ओपिनियन: डूबते पाकिस्तान का आखिरी आसरा
अपने आर्थिक संकट को लेकर पाकिस्तान एक नई मुसीबत में घिर गया है। ऐसी खबरें आने के बाद कि नवनिर्वाचित इमरान खान सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बेल आउट पैकेज मांगने वाली है, अमेरिका ने इस पर.
अपने आर्थिक संकट को लेकर पाकिस्तान एक नई मुसीबत में घिर गया है। ऐसी खबरें आने के बाद कि नवनिर्वाचित इमरान खान सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बेल आउट विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं पैकेज मांगने वाली है, अमेरिका ने इस पर खुलकर अपनी आपत्ति जताई है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने साफ लफ्जों में कहा है कि पाकिस्तान को इस रकम का इस्तेमाल चीन का कर्ज उतारने के लिए नहीं करने देना चाहिए। खबर है कि पाकिस्तान आईएमएफ से 12 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज मांगने वाला है।
पाकिस्तान पर हद से अधिक आर्थिक बोझ है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, उसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर नौ अरब डॉलर पर आ गया है, जिसे दो महीने के लिए भी पर्याप्त नहीं बताया जा रहा है। पिछले एक साल में उसका आयात काफी बढ़ा है, जबकि निर्यात सिकुड़ता जा रहा है। इस वित्तीय वर्ष में उसके आयात में करीब छह अरब डॉलर की वृद्धि हुई है, जबकि निर्यात में महज दो अरब डॉलर की। उसका सार्वजनिक कर्ज भी पिछले एक साल में 12.5-13 अरब डॉलर बढ़ा है, जिसमें बाहरी कर्ज करीब आठ अरब डॉलर है। चालू खाता घाटा भी बढ़कर करीब 18 अरब डॉलर का हो गया है।
अच्छी बात यह है कि वहां कृषि क्षेत्र में कुछ बेहतरी दिखी है। हमारी तरह ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कृषि महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी जीडीपी में 19-20 फीसदी की हिस्सेदारी है, जबकि इस पेशे में मुल्क का 43 फीसदी श्रम बल लगा हुआ है। टैक्स-जीडीपी अनुपात में भी सुधार दिखा है, जो 2013-14 वित्तीय वर्ष में नौ फीसदी के मुकाबले बढ़कर 11 फीसदी से पार चला गया है। लेकिन प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 1.3 फीसदी घटा है। मुश्किल यह है कि इस एफडीआई का भी बड़ा हिस्सा अकेले चीन से आ रहा है। फिर रक्षा मद में खर्च लगातार बढ़ रहा है। एक उलझन पाकिस्तान की जीडीपी को लेकर भी है, जिसके बारे में तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं। आईएमएफ 3.6 फीसदी की दर से इसके बढ़ने की बात कर रहा है, तो पाकिस्तानी हुक्मरानों की नजर में यह 5.4 फीसदी की दर से बढ़ रही है।
साफ है, उसकी आर्थिक सेहत लगातार गंभीर बनती जा रही है। मगर क्या महज बेलआउट पैकेज पाकिस्तान को संकट से उबार सकेगा? मुश्किल इमरान खान की सियासत को ज्यादा आएगी। आईएमएफ के द्वार पर जाने का मतलब होगा, उसकी शर्तों को मानना। नतीजतन, पाकिस्तान को वह तमाम सब्सिडी कम या खत्म करनी होगी, जो अभी वह अपने अवाम को दे रहा है। बेशक यह पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है, पर पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को देखते हुए इसे अब भी बहुत ज्यादा माना जा रहा है। फिर गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) यानी डूब कर्ज को देखते हुए उसे निजीकरण की राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा, रक्षा खर्च में कटौती करनी होगी और टैक्स-जीडीपी अनुपात सुधारने के लिए तमाम तरह के कदम उठाने होंगे।
