इन्वेस्ट करने से पहले फाइनेंशियल प्लानिंग जरूरी
अगर कोई निवेशक सही फाइनेंशियल प्लानिंग द्वारा लॉन्ग टर्म गोल्स को हासिल करने के लिए इक्विटी-ओरिएंटेड फंडों में निवेश करना शुरू करता है, तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि निवेशक बाजार में ज्यादा समय तक बने रहे. लंबी अवधि के गोल्स के लिए निवेश करने वाले निवेशक बाजार के छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज कर देते हैं. वहीं, तुरंत रिटर्न हासिल करने के लिए निवेश करने वाले नए निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराकर तुरंत अपना पैसा निकाल लेते हैं. इसलिए, निवेश करने से पहले किस कैटेगरी के फंड में कितना निवेश करना है, यह तय करने के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग करना बेहतर है.
कम समय के निवेश के लिए ये हैं 6 आकर्षक स्कीम
दो या तीन महीने की अवधि के लिए भी पैसे का निवेश किया जा सकता है और उस पर रिटर्न कमाया जा सकता है.
ऐसे में सावधानी बरतनी चाहिए और सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए. ऐसा करते समय निवेश विकल्प की बारीकियों को समझना जरूरी है.
छोटी अवधि के लिए निवेश के विकल्प में एफडी (फिक्स्ड डिपाजिट), कॉरपोरेट FD, पोस्ट ऑफिस जमा, रिकर्रिंग डिपाजिट (RD), लिक्विड फंड्स और स्वीप-इन फिक्स्स डिपाजिट जैसे कुछ विकल्प उपलब्ध हैं.
हम आपको बता रहे हैं कि कम अवधि के लिए निवेश के 6 अच्छे विकल्प क्या हैं?
1. बैंक एफडी: कई बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट पर आप अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं. किसी निवेशक को यह देखना चाहिए कि उसका निवेश महंगाई दर की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है या नहीं. बैंक FD में निवेश में सबसे अच्छी बात यह है कि निवेशक की पूंजी सुरक्षित होती है और निवेश समय पर भुनाया जा सकता है.
बैंक FD में आपको सालाना तय ब्याज दर के हिसाब से रिटर्न मिलता है. निवेश की अवधि पूरी होने पर ब्याज सहित निवेश वापस मिल जाता है. अमूमन बैंक आपकी इस रकम से आपको दिए जाने वाले ब्याज से अधिक की कमाई करता है.
2.लिक्विड फंड्स: छोटी अवधि के निवेश के लिए लिक्विड फंड युवाओं की पसंद में सबसे ऊपर है. ये वास्तव में डेट म्यूचुअल फंड्स हैं. यह कम अवधि के लिए बाजार में निवेश की सलाह देते हैं. निवेश विकल्पों में ट्रेजरी बिल्स, गर्वनमेंट सिक्योरिटीज और कॉल मनी आदि शामिल हैं. ये फंड 91 दिन की मैच्योरिटी अवधि वाले इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं.
इन फंड्स में निवेशक आमतौर पर 1 दिन से लेकर 3 महीने के लिए निवेश कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अपने बच्चे के स्कूल की फीस जमा करने से पहले आप इस फंड में रख सकते हैं. अगले दो महीने बाद परिवार के साथ छुट्टियां मनाने जाना चाहते हैं तो इसके लिए इकट्ठा किया गया किस में निवेश करना बेहतर है पैसा लिक्विड फंड्स में निवेश कर सकते हैं.
लिक्विड फंड्स ऐसे समय के लिए भी बेहतर होते हैं जबकि आपको अचानक बड़ी रकम मिलती है. मसलन ऑफिस से मिला बोनस, प्रॉपर्टी की बिक्री या इस तरह से मिलने वाली दूसरी रकम. इक्विटी फंड में निवेश करने वाले कई लोग लिक्विड फंड में पैसा लगाते हैं. उसके बाद वे इस पैसे को धीरे-धीरे एसटीपी (सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के जरिये इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. यह तरीका अपनाने से ज्यादा रिटर्न मिलता है.
3. कॉरपोरेट FD: कई कंपनियां अपनी कामकाजी जरूरतों के लिए पूंजी जुटाने के लिए कॉरपोरेट FD पेश करती हैं. कंपनियां एक निश्चित अवधि के लिए निवेशक से पूंजी लेती हैं जिसे कॉरपोरेट एफडी कहते हैं. इसके लिए वे विज्ञापन देकर निवेशकों को निवेश करने के लिए आमंत्रित करती हैं.
