नई दिल्ली, 19 जुलाई (आईएएनएस)। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने न केवल यूरोप बल्कि व्यापक मध्य पूर्व में भी आर्थिक आघात पहुंचाया है।

विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं

नई दिल्ली. इस सप्ताह भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट आई है. रुपए को सपोर्ट करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डॉलर को बेचा जिसके कारण इस सप्ताह देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2.6 बिलियन डॉलर की गिरावट के साथ 619.6 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं इसमें 10 बिलियन डॉलर से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई थी. रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के कारण करेंसी मार्केट में वोलाटिलिटी काफी ज्यादा है. ऐसे में आरबीआई ने गिरते रुपए को संभालने के लिए डॉलर रिजर्व को बेचा है.

रिजर्व बैंक के होल्डिंग में गोल्ड रिजर्व भी होता है. सोने की कीमत में आई गिरावट के कारण रिजर्व बैंक का गोल्ड रिजर्व 1.7 बिलियन डॉलर घटकर 42 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. फॉरन करेंसी असेट यानी FCA में 703 मिलियन डॉलर की गिरावट दर्ज की गई और यह घटकर 553 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया.

इस सप्ताह MCX पर अप्रैल डिलिवरी वाला सोना 51888 रुपए के स्तर पर बंद हुआ. जून डिलिवरी वाला सोना 52381 रुपए प्रति दस ग्राम के स्तर पर बंद हुआ. यूक्रेन क्राइसिस के बीच 8 मार्च को अप्रैल डिलिवरी वाला सोना 55558 रुपए प्रति दस ग्राम के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया. हालांकि, उसके बाद से लगातार इसमें गिरावट देखी जा रही है. जून डिलिवरी वाला सोना 56163 रुपए के स्तर तक पहुंचा था. उसके बाद से इसमें भी लगातार गिरावट आ रही है.

रिजर्व बैंक समय-समय पर डॉलर रिजर्व को बेचकर करेंसी की वैल्यु को बरकरार रखता है. शेयर बाजार से फॉरन इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर्स लगातार बिकवाली कर रहे हैं जिसके कारण डॉलर आउटफ्लो था. यही वजह है कि रिजर्व बैंक को डॉलर रिजर्व बेचना पड़ा. हालांकि, पिछले कुछ कारोबारी सत्रों से विदेशी निवेशक खरीदारी कर रहे हैं. जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि विदेशी निवेशक जैसे-जैसे खरीदारी करेंगे, वैसे-वैसे रुपए में मजबूती आएगी. रिलायंस सिक्यॉरिटीज के सीनियर रिसर्च ऐनालिस्ट श्रीराम अय्यर ने कहा कि अगले कुछ सप्ताह में रुपया 76 के स्तर तक पहुंच सकता है.

विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा के कमजोर होने के बीच अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में शुक्रवार को रुपया कारोबार के अंत में 11 पैसे की तेजी के साथ 76.22 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 76.15 पर खुला. कारोबार के दौरान रुपए ने 76.12 रुपए के दिन के उच्चस्तर और 76.29 के निचले स्तर को छुआ. गुरुवार को रुपया छह पैसे के सुधार के साथ 76.33 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था.

ब्लॉग: चीन के चक्रव्यूह में फंसते भारत के पड़ोसी, श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी कम हो रहा विदेशी विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं मुद्रा भंडार

India's neighbour like Bangladesh and Nepal also getting trapped in China loan maze | ब्लॉग: चीन के चक्रव्यूह में फंसते भारत के पड़ोसी, श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी कम हो रहा विदेशी मुद्रा भंडार

चीन के चक्रव्यूह में फंसते भारत के पड़ोसी (फाइल फोटो)

चेतावनी गंभीर है. अभी तक बांग्लादेश बचा हुआ था, लेकिन अब वह भी गिरफ्त में आ गया. चीन के चक्कर में आत्मघाती रास्ते पर चल पड़ा है. मुश्किल है कि उसे समझ में तो आ गया, मगर चीनी चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकले, वह नहीं समझ पा रहा है. बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफा कमाल का ताजा बयान इसका सबूत है. उनके इस बयान ने अनेक देशों में खलबली मचा दी है.

