फ़ॉरेक्स क्या है

यह अनुमान है कि विश्व फ़ॉरेक्स बाजारों में औसतन 3.6 ट्रिलियन डॉलर का ट्रेड हर दिन होता है। फ़ॉरेक्स ट्रेडिंग का विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता अधिकांश हिस्सा किसी एक केंद्रीकृत या संगठित विनिमय पर नहीं बल्कि इंटरबैंक मुद्रा बाजार में ब्रोकरों के माध्यम से होता है। इंटरबैंक मुद्रा बाजार चौबीस घंटे का बाजार है जो दुनिया भर में सूर्य का अनुसरण करता है। ऑस्ट्रेलिया में खुलने और यू.एस. में बंद होने के बावजूद, विनिमय जोखिम युक्त संगठनों के लिए बाजार मौजूद है, सट्टेबाज भी विनिमय दरों में बदलाव के संबंध में उनकी अपेक्षाओं से लाभ के प्रयास में फ़ॉरेक्स बाजारों में भाग लेते हैं।

फ़ॉरेक्स का ट्रेड कौन करता है

प्रारंभिक भाग में, फ़ॉरेक्स बाजार का उपयोग संस्थागत निवेशकों द्वारा किया जाता था जो वाणिज्यिक और निवेश उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता बड़ी मात्रा में लेनदेन करते थे। आज हालांकि, आयातकों और निर्यातकों, अंतरराष्ट्रीय पोर्टफोलियो प्रबंधकों, बहुराष्ट्रीय निगमों, सट्टेबाजों, दैनिक ट्रेडर, लंबी अवधि के धारकों और हेज फंड विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता सभी फ़ॉरेक्स बाजार का उपयोग करते हैं ताकि वे माल और सेवाओं के भुगतान कर सकें, वित्तीय आस्तियों में लेन-देन कर सकें और सट्टेबाजी के माध्यम से अपने जोखिम की हेजिंग या अपने जोखिम को बढ़ाकर मुद्रा की गति के जोखिम को कम करना या सट्टेबाजी कर सकें।

आज के सूचना सुपरहाइवे में फ़ॉरेक्स बाजार अब केवल संस्थागत निवेशक के लिए नहीं है। गत 10 वर्षों में गैर-संस्थागत ट्रेडरों में फ़ॉरेक्स बाजार तक पहुंचने और इससे मिलने वाले लाभों में वृद्धि देखी गई है। मेटाकोट्स मेटाट्रेडर जैसे ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म को विशेष रूप से निजी निवेशक के लिए विकसित किया गया है और शैक्षिक सामग्री अधिक आसानी से उपलब्ध हो गई है। इन सभी ने निजी निवेशक के लिए फ़ॉरेक्स बाजार के आकर्षण को बढ़ाया है।

पिछले दशक में फ़ॉरेक्स बाजार में वृद्धि से निजी निवेशक को कई फायदे हुए हैं। ट्रेडर को शिक्षित करने के लिए ट्रेडिंग सामग्री कहीं अधिक आसानी से उपलब्ध हो गई है। फोरम के माध्यम से सहायता सेवाएं तेजी से लोकप्रिय हो गई हैं और इस मामले में कि आप निजी निवेशक अब स्वयं खाते में ट्रेड नहीं करना चाहते हैं, आपके पास पेशेवर धन प्रबंधक हैं जो प्रबंधित खातों के माध्यम से कार्यभार संभाल लेंगे। संक्षेप में निजी निवेशक और लघु अवधि के ट्रेडर के लिए मुख्य लाभ हैं:

75 साल में आर्थिक मोर्चे पर कहां खड़ा है हिन्दुस्तान, देखें प्रति व्यक्ति आय से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार तक के आंकड़े

अर्थव्यवस्था न केवल मजबूती से अपने पैरों पर खड़ी है, बल्कि विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रही है। यह भविष्य के प्रति एक उम्मीद की किरण है। हम अपनी आजादी का 75वां वर्ष अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे..

75 साल में आर्थिक मोर्चे पर कहां खड़ा है हिन्दुस्तान, देखें प्रति व्यक्ति आय से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार तक के आंकड़े

Happy Independence Day 2022: कोरोना जैसी वैश्विक महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आई विश्वव्यापी मंदी के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था न केवल मजबूती से अपने पैरों पर खड़ी है, बल्कि विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रही है। यह भविष्य के प्रति एक उम्मीद की किरण है। हम अपनी आजादी का 75वां वर्ष अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं। देश की विकास यात्रा में इस बार पेश है अर्थव्यवस्था का हाल.