कॉरपोरेट एफडी पर कंपनियां बैंक और अन्य फाइनेंस कंपनियों से ज्यादा ब्याज देती हैं, क्योंकि इन कंपनियों के पास कंपनी कानून के तहत डिपॉजिट लेने का अधिकार होता है. बेहतर ब्याज दर की वजह से ही निवेशक इसमें निवेश करने के फैसले लेते हैं.
इस तरह के विकल्प में निवेश से पहले कंपनी की छवि और उसके कामकाज का ध्यान रखना चाहिए. कंपनी की बाजार में कैसी साख है? कंपनी के पैसे वापस करने का ट्रेंड क्या रहा है? कंपनी निवेशकों का पैसा अपनी किस योजना में लगाती है, उस पर यह रिटर्न निर्भर करता है. कुछ मामलों में कंपनी के एसेट को बॉन्ड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
4. पोस्ट ऑफिस जमा: कोई भी व्यक्ति पोस्ट ऑफिस में जाकर यह निवेश कर सकता है. यहां पर ब्याज दर सालाना हिसाब से दिया जाता है और इसकी गणना हर तिमाही की जाती है. बहुत मामूली रकम से भी यहां निवेश की शुरुआत की जा सकती है.
5. रेकर्रिंग डिपॉजिट (RD): हर महीने थोड़ी रकम जमा करने वाला यह प्लान एक प्रकार का टर्म डिपाजिट ही है. बैंक इसके लिए हालांकि कुछ अलग नियम अपनाते हैं. यह लोगों के लिए काफी मददगार साबित होता है.
नौकरी या रोजाना आमदनी वाले लोगों के लिए बचत करने से हिसाब से यह काफी बेहतर योजना है. इसमें नौकरी पेशा या कारोबार हर महीने अपनी बचत से रकम जमा कर ब्याज कमा सकते हैं. इसमें भी FD की तरह ही ब्याज मिलता है. निश्चित समय तक पैसे जमा कराने के बाद ब्याज सहित पूरा पैसा वापस मिल जाता है.
6. स्वीप-इन FD: अगर आपके बैंक खाते में कोई रकम लंबे समय तक रह जाए तो बैंक खुद ही उसे एफडी में बदलने के लिए कहता है. इसे स्वीप-इन FD कहते हैं. आपके सेविंग अकाउंट से लिंक्ड इस FD में आप जब चाहें इस रकम को निकाल सकते हैं.
अमूमन बचत खाते में जरूरी रकम से ज्यादा होने पर बैंक खाता धारक की इजाजत से इसे FD में बदल देते हैं. इसमें आपको बचत खाते से ज्यादा ब्याज मिलता है. कई बार तो बैंक यहां पर भी फिक्स्ड डिपाजिट की तरह ब्याज देते हैं.
Mutual Fund Investment : म्यूचुअल फंड में पहली बार निवेश कर रहे हैं तो भूलकर भी नहीं करें ये गलतियां
How to invest in Mutual Fund : म्यूचुअल फंड निवेशकों से बांड, स्टॉक और अन्य संपत्तियों में निवेश के लिए इकट्ठा की गई रकम से बनाता है. इसे पेशेवर फंड मैनेजर संचालित करते हैं, जो निवेशकों के लिए लाभ पैदा करने के लिए फंड संपत्ति आवंटित करते हैं.
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बड़ी रकम एक साथ निवेश नहीं करें
एक निवेशक को इक्विटी में बड़ी रकम को एक साथ निवेश करने से बचना चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि बाजार में गिरावट आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. पहली बार के निवेशकों को बाजार के उतार-चढ़ाव की समझ नहीं होती होती है. ऐसे में वे थोड़ा नुकसान होने पर घबरा जाते हैं. इस घबराहट में नए निवेशक अक्सर अपना पैसा निकालने का फैसला करते हैं, जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए, यह हमेशा सलाह दी जाती है कि इक्विटी-ओरिएंटेड फंडों में निवेश सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए किया जाना चाहिए.