प्रधानमंत्री बनने जा रहे इमरान खान के लिए यह सब करना आसान नहीं होगा। वह लोक-लुभावन वादों के साथ सत्ता में आए हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार में रियायतें बढ़ाने, विकास कार्यों पर अधिक से अधिक खर्च करने, स्वास्थ्य व शिक्षा पर खास जोर देने संबंधी कई वादे पाकिस्तानी जनता से किए हैं। आईएमएफ से पैकेज लेने के लिए उन्हें अपने इन वादों से मुकरना पड़ सकता है।
मुमकिन है, अवाम की उम्मीदों को पूरा करने लिए नई सरकार दूसरे देशों से मदद विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं मांगे। चीन, ब्रिटेन जैसे कई देश उसके यहां निवेश कर भी रहे हैं, जिसमें चीन से सबसे ज्यादा पैसा पाकिस्तान पहुंचता है। यह आगे भी जारी रह सकता है। मगर इसमें मुश्किल यह है कि चीन कोई खैरात नहीं देता, बल्कि ‘सॉफ्ट लोन’ देता है। यह उसका पुराना रवैया रहा है। पाकिस्तानी अर्थशास्त्री भी चिंता जताते रहे हैं कि जिस चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत मुल्क में पैसा आ रहा है, उसमें से ज्यादातर कर्ज ही है।
पाकिस्तान में निवेश करने वाली चीन की कंपनियां जिस तकनीक व मशीनों का इस्तेमाल कर रही हैं, वे सभी आयात की जा रही हैं। इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ रहा है। आशंका यह भी है कि यह गलियारा पाकिस्तान के लिए श्रीलंका की तरह का कर्ज का दुश्चक्र न बन जाए। इन्फ्रास्ट्रक्चर और विकास के नाम पर भारी-भरकम निवेश करके जिस तरह चीन ने श्रीलंका को अपने जाल में फंसा लिया है, उसी विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं तरह पाकिस्तान भी चीन का ‘वर्चुअल कॉलोनी’ (आभासी उपनिवेश) बन जाएगा। इससे पाकिस्तान की मुश्किलें तो बढ़ेंगी ही, साथ-साथ उप-महाद्वीप की कूटनीतिक तस्वीर भी स्याह होगी।
ऐसी सूरत में, इमरान खान बतौर राजनेता नहीं, बल्कि एक खस्ताहाल मुल्क के प्रधानमंत्री के रूप में आईएमएफ के दरवाजे पर जाएंगे। अगर वह विकास का अपना एजेंडा आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें उस कटुता से ऊपर उठना होगा, जिसकी चर्चा वह चुनाव-प्रचार में करते रहे। उन्हें अमेरिका से भी हाथ मिलाना होगा और भारत से भी। अफगास्तिान-पाकिस्तान व्यापार समझौते का ही उदाहरण लें। अफगानिस्तान इसमें भारत को शामिल करने का पक्षधर रहा है। मगर फौज के दबाव में पाकिस्तानी हुक्मरान इससे कतराते रहे हैं, जबकि ऐसा करने से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को सालाना दो अरब डॉलर का फायदा हो सकता है। इतना ही नहीं, अगर वह भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (पाकिस्तान की नजर में यह ‘नॉन डिस्क्रिमिनेटरी मार्के ट एक्सेस’ है) का दर्जा देता है, तब भी उसे अगले दस वर्षों में 10 अरब डॉलर से अधिक का फायदा हो सकता है। फौज को इसके लिए दूरदर्शिता दिखानी होगी। मगर क्या वह ऐसा करेगी?
पाकिस्तान की पूंजी दूसरे देशों में काफी ज्यादा जा रही है। यह रकम अब बाहर से मुल्क में आने वाली पूंजी के बराबर हो गई है। इस ‘आउट फ्लो’ की बड़ी वजह आंतरिक अस्थिरता है। इमरान खान इन सबसे पार पाने का भरोसा चुनाव बाद के अपने पहले संबोधन में दे चुके हैं। मगर क्या वह संजीदगी से इस दिशा में आगे बढ़ेंगे? इस पर सबकी नजर बनी रहेगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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टीएमसी की महुआ मोइत्रा ने केंद्र को घेरा, कहा- अब पता चल गया कि “पप्पू कौन है?”
