भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ । कृषि क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है ।
उद्योग
औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? लिए महत्वपूर्ण है जोकि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है जैसे कि ऋण के बोझ को कम करना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्मनिर्भर वितरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परिदृय को वैविध्यपूर्ण और आधुनिक बनाना, क्षेत्रीय विकास का संर्वद्धन, गरीबी उन्मूलन, लोगों के जीवन स्तर को उठाना आदि हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है । इस दिशा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगिक नीति संकल्प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारित हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारित हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रतिबंधों को हटाना, पहले सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित, निजी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनिश्चित मुद्रा विनिमय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि के द्वारा महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्यधिक अपेक्षित तीव्रता प्रदान की ।
आज औद्योगिक क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रतिशत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रतिशत अंशदान करता है ।
सेवाऍं
आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि आधरित अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रतिशत ( 1991-92 के 44 प्रतिशत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक तिहाई है और भारत के कुल निर्यातों का एक तिहाई है
भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय वैश्विक ब्रांड पहचान प्राप्त की है जिसके लिए निम्नतर लागत, कुशल, शिक्षित और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्ति के एक बड़े पुल की उपलब्धता को श्रेय दिया जाना चाहिए । अन्य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्यवसाय प्रोसिस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परिवहन, कई व्यावसायिक सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधित सेवाऍं और वित्तीय सेवाऍं शामिल हैं।
बाहय क्षेत्र
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।
देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 400 अरब डॉलर के करीब पहुंचा
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 15 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 15 करोड़ डॉलर बढ़ गया.
पिछले सप्ताह देश का मुद्राभंडार 2.11 अरब डॉलर बढ़कर 398.122 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. रिजर्व बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में, कुल मुद्राभंडार का अहम हिस्सा यानी विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां 8.89 करोड़ डॉलर बढ़कर 371.07 अरब डॉलर हो गया.
डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियां, विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? मुद्रा भंडार में रखे यूरो, पौंड और जापानी येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्राओं की मूल्यवृद्धि और मूल्यह्रास के प्रभावों को भी समाहित करता है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार 13 अप्रैल, 2018 को समाप्त सप्ताह में 426.028 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर को छू गया था लेकिन तब से इसमें कुल मिला कर काफी गिरावट आई है.
केन्द्रीय बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में आरक्षित स्वर्ण भंडार 7.82 करोड़ डॉलर बढ़कर 22.764 अरब डॉलर हो गया. सप्ताह के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ विशेष निकासी अधिकार 78 लाख डॉलर घटकर 1.455 अरब डॉलर रह गया. केन्द्रीय बैंक ने कहा कि इसी प्रकार से आईएमएफ में देश का मुद्राभंडार भी 91 लाख डॉलर घटकर 2.982 अरब डॉलर रह गया.
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डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है, रुपया कमजोर, डॉलर मजबूत क्यों हुआ?
भारतीय रुपया इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 7 फीसदी कमजोर हुआ है. न केवल रुपया बल्कि दुनियाभर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं. यूरो, डॉलर के मुकाबले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं और डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है?
पंकज कुमार
- नई दिल्ली,
- 19 जुलाई 2022,
- (अपडेटेड 19 जुलाई 2022, 1:46 PM IST)
- एक डॉलर की कीमत 80 रुपये हुई
- डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ
मेरी पीढ़ी ने जबसे होश संभाला है तब से अख़बारों और टीवी पर यही हेडलाइन पढ़ी कि डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट. आज फिर हेडलाइन है रुपये में रिकॉर्ड गिरावट, एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के पार हुई. अक्सर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत को देश की प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा जाता है. लेकिन क्या यह सही है? आजादी के बाद भारत सरकार ने लंबे समय तक कोशिश की कि रुपये की कीमत को मजबूत रखा जा सके. लेकिन उन देशों का क्या जिन्होंने खुद अपनी करेंसी की कीमत घटाई? करेंसी की कीमत घटाने की वजह से उन देशों की आर्थिक हालत न केवल बेहतर हुई बल्कि दुनिया की चुनिंदा बेहतर अर्थव्यवस्थाओं में वो देश शामिल भी हुए.
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है?
किसी भी देश की करेंसी की कीमत अर्थव्यवस्था के बेसिक सिद्धांत, डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है. फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में जिस करेंसी की डिमांड ज्यादा होगी उसकी कीमत भी ज्यादा होगी, जिस करेंसी की डिमांड कम होगी उसकी कीमत भी कम होगी. यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. सरकारें करेंसी के रेट को सीधे प्रभावित नहीं कर सकती हैं.
करेंसी की कीमत को तय करने का दूसरा एक तरीका भी है. जिसे Pegged Exchange Rate कहते हैं यानी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट. जिसमें एक देश की सरकार किसी दूसरे देश के मुकाबले अपने देश की करेंसी की कीमत को फिक्स कर देती है. यह आम तौर पर व्यापार बढ़ाने औैर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.
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उदाहरण के तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.
किसी करेंसी की डिमांड कम और ज्यादा कैसे होती है?
डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या होता है?
आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.
करेंसी का डिवैल्यूऐशन और डिप्रीशीएशन क्या है?
करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.
मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?
करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.
डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है?
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है.
यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं?
डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है?
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में अस्थिरता आई. डिमांड-सप्लाई की चेन बिगड़ी. निवेशकों ने डर की वजह से दुनियाभर के बाज़ारों से पैसा निकाला और सुरक्षित जगहों पर निवेश किया. अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों से पैसा निकाला.