गुल्लक थ्योरी के को फॉउंडर के प्रह्लाद
कम जोखिम वाले फंड में लगाएं पैसा
बाजार के उतार-चढ़ाव के आदी होने के लिए, ज्यादा जोखिम वाले प्योर इक्विटी फंड के बजाय पहली बार निवेशकों के लिए बेहतर यह है कि वे संतुलित फंडों में निवेश करें. नए निवेशकों को ऐसे फंडों में निवेश करना चाहिए जहां जोखिम कम हो या हो भी तो ज्यादा नहीं. इस तरह के फंडों में बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान, प्योर इक्विटी फंड से कम उतार-चढ़ाव होता है. इससे नए निवेशकों के लिए घबराहट की स्थिति नहीं बनती है. इससे नए निवेशक बाजार में ज्यादा समय तक बने रह सकते हैं और बाजार के उतार-चढ़ाव को समझ सकते हैं. इसलिए, ज्यादा जोखिम वाले प्योर इक्विटी फंड से शुरू करने के बजाय, उन फंडों में निवेश करना बेहतर है, जो तुलनात्मक रूप से कम जोखिम वाले हैं.
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इन्वेस्ट करने से पहले फाइनेंशियल प्लानिंग जरूरी
अगर कोई निवेशक सही फाइनेंशियल प्लानिंग द्वारा लॉन्ग टर्म गोल्स को हासिल करने के लिए इक्विटी-ओरिएंटेड फंडों में निवेश करना शुरू करता है, तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि निवेशक बाजार में ज्यादा समय तक बने रहे. लंबी अवधि के गोल्स के लिए निवेश करने वाले निवेशक बाजार के छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज कर देते हैं. वहीं, तुरंत रिटर्न हासिल करने के लिए निवेश करने वाले नए निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराकर तुरंत अपना पैसा निकाल लेते हैं. इसलिए, निवेश करने से पहले किस कैटेगरी के फंड में कितना निवेश करना है, यह तय करने के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग करना बेहतर है.
यह आलेख, के. प्रह्लाद ने लिखा है, जो गुल्लक थ्योरी (Gullak TheoryTM) के को-फॉउंडर हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. इन सुझावों से होने वाली किसी भी प्रकार की लाभ हानि के लिए इकनॉमिक टाइम्स उत्तरदायी नहीं होगा.
निवेश पर अच्छे रिटर्न के लिए क्या है बेहतर विकल्प, आइये जानें
नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। अक्सर लोग निवेश करने से पहले इस उलझन में फंसे रहते हैं कि सोना-चांदी, रियल एस्टेट, फिक्स डिपॉजिट या शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड में से किस एसेट क्लास में निवेश किया जाए, ताकि बेहतर रिटर्न मिले। निवेश सलाहकार (investment advisor) का कहना है कि इनमें कोई भी निवेश विकल्प सबसे बढ़िया या खराब नहीं है। अच्छा निवेश विकल्प व्यक्ति की जरूरतों, वित्तीय लक्ष्य और जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है।
कैसे तय करें विकल्प
सोना और रियल एस्टेट, दोनों लंबी अवधि के लिए अच्छे निवेश विकल्प हैं। गोल्ड भारत में भरोसेमंद निवेश के तौर पर देखा जाता है। आप फिजिकल गोल्ड के साथ डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं। सोना महंगाई के खिलाफ सबसे सुरक्षित निवेश है। वहीं, रियल एस्टेट हमेशा ही एक बड़े निवेश के तौर किस में निवेश करना बेहतर है पर देखा जाता है। रियल एस्टेट में जहां जोखिम कम रहता है, वहीं, गोल्ड में चोरी होने का डर बना रहता है। रियल एस्टेट में अतिरिक्त टैक्स बेनिफिट के साथ नियमित आय पैदा करने की क्षमता है। चाहे आवासीय हो या वाणिज्यिक, रियल एस्टेट में मासिक किराए के रूप में निवेशकों के लिए आय उत्पन्न करने की क्षमता होती है, जो कि सोने के निवेश में संभव नहीं है। जबकि इक्विटी और म्यूचुअल फंड में लंबी अवधि मे सबसे अधिक रिटर्न मिलता है, पर इनमें जोखिम भी सबसे अधिक है, तो आइये जानते है…