बढ़ती प्रति व्यक्ति आय
(शुद्ध राष्ट्रीय आय स्थिर कीमतों पर )

  • 2021-22 91481 रुपए
  • 2020-21 85110 रुपए
  • 2019-20 94270 रुपए

● 1950-51 में स्थिर कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 11570 रुपए थी।

● 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी प्रति व्यक्ति आय, शुद्ध राष्ट्रीय आय के आधार पर, वित्त वर्ष 2021-22 में

● 1.5 लाख के करीब रुपए हो गई है, मौजूदा कीमतों के आधार पर प्रति व्यक्ति आय 18.3 प्रतिशत की दर से बढ़कर ।

खाद्यान्न उत्पादन
● 1950 में भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन 5.49 करोड़ टन

● 2020-21 में 30.5 करोड़ टन
सकल घरेलू उत्पाद
● 1947 में सकल घरेलू उत्पाद था 2.7 लाख करोड़ रुपए

● 2022 में 150 लाख करोड़ रुपए
रुपए की कीमत
● 1949 में एक डॉलर 4.75 रुपए के बराबर

● 2022 में करीब 80 रुपए तक पहुंच चुका है

जनसंख्या
● 1947 देश की करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी के नीचे थी

● 2011 में 22.5 प्रतिशत

● 21 में वैश्विक गणना के मुताबिक 6 प्रतिशत रह गई

विदेशी मुद्रा भंडार
● 1950-51 विदेशी मुद्रा भंडार 1029 करोड़ रुपए

● 2022 जुलाई तक ये 573.9 अरब डॉलर का हो चुका है
आयात-निर्यात
● 1950-51 आयात 1.27 अरब डॉलर और निर्यात 1.26 अरब डॉलर

● 2021-22 आयात 756 अरब डॉलर, निर्यात 670 अरब डॉलर

बीते वर्षों में प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय (मौजूदा कीमतों पर)
2011-12 में 63462 रुपये

2012-13 में 70983 रुपये

2013-14 में 79118 रुपये

2014-15 में 86647 रुपये

2015-16 में 94731 रुपये

2016-17 में 103870 रुपये

2017-18 में 112835 रुपये

2018-19 में 125397 रुपये

2019-20 में 132115 रुपये

2020-21 में 126855 रुपये

2021-22 में 150000 रुपये

स्रोत पीआईबी व विविध

बढ़ती प्रति व्यक्ति आय
(शुद्ध राष्ट्रीय आय स्थिर कीमतों पर )विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता

वित्त वर्ष आय

2021-22 91481 रुपए

2020-21 85110 रुपए

2019-20 94270 रुपए

● 1950-51 में स्थिर कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 11570 रुपए थी।

● 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी प्रति व्यक्ति आय, शुद्ध राष्ट्रीय आय के आधार पर, वित्त वर्ष 2021-22 में

● 1.5 लाख के करीब रुपए हो गई है, मौजूदा कीमतों के आधार पर प्रति व्यक्ति आय 18.3 प्रतिशत की दर से बढ़कर ।


● 1.5 खरब डॉलर खपत व्यय (2020 ) से बढ़कर 3 खरब डॉलर (2030) में होने का अनुमान

● 14.3 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि के साथ खनन क्षेत्र के आगे रहने की संभावना

● 11.9 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान हैं व्यापार, होटल, परिवहन व संचार सेवाओं के लिए

RBI ने किया हस्तक्षेप तो विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर हुई कम, रिजर्व बैंक अधिकारियों की स्टडी में आया सामने

Foreign Exchange Reserves of India: 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भंडार 22 प्रतिशत कम हुआ था. यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है.

Foreign Exchange Reserves of India: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप से मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर में कमी आई है. आरबीआई अधिकारियों के अध्ययन में यह कहा गया है. अध्ययन में 2007 से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मौजूदा समय में उत्पन्न उतार-चढ़ाव को शामिल किया गया है. पीटीआई की खबर के मुताबिक, केंद्रीय बैंक की विदेशी मुद्रा बाजार (foreign exchange reserves) में हस्तक्षेप की एक घोषित नीति है. केंद्रीय बैंक अगर बाजार में अस्थिरता देखता है, तो हस्तक्षेप करता है. हालांकि, रिजर्व बैंक मुद्रा को लेकर कभी भी लक्षित स्तर नहीं देता है.

यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद केवल छह प्रतिशत की कमी
खबर के मुताबिक, आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस के अध्ययन में कहा गया है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता के दौरान भंडार (Foreign Exchange Reserves) 22 प्रतिशत कम हुआ था. यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है. अध्ययन में कहा गया है कि इसमें व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह कोई जरूरी नहीं है कि यह केंद्रीय बैंक की सोच से मेल खाए. रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर अपने हस्तक्षेप उद्देश्य को हासिल करने में सफल रहा है. यह विदेशी मुद्रा भंडार में घटने की कम दर से पता चलता है.