मुस्तफा कहते हैं कि चीन अपने कर्ज जाल में फांसकर गरीब देशों को तबाह कर रहा है. छोटे मुल्कों को चीन के कर्ज से बचना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि चीन की शर्तें बेहद खराब और सख्त हैं. उनमें पारदर्शिता नहीं है. उनसे बेईमानी की बू आती है. वित्त मंत्री का बयान इसलिए भी गौरतलब है कि वे पहले वित्त मंत्री हैं, जिन्होंने अपनी सरकार की ओर से अधिकृत बयान दिया है.

अभी तक चीनी ऋण के मारे मुल्क उसके आगे चूं तक नहीं करते थे. वे जानते थे कि अब इस कर्ज जाल से बाहर निकलना उनके लिए कठिन है. इसलिए चुप्पी साधे अपनी बर्बादी देखते रहते थे. पहले पाकिस्तान और उसके बाद श्रीलंका का हाल सारी दुनिया देख रही है. बांग्लादेश ने पहली बार यह साहस दिखाया है.

बांग्लादेश की स्थिति को तनिक विस्तार से समझना होगा. जब मुस्तफा कमाल कहते हैं कि चीन का बेल्ट एंड रोड अच्छा है तो उसका मतलब चीन के अपने हितों के बारे में है. लेकिन वे आगे खुलासा करते हैं कि इसी परियोजना के कारण छोटे और विकासशील राष्ट्र तबाह हो रहे हैं. चीन एक बड़ा देश है. वह जो धन इस परियोजना में पूंजी के तौर पर लगा सकता है, उतना कई देशों का साल भर का बजट है. ऐसे में छोटे और मंझोले देश अपनी प्राथमिकताओं को पीछे धकेल देते हैं और चीन के चंगुल में फंस जाते हैं.

बेल्ट एंड रोड में करीब सत्तर देशों को जोड़ने का इरादा है. उन्हें रेल, सड़क और समुद्री मार्गों के जरिये आपस में जोड़ा जाएगा. छह साल पहले बांग्लादेश इस परियोजना में शामिल होने को राजी हुआ. बांग्ला प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच करार हुआ. कुल छब्बीस अरब डॉलर में से 14 अरब डॉलर संयुक्त रूप से खर्च किए जाने थे. इसी बीच रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ गई. बांग्लादेश में पेट्रोल, डीजल तथा कच्चे तेल के अन्य उत्पादों की कीमतें आसमान में जा पहुंची.

बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार चालीस अरब डॉलर से भी कम रह गया है. यानी मुल्क के पास केवल चार-पांच महीने तक आयात करने लायक भंडार बचा है. अब वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अनेक बड़ी संस्थाओं के आगे सहायता के लिए गिड़गिड़ा रहा है. उसका संकटकालीन फंड चीन के साथ परियोजना में खर्च हो चुका है. यही उसका संकट है. भारत से भी उसने मदद की गुहार की है. इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि बांग्लादेश आज रेडीमेड वस्त्रों का सबसे बड़ा निर्यातक है और उसके लिए सारा कच्चा माल यानी कॉटन भारत से जाता है. यदि भारत भी कॉटन देने से मना कर दे तो बांग्लादेश की हालत और खराब हो जाएगी. ऐसे में वह भारत से उधार माल चाहेगा.

बांग्लादेश के बाद आइए नेपाल की ओर. रविवार को नेपाल में नई संसद और विधानसभाओं के लिए मतदान हुआ. इस पूरे चुनाव प्रचार में चीन की भूमिका का भी बड़ा मुद्दा छाया रहा. सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के मुखिया और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भारत के प्रति सहानुभूति रखने वाले माने जाते हैं और चीन के नेपाल में बढ़ते आर्थिक प्रभाव को पसंद नहीं करते. लेकिन सरकार में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपी एनएमसी) के सर्वेसर्वा पुष्प कमल दहल प्रचंड का चीन के प्रति मोह जगजाहिर है.

उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व में विपक्ष का गठबंधन है. इसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल - यूनाइटेड मार्कसिस्ट (सीपीएन- यूएमएल) के साथ राजशाही समर्थक और हिंदूवादी पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) है जो 150 सीटों पर एफपीटीपी व्यवस्था के तहत चुनाव लड़ रही है. विपक्ष के मोर्चे में भी वैचारिक अंतर्विरोध छिपे नहीं हैं. दोनों पक्षों में अंदर-अंदर चीन के समर्थन और विरोध के सुर उभरते रहे हैं. इस बार नेपाल में महंगाई आसमान पर है और अवाम इसके लिए चीन को जिम्मेदार मानती है.

