1. उपन्यास ‘‘ब्रेव न्यू वल्र्ड’’ के लेखक ऐल्डस हक्स्ले हैं।
2. उपन्यास ‘‘ऐन अफेयर डाउनस्टेयर्स’’ के लेखक शेर्री ब्राउनिंग हैं।
3. उपन्यास ‘‘डार्कनेस ऐट नून’’ के लेखक विक्टर लावैल्ले हैं।
(A) 1 और 2
(B) 2 और 3
(C) 1 और 3
(D) 1, 2 और 3

देश की अर्थव्यवस्था में प्रवासी भारतीयों का बढ़ रहा योगदान

देश की अर्थव्यवस्था में प्रवासी भारतीयों का बढ़ रहा योगदान

विश्व बैंक की ‘माइग्रेशन ऐंड रेमिटेंस’ रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? अपने देश में विदेशी मुद्रा भेजने के मामले में भारतीय प्रवासी सबसे आगे रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, प्रवासी भारतीयों ने इस वर्ष 80 अरब डॉलर भारत भेजे। इसके बाद चीन का नंबर है। चीन के प्रवासियों ने 67 अरब डॉलर भेजे हैं। भारत और चीन के बाद मेक्सिको, फिलीपींस और मिस्र का स्थान है। भारतीय प्रवासियों द्वारा विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? भारत भेजे गए कुल धन का 75 फीसदी से अधिक हिस्सा 10 बड़े देशों में कमाया गया है। इन देशों में अमेरिका, सऊदी अरब, रूस, संयुक्त अरब अमीरात, जर्मनी, कुवैत, फ्रांस, कतर, ब्रिटेन और ओमान शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न देशों के प्रवासियों द्वारा विकासशील देशों को आधिकारिक रूप से भेजा गया धन 2018 में 10.8 प्रतिशत बढ़कर 528 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। पिछले तीन वर्षों में भारतीय प्रवासियों द्वारा भारत को भेजे गए धन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
निस्संदेह ये प्रवासी देश की बहुत बड़ी पूंजी हैं। दुनिया के 200 देशों में रह रहे करीब तीन करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीय विभिन्न देशों में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। एक ओर विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में उनकी भूमिका सराही जा रही है, तो दूसरी ओर कम कुशल व कम शिक्षित प्रवासी कामगार भी खाड़ी देशों सहित कई मुल्कों में विकास के सहभागी बन गए हैं। खाड़ी देशों में अकुशल और मामूली शिक्षित प्रवासी भारतीय कामगारों ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी क्षमता को साबित किया है।
यह सब तब हो रहा है, जब दुनिया के बाजार में कच्चे तेल की कीमतों ने भारत के आयात बिल को तेजी से बढ़ा दिया है। वर्ष 2018 में देश का राजकोषीय घाटा और वित्तीय घाटा बढ़ गया है। डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत भी कमजोर हुई है। विदेश व्यापार घाटा भी बढ़ गया है। ऐसे में, देश के घटते हुए विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर बनाए रखने के लिए विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाना जरूरी है। दिसंबर, 2018 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर करीब 393 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया है। यह 13 अप्रैल, 2018 को 426 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था। पिछले दिनों बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने कहा है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जिस तेजी से घटा है, विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? उससे भारत के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत बढ़ गई है। नवंबर के बाद कच्चे तेल की कीमत में कमी आने से भारत को विदेशी मुद्रा के मामले में कुछ राहत मिली है, लेकिन तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने तेल उत्पादन में फिर से कमी करने का संकेत दिया विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? है। ऐसे में, भारतीय प्रवासियों से वर्ष 2019 में अधिक विदेशी मुद्रा की अपेक्षाएं हैं। कई बार यह पाया गया है कि जब भी देश के विदेशी मुद्रा कोष में कमी आई और देश की मुद्रा रुपया कमजोर हुआ है, तब प्रवासी भारतीयों द्वारा स्वदेश भेजे गए धन से भारतीय रुपया स्वत: ही स्थिर होने की प्रवृत्ति की ओर बढ़ा है।
यह भी सच है कि दुनिया के सारे प्रवासी भारतीय बहुत धनी नहीं हैं। अधिकांश देशों में इनकी आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं है। खासतौर से विभिन्न खाड़ी देशों में लाखों कुशल-अकुशल भारतीय श्रमिक इस बात से त्रस्त हैं कि वहां पर इन्हें न्यूनतम वेतन और जीवन के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। विश्व विख्यात एनजीओ कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव ने हाल ही में खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीय कामगारों की मुश्किलों और विपरीत परिस्थितियों में काम करने संबंधी जो रिपोर्ट पेश की है, वह बेहद चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार, खाड़ी देशों में 2012 से 2018 के मध्य तक बहरीन, ओमान, कतर, कुवैत, सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात में औसतन प्रतिदिन 10 भारतीय कामगार प्रतिकूल परिस्थितियों विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं? में काम करने के कारण मौत के शिकार हुए हैं। अब हमें एक तरफ उनके लिए सम्मानजनक स्थितियों की लड़ाई तो लड़नी ही है, साथ ही विदेशी मुद्रा के अन्य विकल्प भी खोजने हैं, क्योंकि प्रवासी भारतीयों से मिलने वाला धन इतना नहीं है कि उस पर पूरी अर्थव्यवस्था निर्भर रह सके।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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