रियल एस्टेट
प्रॉपर्टी में निवेश मोटी पूंजी निवेश करने वालों के लिए अतिरिक्त आय का बेहतर विकल्प है। इसमें प्रॉपर्टी की कीमत और वैल्यू लगातार बढ़ती जाती है, लेकिन इसके रजिस्ट्रेशन में स्टांप ड्यूटी सहित कई तरह के शुल्क चुकाने पड़ते हैं। इसके मेंटेनेंस की लागत भी अधिक है व तरलता की कमी है।
जो निवेशक मासिक नियमित आय चाहते हैं और जो लंबी अवधि के लिए मोटा निवेश कर सकते हैं, यह उनके लिए बेहतर है।
इक्विटी में बेहतर रिटर्न
कंपनियों के स्टॉक्स यानी इक्विटी में सबसे अधिक जोखिम है, लेकिन इसमें रिटर्न भी अधिक है। निवेशक इसमें 500-1000 रुपए की छोटी रकम भी निवेश कर सकते हैं। अगर लंबी अवधि के लिए निवेश किया जाए तो सालाना 14 से 15 फीसदी तक रिटर्न मिल सकता है। हालांकि बाजार की उठापटक के कारण शॉर्ट टर्म में पैसे डूबने का जोखिम भी अधिक होता है।
जो निवेशक जोखिम उठाकर अधिक रिटर्न पाना चाहते हैं, यह उनके लिए सबसे बेहतर विकल्प है। लेकिन निवेशकों को कम से कम 5 साल के लिए निवेश करना चाहिए।
सोना
गोल्ड में निवेश हमेशा बेहतर विकल्प रहा है। इसमे लंबी अवधि में तगड़ा रिटर्न मिला है, लेकिन वैश्विक कारणों और रुपए में उतार-चढ़ाव से सोने की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। साथ ही यह शॉर्ट टर्म के लिए अच्छा निवेश विकल्प नहीं है। साथ ही टैक्स बेनिफिट भी नहीं मिलता है।
जो कमोडिटीज में निवेश कर लंबी अवधि में मुनाफा कमाना चाहते हैं और महंगाई दर से अधिक स्थिर रिटर्न चाहते हैं। साथ ही जोखिम भी नहीं लेना चाहते, उनके लिए सोना बेहतर विकल्प है। पिछले 10 साल में गोल्ड ने औसतन 10 फीसदी रिटर्न दिया है।
म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड्स इक्विटी, सरकारी प्रतिभूतियों, सोना, कॉर्पोरेट बॉन्ड जैसे कई एसेट क्लास में निवेश करते हैं, जिससे निवेश का जोखिम कम हो जाता है और बेहतर रिटर्न मिलता है। इक्विटी में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड किसी एक कंपनी के शेयर में निवेश नहीं करते, बल्कि कई कंपनियों के शेयर में निवेश करते हैं। म्यूचुअल फंड्स में सालाना औसतन 10 से 12 फीसदी रिटर्न मिलता है।
अगर जो निवेशक सीधे स्टॉक में निवेश करने से घबराते हैं, लेकिन मध्यम से ऊंचा स्तर का जोखिम उठाने को तैयार हैं, उनके लिए म्यूचुअल फंड्स बेहकर रिटर्न पाने का बेहतर विकल्प है।
कम समय के निवेश के लिए ये हैं 6 आकर्षक स्कीम
दो या तीन महीने की अवधि के लिए भी पैसे का निवेश किया जा सकता है और उस पर रिटर्न कमाया जा सकता है.
ऐसे में सावधानी बरतनी चाहिए और सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए. ऐसा करते समय निवेश विकल्प की बारीकियों को समझना जरूरी है.
छोटी अवधि के लिए निवेश के विकल्प में एफडी (फिक्स्ड डिपाजिट), कॉरपोरेट FD, पोस्ट ऑफिस जमा, रिकर्रिंग डिपाजिट (RD), लिक्विड फंड्स और स्वीप-इन फिक्स्स डिपाजिट जैसे कुछ विकल्प उपलब्ध हैं.
हम आपको बता रहे हैं कि कम अवधि के लिए निवेश के 6 अच्छे विकल्प क्या हैं?
1. बैंक एफडी: कई बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट पर आप अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं. किसी निवेशक को यह देखना चाहिए कि उसका निवेश महंगाई दर की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है या नहीं. बैंक FD में निवेश में सबसे अच्छी बात यह है कि निवेशक की पूंजी सुरक्षित होती है और निवेश समय पर भुनाया जा सकता है.