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तृणमूल कांग्रेस (TMC) की लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा ने औद्योगिक उत्पादन पर सरकारी आंकड़ों का ही हवाला देते हुए आर्थिक प्रगति के दावों पर सरकार पर जोरदार हमला किया। कहा कि फरवरी में सरकार ने लोगों को विश्वास दिलाया था कि अर्थव्यवस्था बहुत अच्छा कर रही है। सभी को गैस सिलेंडर, आवास और बिजली जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं मिल रही हैं। मोइत्रा ने इन दावों को “झूठ” कहा। बताया कि आठ महीने बाद अब दिसंबर में “जो सच्चाई सामने आई है, वह लंगड़ाती हुई इकोनॉमी बता रही है।”
उन्होंने कहा कि सरकार ने कहा है कि उसे बजट अनुमान के अलावा 3.26 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि की जरूरत है। 2022-23 के लिए अतिरिक्त अनुदान (additional grants) की मांगों पर लोकसभा में चली बहस में मोइत्रा ने नरेंद्र मोदी सरकार पर भारत के विकास के बारे में “झूठ” फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण करने की अपील की, जो टीएमसी के अनुसार नेता, पतन की ओर जा रहा है।
मोइत्रा ने लेखक जोनाथन स्विफ्ट के बयानों से अपनी बात शुरू की। कहा, “जिस प्रकार सबसे निकृष्ट लेखक के पास उसके पाठक होते हैं, उसी प्रकार सबसे बड़े झूठे के पास विश्वासी होते हैं। और अक्सर ऐसा होता है, कि यदि किसी झूठ पर केवल एक घंटे के लिए विश्वास किया जाए, तो वह अपना काम कर चुका होता है। इसके लिए और कोई अवसर नहीं होता है। झूठ उड़ता है और सच्चाई इसके बाद लंगड़ा कर आती है।”
इसके बाद उन्होंने कथित तौर पर “पप्पू” शब्द गढ़ने को लेकर सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा, “इस सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी ने पप्पू शब्द गढ़ा। आप इसका इस्तेमाल बदनाम करने और अत्यधिक अक्षमता को दर्शाने के लिए करते हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि असली पप्पू कौन है।”
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों का हवाला देती हुई टीएमसी नेता ने दावा किया कि अक्टूबर में देश का औद्योगिक उत्पादन (industrial output) चार प्रतिशत घटकर 26 महीने के निचले स्तर पर आ गया। लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नौकरियां 5.6 प्रतिशत तक घट गई है, जो अभी भी सबसे अधिक नौकरी देता है।
उन्होंने हाल ही में संपन्न हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार को लेकर भी निशाना साधा। कहा कि सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष अपने गृह राज्य में भी जीत नहीं रह सकते। उन्होंने पूछा, “अब पप्पू कौन है?”
महुआ मोइत्रा ने भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के आंकड़ों का हवाला देते हुए भारतीयों के “पलायन” की ओर भी इशारा किया।
उन्होंने कहा, “औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक को बनाने वाले उद्योग क्षेत्रों में से 17 में निगेटिव वृद्धि दर दर्ज की गई है। विदेशी मुद्रा भंडार एक वर्ष के भीतर 72 बिलियन डॉलर गिर गया है। माननीय वित्त मंत्री ने कल प्रश्नकाल के दौरान बताया कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह (Foreign Direct Investment inflows) का 50% कैसे भारत आ रहा है। लेकिन उनके सहयोगी विदेश राज्य मंत्री ने पिछले शुक्रवार को इसी सदन में एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि लगभग 2,00,000 (1,83,741) लोगों ने 2022 के पहले दस महीनों में अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी। 2022 के इस पलायन से 2014 के बाद से पिछले नौ वर्षों में इस सरकार के तहत भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की कुल संख्या 12.5 लाख से विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं अधिक हो गई है।
मोइत्रा ने यह भी दावा किया कि कई धनकुबेर भी दूसरे देशों में नागरिकता पाने के लिए बड़ी रकम देने को तैयार हैं। उन्होंने पूछा, “क्या यही स्वस्थ आर्थिक वातावरण का संकेत है? अब पप्पू कौन है? इस देश में आतंक का माहौल है, व्यापारियों और पैसे वालों पर प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) की तलवार लटकती रहती है।”
मोइत्रा ने आरोप लगाया, “सत्तारूढ़ दल सांसदों को सैकड़ों करोड़ रुपये में खरीदता है। फिर भी जांच के दायरे में 95 प्रतिशत विपक्षी सांसद आते हैं।”