अमेरिका महंगाई नियंत्रित करने के लिए ऐतिहासिक रूप से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. फेडरल रिजर्व ने कहा था कि वो तीन तीमाही में ब्याज दरें 1.5 फीसदी से 1.75 फीसदी तक बढ़ाएगा. ब्याज़ दर बढ़ने की वजह से भी निवेशक पैसा वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं.
2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.
India To Decide Future Of Internet: अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत की दहाड़, मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा- 820 मिलियन इंटरनेट यूजर तय करेंगे उन्हें कैसा इन्टरनेट चाहिए
इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी तथा कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि भारत को इंटरनेट के भविष्य पर अपनी नीति बनाने के लिए किसी अन्य देश या वैश्विक प्रणाली का पालन करने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत में 820 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं.
इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी तथा कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर (Rajeev Chandrasekhar) ने कहा है कि भारत को इंटरनेट के भविष्य पर अपनी नीति बनाने के लिए किसी अन्य देश या वैश्विक प्रणाली का पालन करने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत में 820 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं. भारतीयों के पास यह तय करने का अपना तरीका होना चाहिए कि उन्हें किस प्रकार का इंटरनेट चाहिए.
संयुक्त विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? अरब अमीरात के दुबई में आयोजित इंडिया ग्लोबल फोरम में राज्यमंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर यूरोपीय जीडीपीआर को गोपनीयता और डेटा सुरक्षा के लिए एक स्वर्णिम मानक माना जाता है, लेकिन इससे हम सहमत नहीं होना चाहेंगे. 820 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के साथ, हमारी वैश्विक इंटरनेट पर सबसे बड़ी उपस्थिति है और हमें अपनी पॉलिसी को आकार देने का अवसर मिलना चाहिए. हम अपने स्वयं की ढांचागत संरचना का निर्माण करेंगे और हमारे लिए उपयुक्त रूपरेखा तैयार करेंगे. श्री राजीव चंद्रशेखर ने आज संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में आयोजित इंडिया ग्लोबल फोरम में यह बात कही. इस दौरान संयुक्त अरब अमीरात के मंत्री महामहिम उमर सुल्तान अल ओलमा भी उपस्थित थे. यह भी पढ़ें : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? चौहान की सख्ती से सरकारी मशीनरी में हलचल
केंद्रीय मंत्री ने परामर्श के लिए खुले हुए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे नागरिकों के डिजिटल अधिकारों की रक्षा करना सरकार का दायित्व है. उन्होंने कहा कि हम इसे भारत में और अन्य देशों के साथ साझेदारी में मौजूद नवाचार के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को धीमा करने की कीमत पर बाइनरी के रूप में नहीं देखते हैं. श्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार इंटरनेट का कड़ाई से नियमन नहीं करेगी. उन्होंने कहा कि सरकार खुले, सुरक्षित, भरोसेमंद तथा जवाबदेह इंटरनेट के सिद्धांतों के लिए प्रतिबद्ध है.
संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में आयोजित इंडिया ग्लोबल फोरम में राज्यमंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर
श्री चंद्रशेखर ने भारतीय बाजार का उल्लेख करते हुए कहा कि इंडिया स्टैक ने सरकार और उसके नागरिकों के बीच विश्वास कायम करने में मदद की है. इसने बाधाओं को दूर किया है और लाभार्थियों के लिये सरकारी धन का हस्तांतरण आसान बनाया है. इंडिया स्टैक अन्य देशों के लिए भी अपनाने हेतु खुला है. उन्होंने कहा कि यह वैश्विक दक्षिण या उन देशों के लिए एक अवसर का प्रतिनिधित्व करता है, जो डिजिटलीकरण की सीढ़ी को तेजी से ऊपर चढ़ने के लिए इस दिशा में आने वाले खर्च को उठाने में सक्षम नहीं हैं.
महामहिम उमर सुल्तान अल ओलमा ने इंडिया स्टैक के लिए भारत की सराहना करते हुए कहा कि भारत ने कभी किसी का अनुकरण नहीं किया. भारत ने अपना रास्ता खुद तैयार किया है जिसका कई अन्य देश अनुकरण कर रहे हैं. भारत के आकार का देश एक दशक से भी कम समय में कुछ ऐसा लागू करने में सक्षम था, जो वास्तव में बेहद अविश्वसनीय है.
श्री राजीव चंद्रशेखर ने इससे पहले आईजीएफ में टेलीविजन चैनल एनडीटीवी के साथ बातचीत में कहा कि गलत सूचनाओं को हथियार बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि साइबर बुलिंग जैसे इंटरनेट उपयोगकर्ता नुकसान के मुद्दों का हवाला देते हुए डिजिटल इंडिया अधिनियम द्वारा लागू किया जाएगा जो विदेशी मुद्रा में किस प्रकार के प्रसार हैं? आईटी अधिनियम का स्थान लेगा.
उन्होंने कहा कि डिजिटल क्लाउड के प्रसार और इंटरनेट की सीमाहीन प्रकृति को देखते हुए भौगोलिक सीमाओं के पार डेटा प्रवाह लगभग एक जैसा है. हम विश्वसनीय भौगोलिक क्षेत्रों या 'ट्रस्ट कॉरिडोर' की पहचान करेंगे जहां डेटा को संग्रहीत और संसाधित किया जा सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी भारतीयों का डेटा सुरक्षित है.
india to decide future of internet indias roar on the international stage minister rajeev chandrasekhar said 820 million internet users will decide what kind of internet they want
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