बैंक FD में आपको सालाना तय ब्याज दर के हिसाब से रिटर्न मिलता है. निवेश की अवधि पूरी होने पर ब्याज सहित निवेश वापस मिल जाता है. अमूमन बैंक आपकी इस रकम से आपको दिए जाने वाले ब्याज से अधिक की कमाई करता है.
2.लिक्विड फंड्स: छोटी अवधि के निवेश के लिए लिक्विड फंड युवाओं की पसंद में सबसे ऊपर है. ये वास्तव में डेट म्यूचुअल फंड्स हैं. यह कम अवधि के लिए बाजार में निवेश की सलाह देते हैं. निवेश विकल्पों में ट्रेजरी बिल्स, गर्वनमेंट सिक्योरिटीज और कॉल मनी आदि शामिल हैं. ये फंड 91 दिन की मैच्योरिटी अवधि वाले इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं.
इन फंड्स में निवेशक आमतौर पर 1 दिन से लेकर 3 महीने के लिए निवेश कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अपने बच्चे के स्कूल की फीस जमा करने से पहले आप इस फंड में रख सकते हैं. अगले दो महीने बाद परिवार के साथ छुट्टियां मनाने जाना चाहते हैं तो इसके लिए इकट्ठा किया गया पैसा लिक्विड फंड्स में निवेश कर सकते हैं.
लिक्विड फंड्स ऐसे समय के लिए भी बेहतर होते हैं जबकि आपको अचानक बड़ी रकम मिलती है. मसलन ऑफिस से मिला बोनस, प्रॉपर्टी की बिक्री या इस तरह से मिलने वाली दूसरी रकम. इक्विटी फंड में निवेश करने वाले कई लोग लिक्विड फंड में पैसा लगाते हैं. उसके बाद वे इस पैसे को धीरे-धीरे एसटीपी (सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के जरिये इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. यह तरीका अपनाने से ज्यादा रिटर्न मिलता है.
3. कॉरपोरेट FD: कई कंपनियां अपनी कामकाजी जरूरतों के लिए पूंजी जुटाने के लिए कॉरपोरेट FD पेश करती हैं. कंपनियां एक निश्चित अवधि के लिए निवेशक से पूंजी लेती हैं जिसे कॉरपोरेट एफडी कहते हैं. इसके लिए वे विज्ञापन देकर निवेशकों को निवेश करने के लिए आमंत्रित करती हैं.
कॉरपोरेट एफडी पर कंपनियां बैंक और अन्य फाइनेंस कंपनियों से ज्यादा ब्याज देती हैं, क्योंकि इन कंपनियों के पास कंपनी कानून के तहत डिपॉजिट लेने का अधिकार होता है. बेहतर ब्याज दर की वजह से ही निवेशक इसमें निवेश करने के फैसले लेते हैं.
इस तरह के विकल्प में निवेश से पहले कंपनी की छवि और उसके कामकाज का ध्यान रखना चाहिए. कंपनी की बाजार में कैसी साख किस में निवेश करना बेहतर है है? कंपनी के पैसे वापस करने का ट्रेंड क्या रहा है? कंपनी निवेशकों का पैसा अपनी किस योजना में लगाती है, उस पर यह रिटर्न निर्भर करता है. कुछ मामलों में कंपनी के एसेट को बॉन्ड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
4. पोस्ट ऑफिस जमा: कोई भी व्यक्ति पोस्ट ऑफिस में जाकर यह निवेश कर सकता है. यहां पर ब्याज दर सालाना हिसाब किस में निवेश करना बेहतर है से दिया जाता है और इसकी गणना हर तिमाही की जाती है. बहुत मामूली रकम से भी यहां निवेश की शुरुआत की जा सकती है.
5. रेकर्रिंग डिपॉजिट (RD): हर महीने थोड़ी रकम जमा करने वाला यह प्लान एक प्रकार का टर्म डिपाजिट ही है. बैंक इसके लिए हालांकि कुछ अलग नियम अपनाते हैं. यह लोगों के लिए काफी मददगार साबित होता है.
नौकरी या रोजाना आमदनी वाले लोगों के लिए बचत करने से हिसाब से यह काफी बेहतर योजना है. इसमें नौकरी पेशा या कारोबार हर महीने अपनी बचत से रकम जमा कर ब्याज कमा सकते हैं. इसमें भी FD की तरह ही ब्याज मिलता है. निश्चित समय तक पैसे जमा कराने के बाद ब्याज सहित पूरा पैसा वापस मिल जाता है.