उन्होंने सरकार पर प्रधानमंत्री मोदी के तहत भारत की विकास की कहानी पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया। कहा कि 2016 में उसके द्वारा लागू नोटबंदी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा। इसलिए कि नकदी “अभी भी राजा” है और नकली मुद्रा से बाहर निकलना अभी भी सपना ही है।
Economy: मंदी की आहट पर निशाने पर सरकार, विपक्ष मांग रहा जवाब
कई सेक्टरों की रिपोर्ट के आधार पर यह संकेत मिल रहे हैं कि दुनिया की मंदी का असर भारत पर भी देखा जा सकता है। फिलहाल ऑटो और रियल्टी सेक्टरों पर इसकी मार पड़नी शुरू हो गई है।
दुनियाभर में एक बार विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं फिर आर्थिक मंदी आने के संकेत मिल रहे हैं। ऑटो सेक्टर, रियल्टी सेक्टर समेत तमाम परंपरागत उद्योग मंदी के संकट से गुजर रहे हैं। इस आर्थिक मंदी को लेकर भारत में भी तमाम तरह की चिंताएं जताई जाने विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं लगी हैं। आर्थिक सर्वे करने वाली कई एजेंसियों की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आ रही है कि देश में अब आर्थिक मंदी की आहट सुनाई देने लगी है, जिसकी वजह से ऑटो सेक्टर में कई लाख लोगों की नौकिरियां जाने की डर सता रहा है।
कई अखबारों में छपी आर्थिक मंदी की खबरों को आधार बनाते हुए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा है। प्रियंका ने ट्वीट करते हुए पूछा है कि देश में आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार कौन है? प्रियंका गांधी ने कहा है कि इस भयंकर मंदी पर सरकार की चुप्पी खतरनाक है। कंपनियों के काम चौपट हो रहे हैं और लोगों को नौकरियों से निकाला जा रहा है। लेकिन सरकार मौन है। देश के नागरिक इस भयंकर मंदी पर वित्तमंत्री से कुछ सुनना चाहते हैं।
प्रियंका गांधी ने उन अखबारों की खबरों को ट्विटर पर शेयर भी किया है और कहा है कि अकेले ऑटो सेक्टर में 10 लाख से अधिक लोगों की नौकरी जाने की खतरा है और कई कंपनियां तो छटनी भी शुरू कर दी हैँ।
उधर, अखिलेश यादव ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था गहरे संकट से गुजर रही है। नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापार में भारी तबाही मचाई है। इससे छोटे और घरेलू उद्योग तो बंद हुए ही, अब देश का ऑटो मोबाइल सेक्टर भी दम तोड़ने लगा है। विदेशी मुद्रा भंडार 72.7 करोड़ डालर घट गया है।
भारत की अर्थव्यवस्था फिसलकर सातवें स्थान पर आ गई है। वर्ष 1964 में भी भारत इसी स्थान पर था। पिछले छह वर्षों में मोदी के शासनकाल में तकरीबन 3.7 करोड़ कामगारों ने कृषि कार्य से तौबा कर लिया है।
इसके पहले जारी की गई एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि देश के नौ बड़े शहरों में 797623 फ्लैट कम कीमत वाले बनाए थे, जिसमें से 412930 फ्लैट अभी तक नहीं बिके हैं। आर्थिक मंदी की वजह से रियल एस्टेट पर गहरा असर पड़ा है। देश के सात बड़े शहरों में 2.2 लाख फ्लैट का निर्माण कार्य अटका पड़ा है, जिनकी शुरुआत 2011 में की गई थी।
इसके अलावा जिस तरह से सोने-चांदी के दामों में बढ़ोतरी हो रही है, उससे भी मंदी के आसार नजर आ रहे हैं। आर्थिक मंदी के संकेत मिलने पर निवेशक इक्विटी बाजार से पैसा निकाल कर सुरक्षित निवेश करने लगते हैं, जिससे सोने-चांदी में जमकर खरीदारी की जाती है।
बजट आने के एक माह के अंदर विदेशी संस्थागत निवेशकों ने एक माह में 15 लाख करोड़ रुपए की बिकवाली की थी। जिसकी वजह से शेयर बाजार में बड़ी गिरावट आते हुए दिखी थी।
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा करते हुए कहा है कि अगले एक साल के अंदर दुनिया भर में सबसे खतरनाक मंदी आ सकती है। यह मंदी 2008 से भी बड़ी होगी, जिसकी शुरआत होने की कई जगहों से आहट मिलनी शुरू हो गई है। इसके लिए व्यापार युद्ध को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
(डिस्क्लेमर : मनोज यादव अतिथि लेखक हैं और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)
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अक्षय तृतीया पर आपको इन तीन वजहों से खरीदना चाहिए सोना
अक्षय शब्द का अर्थ है 'कुछ ऐसा जो कभी कम न हो'. यह विश्वास है कि इस दिन शुरू हुआ कोई भी निवेश अच्छा मुनाफा देता है
अक्षय शब्द का अर्थ है 'कुछ ऐसा जो कभी कम न हो'. यह विश्वास है कि इस दिन शुरू हुआ कोई भी निवेश अच्छा मुनाफा देता है
रिटर्न के साथ पोर्टफोलियो में विविधिता लाने के लिए सोना खरीदने का एक और कारण है. इस तरह आमतौर पर औसतन 5 फीसदी सालाना रिटर्न मिलता है. कई बार रिटर्न ज्यादा भी होता है, कई बार कम.
