाने के बाद एग्रीमेंट के अनुसार जितना रुपया बचता है उसका एक हिस्सा डिस्ट्रीब्यूटर को लौटा दिया जाता है. डिस्ट्रीब्यूटर्स को थियेटर मालिकों से मिलने वाला रिटर्न सप्ताह के आधार पर दिया जाता है.
कितना हिस्सा होता है डिस्ट्रीब्यूटर का?
अगर फिल्म मल्टीप्लेक्स में रिलीज होती है तो पहले सप्ताह के कुल कलेक्शन का 50%, दूसरे सप्ताह में 42%, तीसरे में 37% और चौथे के बाद 30% भाग फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर को जाता है. वहीं, यह किसी कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर अलग अलग भी हो सकता है. अगर फिल्म सिंगल स्क्रीन पर रिलीज होती है तो वितरक को फिल्म रिलीज़ के पहले सप्ताह से लेकर जब तक फिल्म चलती है वितरक को सामन्यतः 70-90% भाग देना पड़ता है.
इसके अलावा डिस्ट्रीब्यूटर को सिनेमाघरों में टिकट की बिक्री से होने वाली आय के अलावा नॉन थियेट्रिकल स्रोतों जैसे म्यूजिक राईट, सेटेलाइट अधिकार और विदेशी सब्सिडी आदि से भी इनकम होती है. बता दें कि डिस्ट्रीब्यूटर, प्रोडूसर और थियेटर मालिकों के बीच की कड़ी का काम करता है. प्रोड्यूसर अपनी फिल्म को ‘ऑल इंडिया’ के डिस्ट्रीब्यूटर को फिल्म के राइट्स दे देता है.
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