29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी
Reserve bank के अध्ययन के मुताबिक, निरपेक्ष रूप से 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves of india) में 70 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई. जबकि कोविड-19 अवधि के दौरान इसमें 17 अरब डॉलर की ही कमी हुई. वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस वर्ष 29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी आई है. अध्ययन में कहा गया है कि उतार-चढ़ाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्वों में ब्याज दर, मुद्रास्फीति, सरकारी कर्ज, चालू खाते का घाटा, जिंसों पर निर्भरता राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर घटनाक्रम शामिल हैं.

अभी कितना है लेवल
देश का विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves of india) बीते 5 अगस्त को खत्म सप्ताह में 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.978 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, इससे पहले 29 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान, विदेशी मुद्रा भंडार 2.315 अरब डॉलर बढ़कर 573.875 अरब डॉलर रहा था. आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य 67.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 40.313 अरब डॉलर हो गया.

रुपये में कमजोरी से गिरा विदेशी मुद्रा भंडार, एक्सचेंज रेट से 67 प्रतिशत तक आई गिरावट: RBI

रिजर्व दो अप्रैल को 606.47 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि 23 सितंबर को यह घटकर 537.5 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया. यह लगातार आठवां सप्ताह था, जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट हुई.

रुपये में कमजोरी से गिरा विदेशी मुद्रा भंडार, एक्सचेंज रेट से 67 प्रतिशत तक आई गिरावट: RBI

चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से विदेशी मुद्रा भंडार में हुई आई कमी की मुख्य वजह एक्सचेंज रेट में हुआ बदलाव है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पॉलिसी समीक्षा में कहा कि रिजर्व में आई कुल गिरावट का 67 प्रतिशत, एक्सचेंज रेट में हुए बदलाव से देखने को मिला है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी मुद्रा के मजबूत होने तथा अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल के बढ़ने से एक्सचेंज रेट में बदलाव देखने को मिला. गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में तेज गिरावट हुई है. वहीं इस दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गिरावट देखने को मिली है. भंडार दो अप्रैल को 606.475 अरब अमेरिकी डॉलर था, जबकि 23 सितंबर को यह घटकर 537.5 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया. यह लगातार आठवां सप्ताह था, जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट हुई.

14 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा डॉलर इंडेक्स

चालू वित्त वर्ष में 28 सितंबर तक छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में 14.5 प्रतिशत की तेजी आई है. ऐसे में दुनिया भर के करंसी मार्केट में भारी उथल-पुथल मची हुई है. दास ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा जारी करते हुए कहा कि ज्यादातर दूसरे देशों की तुलना में भारतीय रुपये की गति व्यवस्थित रही है. उन्होंने कहा कि समीक्षाधीन अवधि में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 7.4 प्रतिशत की गिरावट आई, जो अन्य करंसी के मुकाबले काफी बेहतर है.दास ने यह भी कहा कि एक स्थिर विनिमय दर वित्तीय और व्यापक आर्थिक स्थिरता तथा बाजार के विश्वास का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि रुपया एक स्वतंत्र रूप से छोड़ी गई मुद्रा है और इसकी विनिमय दर बाजार द्वारा निर्धारित होती है. उन्होंने कहा, ”आरबीआई ने (रुपये के लिए) कोई निश्चित विनिमय दर तय नहीं की है. वह अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करता है.” दास ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता के पहलू को हमेशा ध्यान में रखा जाता है और यह मजबूत बना हुआ है. उनके अनुसार 23 सितंबर, 2022 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 537.5 अरब डॉलर था.

एक्सचेंज रेट से तय नहीं होती पॉलिसी

हालांकि गवर्नर ने कहा है कि मौद्रिक नीति के फैसले करंसी में आए के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होते. दास ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मुद्रा का प्रबंधन रिजर्व बैंक के दायरे में है और केंद्रीय बैंक इसके लिए सभी उचित उपाय करेगा. उन्होने कहा कि केंद्रीय बैंक दरों पर रणनीति मुद्रास्फीति और वृद्धि से जुड़े घरेलू कारकों के आधार पर तय करता है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा प्राथमिकता मुद्रास्फीति को दी जाती है। हम वृद्धि के पहलू पर भी गौर करते हैं।दास ने यह भी कहा कि बैंकों में नकदी को लेकर चिंता की कोई बात नहीं विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता है। व्यापक रूप से प्रणाली में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक का कोष उपलब्ध है।

दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा देश का विदेशी विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता मुद्रा भंडार

Indian Foreign researve

यूक्रेन संकट के बाद से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार में $80 बिलियन से अधिक की कमी दर्ज हुई है. अकेले वर्तमान हफ्ते में $ 2 बिलियन से ज्यादा की गिरावट सामने आई है. इसकी मुख्य वजह डॉलर के भाव को 80 रुपए प्रति डॉलर से ऊपर जाने से रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से मुद्रा बाजार में डॉलर की बिकवाली को बताया जा रहा है. इसके साथ ही इसकी दूसरी वजह देश के चालू खाते के घाटा भी है, जिसकी वजह से देश का विदेशी मुद्रा रोकने में मदद नहीं मिल सकी. आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 9 सितंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार $ 2.234 बिलियन गिरकर $550.871 बिलियन ही रह गया है, जो एक सप्ताह पहले $553.105 बिलियन था. देश का विदेशी मुद्रा भंडार इस वक्त दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.

फरवरी 2022 के अंत में रूस की ओर से यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद 29 सप्ताह में से 23 हफ्तों में लगातार विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट गिरावट दर्ज हुई है, इस दौरान मात्र 6 हफ्ता ही ऐसा रहा, इस दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज हुई थी. इस दौरान डॉलर आधारित संपत्तियों में भारी मात्रा में निवेश की वजह से डॉलर के मूल्य में तेजी के साथ इजाफा होने लगा. लिहाजा, रुपए की कीमत को स्थिर रखने के लिए आरबीआई को खुले बाजार में डॉलर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसकी वजह से देश की विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है. यही वजह है कि पिछले साल अक्टूबर में देश के विदेशी मुद्रा भंडार के मुकाबले इस वक्त 90 अरब डॉलर से अधिक नीचे है.

एक साल एक डॉलर के मुकाबले रुपया 74 के मुकाबले 80 पर पहुंचा
देश के बाजारों में विदेशी पूंजी के निरंतर प्रवाह के बावजूद बढ़ते चालू खाते के घाटे की वजह से देश का विदेशी मुद्रा रोकने में मदद नहीं मिल सकी. दरअसल, डॉलर के मुकाबले रुपया इस साल नाटकीय रूप से लगभग 74 से गिरकर 80 प्रति डॉलर के कमजोर रिकॉर्ड स्तर पर आ गया है. लिहाजा, आरबीआई ने रुपए की कीमत को स्थिर रखने के लिए भारी मात्रा में डॉलर को खुले बाजार में बेच दिया, जिससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे आ गया है. शुक्रवार को जारी आरबीआई ताजा मासिक बुलेटिन से भी इसकी पुष्टि हो रही है. इसमें दिखाया गया कि केंद्रीय बैंक ने जुलाई में हाजिर विदेशी मुद्रा बाजार में शुद्ध $ 19.05 बिलियन की बिक्री की. जानकार इस बात की आशंका जता रहे हैं कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट अभी कुछ और समय के लिए बनी रहेगी, क्योंकि डॉलर अब भी नए शिखर पर पहुंच रहा है, जो कि अधिकांश प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले दो दशकों में नहीं देखा गया है.

रुपया कमजोर होने से शेयर बाजार में आई भारी गिरावट
गौरतलब है कि भारतीय रुपए का शुक्रवार को पिछले पांच सप्ताह में सबसे खराब रहा, क्योंकि विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना को देखते हुए नए रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया और विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने बढ़ती मुद्रास्फीति पृष्ठभूमि के साथ आर्थिक विकास को धीमा करने की चेतावनी दी है. यही वजह है कि शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई.

पड़ोसियों से बेहतर है भारत की स्थित
विदेशी मुद्रा भंडार में रखे यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं के विदेशी मुद्रा जोड़े अस्थिरता मूल्य वृद्धि या मूल्यह्रास को डॉलर के संदर्भ में व्यक्त विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में शामिल किया गया है। लेकिन सोने के भंडार का मूल्य 340 मिलियन डॉलर बढ़कर 386.44 बिलियन डॉलर हो गया. समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 63 मिलियन डॉलर घटकर 17.719 अरब डॉलर हो गया, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में देश की आरक्षित स्थिति 8 मिलियन डॉलर बढ़कर 4.91 अरब डॉलर हो गई. गौरतलब है कि इस साल विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट दर्ज हुई है. इसके बावजूद देश अब भी अपने उभरते बाजार के साथियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब रहा है. गौरतलब है कि भारत के कई पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में विदेशी मुद्रा भंडार संकट के स्तर तक गिर गया है.

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