सोने में निवेश करने का सबसे अच्छा तरीका कौन सा है? आप सुनार से सोने के गहने खरीद सकते हैं. लेकिन इसमें काफी मेकिंग चार्ज शामिल होने के कारण यह अच्छा वित्तीय निवेश नहीं माना जाएगा. ब्रोकरेज फर्म से गोल्ड ईटीएफ खरीदना सबसे आसान विकल्प है, क्योंकि इस तरह 1 ग्राम के गुणांक में सोने में निवेश किया जा सकता है. इसे शेयर की तरह ही डीमैट खाते में सुरक्षित रूप से रखा भी जा सकता है.
इसी तरह, कोई भी आपके कमोडिटी एक्सचेंज ब्रोकर (आपका इक्विटी ब्रोकर आमतौर पर ऐसा करता है) से 10 ग्राम, 100 ग्राम और डीमैट में उपलब्ध 1 किलोग्राम डिलीवरी के साथ सोना खरीद सकता है. जिस तरह हम हाजिर में सोने हम खरीदते हैं वैसे ही यहां भी खरीद सकते हैं. गोल्ड म्यूचुअल फंड में निवेश भी एक विकल्प है. कुछ निवेशक डीमैट खाते या स्टॉक ब्रोकर के माध्यम से खरीदारी को आसानी समझते हैं, जबकि अन्य इसे फिजिकल में लेना पसंद कर सकते हैं और इसे घर पर रखते हैं.
आखिरकार सभी तरह के निवेश सोने की कीमतों पर ही आधारित होते हैं. यह विकल्प आपकी निवेश की जरूरत पर निर्भर करते हैं. किसी भी निवेश के फैसले की तरह, सोने को खरीदने का निर्णय लेते समय अंततः तीन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है - जोखिम को कम करने के लिए पोर्टफोलियो में विविधता लाना, एक व्यवस्थित निवेश योजना के माध्यम से नियमित रूप से खरीदारी और लंबी अवधि का नजरिया. अक्षय तृतीया सोने में निवेश का पहला कदम उठाने का एक अच्छा मौका हो सकता है!