चीन के बेल्ट एंड रोड पर भी नेपाल की सियासत बंटी हुई है. मगर बहुमत यह मानता है कि नेपाल ने 2017 में जो समझौता चीन से किया था, उसने नेपाल की हालत खस्ता कर दी है. यही नहीं, चीन से आने वाले सामान पर नेपाल में कोई कर नहीं लगता. इस एकतरफा सौदे में नेपाल को घाटा ही है. लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बावजूद वह चीनी माल पर कोई टैक्स नहीं लगा पा रहा है. अब चीन नेपाल सरकार पर यह दबाव डाल रहा है कि पाकिस्तान की तरह वहां भी चीनी मुद्रा प्रचलन में आ जाए. इससे नेपाल को कोई लाभ नहीं होने वाला है.

चीन के इस असर का परिणाम है कि श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है. मौजूदा हाल में नेपाल लगभग विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं छह महीने ही आयात की स्थिति में है. छह-सात महीने पहले नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार 975 करोड़ डॉलर था. इसमें लगातार गिरावट आई है. यदि पिछले साल से तुलना करें तो करीब 1200 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ नेपाल बेहतर स्थिति में था. कोई पच्चीस हजार करोड़ नेपाली रुपए की भंडार में कमी देश की चिंता बढ़ाती है.

भारत के इन तीनों पड़ोसियों पर चीन अब अपने कर्ज की वसूली के लिए दबाव डाल रहा है. इन मुल्कों की हालत अभी ऋण चुकाने की नहीं है. बांग्लादेश ने चार अरब डॉलर का कर्ज लिया है. श्रीलंका को चीन के 37000 करोड़ रुपए चुकाने हैं और नेपाल पहले ही चीन के 6. 67 अरब रुपए के कर्ज में डूबा है.

विदेशी मुद्रा भंडार ने फिर लगाया गोता, सात दिनों में 1.09 अरब डॉलर की आई गिरावट

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बिज़नेस न्यूज डेस्क - विदेशी मुद्रा भंडार में एक बार फिर गिरावट विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं आई है। 4 नवंबर 2022 को खत्म हुए हफ्ते में यह 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.99 अरब डॉलर रह गया। इसका कारण सोने के भंडार में भारी गिरावट है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक पिछले हफ्ते विदेशी मुद्रा भंडार 6.56 अरब डॉलर बढ़कर 531.08 अरब डॉलर हो गया, जो साल के दौरान किसी एक हफ्ते में सबसे ज्यादा था। एक साल पहले, अक्टूबर 2021 में, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, देश के मुद्रा भंडार में गिरावट का मुख्य कारण यह है कि आरबीआई वैश्विक विकास के कारण रुपये की गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार की मदद ले रहा है।

रिजर्व बैंक की ओर से शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, 4 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा माने जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियों यानी एफसीए 120 करोड़ डॉलर की गिरावट के साथ 470.73 अरब डॉलर पर आ गया। डॉलर में मूल्यवर्ग, एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी गई यूरो, पाउंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्राओं की सराहना या मूल्यह्रास का प्रभाव भी शामिल है। आंकड़ों के मुताबिक समीक्षाधीन सप्ताह में सोने के भंडार की कीमत 705 करोड़ डॉलर घटकर 37.057 अरब डॉलर रह गई. केंद्रीय बैंक ने कहा कि विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 23.5 करोड़ डॉलर घटकर 17.39 अरब डॉलर हो गया है। आंकड़ों के मुताबिक, समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रखा गया देश का मुद्रा भंडार भी 27 लाख डॉलर घटकर 4.82 अरब डॉलर रह गया।

विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं

जुलाई के अंत में चीन का विदेशी मुद्रा पैमाना 31.04 करोड़ अमेरिकी डॉलर है

चीनी राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा प्रबंध ब्यूरो के नये आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई के अंत में चीन का विदेशी मुद्रा पैमाना करीब 31.04 करोड़ अमेरिकी डॉलर है, जो जून के अंत की तुलना में 32.8 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होगी, जिसकी वृद्धि दर 1.07 फीसदी है।

चीनी राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा प्रबंध ब्यूरो की उप प्रभारी और प्रेस प्रवक्ता वांग छुनयिंग ने कहा कि जुलाई माह में चीन के विदेशी मुद्रा बाजार का प्रचलन आमतौर पर स्थिर रहा। देश में विदेशी मुद्रा की सप्लाई और मांग में संतुलन होता है। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार में प्रमुख देशों की मुद्रानीति, आर्थिक विकास और मुद्रास्फीती के प्रति चिंता होने से प्रभावित होकर अमेरिकी डॉलर की सूचकांक में बढ़ोतरी हुई है। वैश्विक प्रमुख वित्तीय पूंजी के दाम में उन्नति हुई है।

