विधेय के विश्लेषण के माध्यम से हम जान सकते हैं कि यह क्या करता है, कहाँ और किस विषय के लिए वाक्य में संदर्भित है।
मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है?
Year: Jul, 2021
Volume: 18 / Issue: 4
Pages: 92 - 94 (3)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/304874
Published On: Jul, 2021
गृह प्रबंध में गृहिणी की भूमिका: एक विश्लेषण | Original Article
Shikha Choudhary*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research
परिभाषा विधेय
विधेय शब्द के अर्थ को निर्धारित करने के लिए आगे बढ़ने से पहले, इसकी व्युत्पत्ति के मूल को रिकॉर्ड करना आवश्यक है। इस अर्थ में, हम स्थापित कर सकते हैं कि यह लैटिन से निकलता है और यह उस भाषा के कई घटकों के योग का परिणाम है:
• उपसर्ग "पूर्व-", जो "आगे" इंगित करता है।
• क्रिया "डाइकेयर", जिसका अनुवाद "संकेत या अभिषेक" के रूप में किया जा सकता है।
• प्रत्यय "-डो", जिसका उपयोग यह स्थापित करने के लिए किया जाता है कि यह प्राप्त किया गया है
स्कूल में, हम आमतौर पर वाक्यों को विषय और विधेय में अलग करना सीखते हैं। इस लेख में हम दूसरी अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करेंगे: विधेय क्या है?
शोध : प्रविधि और प्रक्रिया/शोध क्या है?
व्यापक अर्थ में शोध या अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं की खोज और पुरानी वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं। शोध के अंतर्गत बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है। शोध का परिचय देते हुए डॉ. नगेन्द्र लिखते हैं कि-"अनुसंधान का अर्थ है परिपृच्छा, परीक्षण, समीक्षण आदि। संधान का अर्थ है दिशा विशेष में प्रवृत्त करना या होना और अनु का अर्थ है पीछे, इस प्रकार अनुसंधान का अर्थ हुआ—किसी लक्ष्य को सामने रखकर दिशा विशेष में बढ़ना—पश्चाद्गमन अर्थात् किसी तथ्य की प्राप्ति के लिए परिपृच्छा, परीक्षण आदि करना।" [१]
मुल्यांकन का अर्थ, परिभाषा और प्रकार
मुल्यांकन (Mulyankan) : यह दो शब्दों से मिलकर बना हैं- मूल्य-अंकन। यह अंग्रेजी के Evaluation शब्द का हिंदी रूपांतरण हैं। मापन जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों को अंक प्रदान करता हैं, वही मुल्यांकन उन अंकों का विश्लेषण करता हैं और उनकी तुलना दूसरों से करके एक सर्वोत्तम वस्तु या व्यक्ति का चयन करता हैं।
आज हम जनिंगे की मूल्यांकन क्या हैं, मूल्यांकन का अर्थ और परिभाषा, मूल्यांकन के प्रकार और मूल्यांकन और मापन में अंतर।
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मूल्यांकन (Mulyankan) क्या हैं?