फॉरेक्स और CFDs: ऑनलाइन पैसा कमाने के लिए समानताएँ, अंतर और अवसर
फॉरेक्स और CFD दोनों इंस्ट्रूमेंट्स में ऑनलाइन ट्रेडिंग लगभग समान है, एक ही ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (MT4) पर, एक ही तकनीकी विश्लेषण टूल का उपयोग करते हुए, ट्रेड की गई परिसंपत्ति के स्वामित्व को वास्तव में ब्रोकर से ट्रेडर की ओर स्थानांतरित किए बिना और इसके विपरीत। अर्थात, दोनों ही मामलों में, कोई फर्क नहीं पड़ता कि ट्रेडर कौन सी परिसंपत्ति खरीदता है या बेचता है, करेंसी, सोना, स्टॉक्स या तेल, इस कॉमोडिटी की स्वयं की उपस्थिति ही आवश्यक नहीं होती है और तदनुसार, इसका एक मालिक से दूसरे मालिक की ओर वास्तविक हस्तांतरण नहीं है। इसलिए, इस तरह के ऑनलाइन ट्रेडिंग को अक्सर नॉन-डेलिवरेबल कहा जाता है। और यहाँ तक कि यदि एक ट्रेडर ने 1 मिलियन बैरल तेल भी खरीदा है, तो वे उन्हें सीमा शुल्क की लागत, परिवहन, भंडारण और इस तेल की आगे बिक्री के साथ किसी भी समस्या के बारे में चिंतित नहीं होते हैं। इसमें से कोई भी नहीं है। और अंतर केवल ब्रोकर के साथ लेन-देन और उसकी क्लोजिंग के क्षण के बीच तेल के बाजार मूल्य में होता है।
यह अंतर है जो ट्रेडर को लाभ या हानि लाता है। यहाँ सब कुछ बहुत सरल है। एक ट्रेडर ने एक विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं बाय डील में प्रवेश किया, परिसंपत्ति बढ़ गई, और ट्रेडर को लाभ हुआ। और यदि उन्होंने बेचने के लिए एक सौदा किया, तो वे अपना पैसा खो देंगे। और इसके विपरीत: एक ट्रेडर ने एक सेल डील की, तो परिसंपत्ति कीमत में गिर गई, ट्रेडर ने पैसा कमाया। परिसंपत्ति मूल्य में बढ़ गई - व्यापारी ने नुकसान उठाया।
वैसे, व्यापार के इस तरह की ट्रेडिंग की नॉन-डेलिवरेबल विधि के साथ ट्रेडर्स के लिए एक और विशाल फायदा न केवल वृद्धि पर, बल्कि एक परिसंपत्ति के मूल्य में गिरावट पर भी धन कमाना है। आखिरकार, आप या तो एक कंपनी X में पूरी हिस्सेदारी या उतना ही मिलियन बैरल तेल बेच सकते हैं, एक या अन्य को रखे बिना। और यदि उनकी कीमत शून्य पर गिर जाती है, तो आप बहुत बड़ा लाभ कमाएँगे।
अर्थात, दूसरे शब्दों में, वित्तीय साधनों (परिसंपत्तियों) वाले नॉन-डेलिवरेबल एक कॉन्ट्रैक्ट है, या, यदि आप पसंद करते हैं, तो एक ट्रेडर विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं और ब्रोकरों के बीच एक कानूनी रूप से औपचारिक शर्त, जिसमें::
- ट्रेडर परिसंपत्ति मूल्य (खरीद या बिक्री) की गति की दिशा को निर्धारित करता है,,
- और यदि यह दिशा सही ढंग से निर्धारित की जाती है, तो ब्रोकर ट्रेडर को लेन-देन खुलने और उसके बंद होने के समय परिसंपत्ति की कीमत के बीच अंतर का भुगतान करता है,
- यदि ट्रेडर ने दिशा के साथ कोई गलती की, तो यह ट्रेडर है जो नुकसान उठाता है और ब्रोकर को कीमत में संगत अंतर का भुगतान करता है।
उसी समय, परस्पर समायोजनों में स्प्रेड और ब्रोकर के कमीशन के साथ-साथ किसी दिए गए लेवरेज के मूल्य को ध्यान में रखा जाता है, जिस पर लेन-देन का वॉल्यूम निर्भर करता है और, तद्नुसार, लाभ या हानि जो एक या कोई अन्य पार्टी कमाएगी।
कई ट्यूटोरियल और लेख बताते हैं कि मुख्य अंतर उन वित्तीय साधनों में निहित है जो फॉरेक्स और CFDs ट्रेड करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
यह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि करेंसी युग्म के साथ लेन-देन फॉरेक्स से संबंधित हैं। लेकिन स्टॉक और स्टॉक सूचकांक में ट्रेडिंग पारंपरिक रूप से CFD समूह में आते हैं।