हाल में वैश्विक आर्थिक परिस्थिति चुनौती का सामना कर रही है, अस्थिरता और अनिश्चितता स्पष्ट रूप से बढ़ती रही है। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं बाजार में अपेक्षाकृत बदलाव आ रहा है। चीन ने महामारी-रोधी और आर्थिक व सामाजिक विकास कार्यों को संतुलित रूप से कार्यान्वित करने की कोशिश की। चीन की अर्थव्यवस्था में मजबूत लचीलापन, भारी निहित शक्ति और पर्याप्त जीवित शक्ति है। चीन की अर्थव्यवस्था स्थिति के बेहतर होने की प्रवृत्ति नहीं बदलती है, इसलिए चीन में विदेशी मुद्रा का भंडार आम तौर पर स्थिर हो सकता है।

विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं

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कई नई चुनौतियों का सामना कर रहा आर्थिक संकट से घिरा पाकिस्तान

कई नई चुनौतियों का सामना कर रहा आर्थिक संकट से घिरा पाकिस्तान

कई नई चुनौतियों का सामना कर रहा आर्थिक संकट से घिरा पाकिस्तान

नई दिल्ली, 19 जुलाई (आईएएनएस)। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने न केवल यूरोप बल्कि व्यापक मध्य पूर्व में भी आर्थिक आघात पहुंचाया है।

अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के एक सीनियर फेलो माइकल रुबिन ने लिखा है कि पाकिस्तान, जिसकी अर्थव्यवस्था दशकों के भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और अस्थिर शासन के कारण पहले से ही कमजोर है, उस पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा है।

जबकि कई देश यूक्रेनी या रूसी गेहूं या विदेशी ऊर्जा आयात पर निर्भर हैं, वहीं पाकिस्तान को दोनों की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, जुलाई 2020 और जनवरी 2021 के बीच, इंडोनेशिया और मिस्र के बाद पाकिस्तान यूक्रेनी गेहूं के निर्यात का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था।

रुबिन ने लिखा है कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है और इसके आयात की लागत 85 प्रतिशत से अधिक बढ़कर लगभग 5 अरब डॉलर हो गई है।

एक के बाद एक पाकिस्तानी नेताओं की ओर से सुधारों से परहेज करने के कारणों में से एक यह रहा है कि उनका मानना था कि चीन द्वारा बनाई गई परियों की कहानियों (दिखाई गए झूठे सपने) को स्वीकार करना आसान है। पाकिस्तान के लिए आर्थिक रक्षक होने की बात तो दूर, अब यह स्पष्ट है कि बीजिंग ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का इस्तेमाल पाकिस्तान को गुलाम बनाने के लिए एक तंत्र के रूप में किया है, जिसे शरीफ के भाई नवाज ने मूर्खता से स्वीकार कर लिया था।

उन्होंने उन शब्दों में अपनी बात कही है जिन्हें लेकर आज के समय में ज्यादातर पाकिस्तानी परेशान हैं। इसे याद करते हुए रुबिन ने लिखा, हमारी दोस्ती हिमालय से भी ऊंची और दुनिया के सबसे गहरे समुद्र से भी गहरी और शहद से भी मीठी है।

उन्होंने कहा, पाकिस्तान में विकास को बढ़ावा देने के बजाय, सीपीईसी इस्लामाबाद के लिए एक दायित्व बन गया है। चीनी स्वतंत्र बिजली उत्पादकों को सॉवरेन काउंटर गारंटी पाकिस्तानी सरकार के राजस्व को खा जाती है, भले ही पाकिस्तान को लंबे समय तक बिजली की कटौती का सामना करना पड़ रहा है। सीपीईसी परियोजना का कार्यान्वयन छिटपुट है, हालांकि, पिछले चार वर्षों से, पाकिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा चीनी अनुदान और सहायता प्राप्त करने वाला देश है।

विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान जल्द ही व्यापक आर्थिक अस्थिरता का सामना कर सकता है। सामाजिक अस्थिरता जल्द ही पीछा करेगी। पाकिस्तान के निजी क्षेत्र ने भी कर्मचारियों एवं लेबर क्लास के काम के लिए भी पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं की हैं। रुबिन ने कहा कि क्रोध उबलते बिंदु पर पहुंच रहा है और बढ़ती आपराधिकता सामाजिक ताना-बाना टूटने का संकेत देती है।