मूल्यांकन का महत्व हर क्षेत्र में बढ़ता ही जा रहा हैं। वर्तमान समय में इसका उपयोग शिक्षा में, आर्मी में, या सम्मानित पदों में किया जाता हैं। इसके द्वारा एक उत्तम नागरिक का निर्धारण किया जा सकता हैं। मूल्यांकन Evaluation मापन द्वारा प्राप्त अंकों का विस्तृत अध्ययन करता हैं और यह अध्ययन वह सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक आधार पर करता हैं।
मूल्यांकन दो व्यक्तियों के मध्य उनके गुणों में व्याप्त भिन्नता को ज्ञात करने का भी कार्य करता हैं। इसके द्वारा यह पता चलता हैं कि किस व्यक्ति के अंदर कौन से गुण की मात्रा अधिक हैं।
मूल्यांकन की परिभाषा
मुल्यांकन mulyankan के प्रकार
1- संरचनात्मक मुल्यांकन
2- योगात्मक मुल्यांकन
1- संरचनात्मक मुल्यांकन – निर्माणाधीन कार्यो के मध्य जब किसी का मूल्यांकन किया जाता है उसे संरचनात्मक मुल्यांकन कहते हैं शिक्षा से इसको देखा जाए तो जब छात्र किसी कक्षा में होते हैं तो उनका यूनिट टेस्ट या टॉपिक टेस्ट लिया जाता हैं उसे ही संरचनात्मक मुल्यांकन (Sanrachnatmak mulyankan) कहा जाता हैं।
2- योगात्मक मुल्यांकन – इसका प्रयोग अंत में किया जाता हैं जैसा कि इसके नाम से ही पता चल रहा हैं योग। अर्थात अंत में जब छात्रों की वार्षिक परीक्षा ली जाती हैं उसे ही योगात्मक मुल्यांकन कहा जाता है
मुल्यांकन और मापन में अंतर
- मुल्यांकन (mulyankan) किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों का विश्लेषण करता हैं और मापन किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण को अंक प्रदान करती हैं जैसे किसी व्यक्ति की लंबाई, चोड़ाई, वजन आदि।
संश्लेषण और विश्लेषण
संश्लेषण का अर्थ है- अनेक को एक करना, जबकि विश्लेषण का अर्थ है एक को अनेक करना। मनुष्य जब क्षुद्र बुद्घि भावना से प्रेरित होकर कोई काम मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है? करता है तो वह दुःख पाता है, वही जब कोई वृहद भाव से काम करता है तब उसे शांति मिलती है। जो क्षुद्र भावना लेकर काम करते हैं, उनका पथ है विश्लेषण का। जो अनेक को एक करते हैं, उनका रास्ता है संश्लेषण का। अतएव संश्लेषण ही शांति है और विश्लेषण ही मृत्यु है। जब मनुष्य देखेंगे कि दुनिया में कोई अपना नहीं है, तब भीतर हाहाकार शुरू हो जायेगा। दुःख के पीछे कारण है विश्लेषण का और सुख के पीछे कारण है संश्लेषण का। यह जो संश्लेषणात्मक गति, अनेक को एक बनाने का प्रयास है, यही है साधना। साधना ‘मैं’ को बढ़ाते-बढ़ाते अनन्त बना देता है। तब जिधर देखोगे उधर ही मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है? ‘मैं’। पुण्यकर्म है संश्लेषण। अनेक को एक बनाते चलो, एक को अनेक नहीं। आत्मा सबके लिए मधुमय है और आत्मा के लिए भी हर वस्तु मधुमय है। तुम्हारे लिए तुम्हारा ‘मैं पन’ जितना प्यारा है दूसरों के लिए उनका ‘मैं’ भी तो उतना ही प्यारा है। एक छोटा सा दृष्टान्त है- एक बार मैंने देखा, किसी एक ऑफिस का चपरासी मेरे एक परिचित व्यक्ति के पास आया। परिचित व्यक्ति ने उसकी तरफ देखा नहीं और चपरासी करीब आधा घण्टा उनके पास खड़ा रहा। उसके बाद उसने कहा, ‘बाबू, यह चिट्ठी आपकी है।’ वे चिल्लाकर बोले- ‘जाओ, चले जाओ, डिस्टर्ब मत करो।’ चपरासी मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है? कुछ नहीं बोला। उसके बाद एक दफ्तर में मेरे वही परिचित व्यक्ति एक बार एक चिट्ठी लेकर गये। इस टेबल से उस टेबल घूमते रहे लेकिन चिट्ठी नहीं दे सके और बेचारे परेशान हो गये। वह चपरासी उसी दफ्तर का था। उन्हें देखकर चपरासी ने कहा, ‘बाबू, आइए, यह चिट्ठी फलना बाबू लेंगे।’ बाबू समझ गये कि चपरासी वही था जिससे उन्होंने कहा था, ‘जाओ-जाओ डिस्टर्ब मत करो’ तो वह बाबू शरमा गये। इसलिए दूसरों से व्यवहार करते समय दूसरों के मन की भावना समझ लो- दूसरों का मन क्या चाहता है?
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