तेल सौदों को आमतौर पर CFDs के रूप में भी जाना जाता है, कीमती धातुओं, सोने और चाँदी के विषय में, किसी कारण से उन्हें विभिन्न ब्रोकरों के फॉरेक्स खंड में अधिक बार पाया जा सकता है। क्रिप्टोकरेंसियों को अपना अंतिम "घर" भी नहीं मिला है। लेकिन यह संभव है कि डिजिटल डॉलरों या युआन के आगमन के साथ, वे अंत में फॉरेक्स खंड में एक पायदान हासिल करेंगे।
लेवरेज और मार्जिन के आकार के विषय में, यहाँ अंतर, बल्कि, ट्रेडिंग परिसंपत्ति के प्रकार से उत्पन्न होता है, न कि इसके कारण कि कौन से समूह, फॉरेक्स या CFD से संबंधित है। उदाहरण के लिए, करेंसी युग्मों को ट्रेड करते समय, लेवरेज 1: 1000 तक पहुँच सकता है, विनिमय सूचकांकों के लिए यह 1:10 से अधिक नहीं है, और शेयरों के लिए 1: 5 है। लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि बाजार की स्थिति के आधार पर, ट्रेडिंग की स्थिति बदल सकती है, इसलिए आपको अनुबंध की विशिष्टताओं और ब्रोकर की वेबसाइट पर वर्तमान जानकारी का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता होती है।
साथ ही, चर्चा किए गए क्षेत्रों को ट्रेडिंग समय से विभाजित करने का प्रयास भी नगण्य है, क्योंकि यह कारक ट्रेडिंग परिसंपत्ति के प्रकार पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, विदेशी मुद्रा बाजार में, ट्रेडिंग दिन में 24 घंटे, सप्ताह में 5 दिन आयोजित की जाती है। लेकिन आप उसी शेड्यूल के अनुसार कीमती धातुओं या तेल से लेन-देन कर सकते हैं। और आप क्रिप्टोकरेंसियों को लगभग हर समय, साल में 365 दिन, बिना छुट्टियों और अवकाशों के।
आप उन कारकों के बीच अंतर खोजने की कोशिश कर सकते हैं जो किसी विशेष परिसंपत्ति के उद्धरण को प्रभावित करते हैं। कुछ पाठ्यपुस्तकों के लेखक लिखते हैं कि, उदाहरण के लिए, CFDs की कीमत काफी हद तक ट्रेड की गईं परिसंपत्तियों की आपूर्ति और माँग पर निर्भर करती है, और फॉरेक्स पर करेंसियों का मूल्य ऐसे मौलिक कारकों पर आधारित होता है जैसे कि मैक्रोइकॉनोमिक संकेतक और राजनीतिक स्थितियाँ। हालाँकि, हमारी राय में, इस तरह का एक क्रम बहुत दूर है, क्योंकि दुनिया में राजनीतिक स्थिति विदेशी मुद्रा विनिमय और शेयर एवं कमोडिटी बाजारों दोनों को प्रभावित करती है। और आर्थिक स्थिति में बदलाव, उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य में या तो निवेशकों की जोखिम की भूख और सरकारी बॉण्ड्स से स्टॉक में या फिएट से सोने और विदेशी मुद्रा संकेतों के लेखक कौन हैं बिटकॉइन में पूँजी के प्रवाह में वृद्धि या कमी करता है।
निष्कर्ष
एक खेल है जिसमें एक बच्चे को दो लगभग समान चित्र दिखाए जाते हैं और 10 अंतर खोजने के लिए कहा जाता है। हमारे मामले में, उन्हें ढूँढना काफी मुश्किल है। इसलिए, निष्कर्ष स्पष्ट है: फॉरेक्स CFDs की किस्मों में से बस एक है। हाँ, फॉरेक्स में कुछ विशिष्ट विशेषताएँ हैं। लेकिन इसमें अलग की तुलना में अन्य CFD क्षेत्रों के साथ बहुत कुछ उभयनिष्ठ है। और यही कारण है कि ब्रोकरेज कंपनी NordFX ने सभी प्रकार के ट्रेडिंग उपकरणों - करेंसियों और क्रिप्टोकरेंसियों, कीमती धातुओं और तेल, स्टॉक और स्टॉक सूचकांकों को संयुग्मित करने का चतुराईपूर्ण निर्णय लिया। और अब, केवल एक ट्रेडिंग अकाउंट खोलने पर, एक ट्रेडर विभिन्न प्रकार की ट्रेडिंग रणनीतियों का उपयोग करते हुए, जोखिमों को कम करके और इस तरह लाभ कमाने की संभावना बढ़ाते हुए इन सभी परिसंपत्तियों के साथ एक साथ लेन-देन करने में सक्षम है।
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