रुबिन ने कहा, श्रीलंका का पतन क्षेत्र को चिंतित करता है, लेकिन पाकिस्तान के पतन से दुनिया को चिंता होनी चाहिए। दशकों से, पाकिस्तान में सरकार की विफलता एक बुरा सपना रही है। पाकिस्तान और व्यापक दुनिया दोनों ने उस परि²श्य को करीब से देखा है, जिसमें हिंसा, उग्रवाद और गरीबी व्याप्त रूप से है। कराची की पूर्व राजधानी और वाणिज्यिक केंद्र और पाकिस्तानी अधिकारियों ने अफगानिस्तान सीमा के साथ कई क्षेत्रों पर नियंत्रण खो दिया है।

उन्होंने आगे कहा, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और ईरान का पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार की सुरक्षा के बारे में चिंता करना लाजिमी है, क्योंकि सैन्य अधिकारी भी इसे पाने के लिए संघर्ष करना शुरू कर देते हैं। पाकिस्तानी अभिजात वर्ग यह मानने से इनकार की स्थिति में रहता है कि व्यापक समाज से अलग एक समृद्ध जीवन जीने के लिए यथास्थिति स्थायी है। हालांकि ऐसा नहीं है। बुलबुला अब फूट रहा है और परिणाम सुंदर नहीं होगा।

पाकिस्तान के लिए, यह एक आदर्श तूफान है। 30 जून, 2022 को पाकिस्तान के वित्तीय वर्ष के अंत में, उसका व्यापार घाटा 50 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 57 प्रतिशत अधिक है। यदि शहबाज शरीफ सरकार ने मई 2022 में 800 से अधिक गैर-जरूरी विलासिता की वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाया होता, तो यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता था।

सिटीग्रुप के इमजिर्ंग मार्केट डिवीजन के पूर्व मुख्य रणनीतिकार युसूफ नजर का अनुमान है कि पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार फरवरी के बाद से आधे से घटकर केवल 6.3 अरब डॉलर रह गया है, जो ईरान को तथाकथित अधिकतम दबाव अभियान के तहत झेलना पड़ा था। रुबिन का कहना है कि पाकिस्तान को किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की खैरात मिली है। रुबिन ने लिखा, यह गंभीर सुधारों को लागू करने के लिए शरीफ, भुट्टो और खान की अनिच्छा या अक्षमता को दर्शाता है।

मध्यम वर्ग भी महंगाई को झेल नहीं पा रहा है। जून में मुद्रास्फीति (महंगाई) बढ़कर 20 प्रतिशत से अधिक हो गई, जो हाल के दिनों में सबसे अधिक है। एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित सब्सिडी को समाप्त करने से बिजली और गैस दोनों की कीमतें बढ़ गई हैं, यहां तक कि यह दुनिया भर में तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण हुई बढ़ोतरी से भी ज्यादा है। इसके साथ ही खाद्य असुरक्षा व्याप्त है।

इस बीच, अमेरिकी डॉलर की तुलना में पाकिस्तानी रुपये का मूल्य लगातार गिर रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 30 प्रतिशत से अधिक है। इसके विपरीत, भारतीय रुपया सिर्फ छह प्रतिशत से अधिक लुढ़का है।

रुबिन ने लिखा, अंतर्राष्ट्रीय धैर्य कम हो गया है। आईएमएफ अब सुधार के पाकिस्तानी वादों पर भरोसा नहीं करता है और वह अच्छी खासी खैरात देने को तैयार नहीं है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा मांगे गए सुधारों के संचालन के लिए इस्लामाबाद की अनिच्छा इस बात को रेखांकित करती है कि इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी पाकिस्तानी वित्त के संदिग्ध पहलुओं के साथ कैसे जुड़ी हुई है।

उन्होंने कहा, कुछ पाकिस्तानी उदारवादियों द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रुके हुए व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौते को फिर से शुरू करने के प्रयास कुछ नहीं कर पाए, विशेष रूप से खराब पाकिस्तानी नियामक प्रथाओं, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, डेटा संरक्षण और बौद्धिक संपदा अधिकारों के साथ वाशिंगटन की चिंताओं को देखते हुए यह कहा जा सकता है।

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