6. स्वीप-इन FD: अगर आपके बैंक खाते में कोई रकम लंबे समय तक रह जाए तो बैंक खुद ही उसे एफडी में बदलने के लिए कहता है. इसे स्वीप-इन FD कहते हैं. आपके सेविंग अकाउंट से लिंक्ड इस FD में आप जब चाहें इस रकम को निकाल सकते हैं.
अमूमन बचत खाते में जरूरी रकम से ज्यादा होने पर बैंक खाता धारक की इजाजत से इसे FD में बदल देते हैं. इसमें आपको बचत खाते से ज्यादा ब्याज मिलता है. कई बार तो बैंक यहां पर भी फिक्स्ड डिपाजिट की तरह ब्याज देते हैं.
म्यूचुअल फंड: कम रिस्क के साथ चाहिए ज्यादा रिटर्न तो इंडेक्स फंड किस में निवेश करना बेहतर है में करें निवेश, ये हैं टॉप 7 फंड
कोरोना महामारी के कारण बाजार में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। इसका असर म्यूचुअल फंड पर भी पड़ा है, और इसी का नतीजा है कि पिछले 3 से 6 महीनों में इसकी कई कैटेगरी में निगेटिव रिटर्न मिला या रिटर्न कम रहा है। ऐसे में लोग अब म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने से हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में जो म्यूचुअल फंड निवेशक कम से कम जोखिम के साथ अच्छा रिटर्न चाहते हैं, उनके लिए इंडेक्स फंड सही ऑप्शन हो सकते हैं।
क्या हैं इंडेक्स फंड?
इंडेक्स फंड शेयर बाजार के किसी इंडेक्स मसलन निफ्टी 50 या सेंसेक्स 30 में शामिल कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं। इंडेक्स में सभी कंपनियों का जितना वेटेज होता है, स्कीम में उसी रेश्यो में उनके शेयर खरीदे जाते हैं। इसका मतलब यह है कि ऐसे फंडों का प्रदर्शन उस इंडेक्स जैसा ही होता है। यानी इंडेक्स का प्रदर्शन बेहतर होता है तो उस फंड में भी बेहतर रिटर्न की गुंजाइश होती है।
एक्सपेंस रेश्यो रहता है कम
इंडेक्स फंड में निवेश करने का खर्च अपेक्षाकृत कम होता है। बता दें कि अन्य प्रत्यक्ष रूप से प्रबंधित म्युचुअल फंडों में जहां एसेट मैनेजमेंट कंपनी तकरीबन 2% तक शुल्क वसूलती है, वहीं इंडेक्स फंडों का शुल्क बहुत कम यानी कि तकरीबन 0.5% से 1 के बीच होता है।
डाइवर्सिफिकेशन का मिलता है फायदा
इंडेक्स फंड से निवेशक अपना पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाई कर सकते हैं। इससे नुकसान की संभावना घट जाती है। अगर एक कंपनी के शेयर में कमजोरी आती है तो दूसरे में ग्रोथ से नुकसान कवर हो जाता है। इसके अलावा इंडेक्स फंडों में ट्रैकिंग एरर कम होता है। इससे इंडेक्स को इमेज करने की एक्यूरेसी बढ़ जाती है। इस तरह रिटर्न का सटीक अनुमान लगाना आसान हो जाता है।
कितना देना होता है टैक्स?
12 महीने से कम समय में निवेश भुनाने पर इक्विटी फंड्स से कमाई पर शार्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) टैक्स लगता है। यह मौजूदा नियमों के हिसाब से कमाई पर 15% तक लगाया जाता है। अगर आपका निवेश 12 महीनों से ज्यादा के लिए है तो इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) माना जाएगा और इस पर 10% ब्याज देना होगा।
किसके लिए सही हैं इंडेक्स फंड?
इंडेक्स फंड उन निवेशकों किस में निवेश करना बेहतर है के लिए सही हैं जो कम रिस्क के साथ शेयरों में निवेश करना चाहते हैं। इंडेक्स फंड ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर है जो रिस्क कैलकुलेट करके चलना चाहते हैं, भले ही कम रिटर्न मिले।
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