-बदलाव ही जिंदगी का लक्षण है। मुंबई ही एक ऐसा शहर है जिसके पिछले सौ सालों में बदलने का पूरा रिकॉर्ड आपको साहित्य और सिनेमा में मिल जाएगा। समुंदर में कितने ही ज्वार-भाटे आएं हों यह महानगर पूरी जीवंतता के साथ अडिग है। बीते 35 बरसों में कौन से दलालों को चुनना है? मुंबई का आकार-प्रकार तो बदला ही है, यहां की राजनीति और लोग भी बदले हैं। कौन से दलालों को चुनना है? बीते कुछ बरसों में यहां के लोगों में अनुशासन कुछ कम हुआ है और शहर में गंदगी बढ़ी है। यह बढ़ती आबादी का नतीजा है। ग्लैमर की दुनिया का आकर्षण ज्यों का त्यों है, मगर इस दुनिया में मौके अब पहले की तुलना में काफी बढ़ गए हैं। अपराध बढ़ने के बावजूद कई शहरों के मुकाबले यह सुरक्षित है।

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धर्मेंद्र राठौड़ कांग्रेस-भाजपा का कौन से दलालों को चुनना है? रजिस्टर्ड दलालः पायलट समर्थक MLA का बयान

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राजस्थान में जुबानी जंग की रौ में भाषाओं की मर्यादाएं तार तार हो रही हैं. खेमों में बंटी कांग्रेस के गहलोत बनाम पायलट समर्थक चुन चुन कर जुमलों और विवादित बोलों का इस्तेमाल कर रहे हैं (Ved Solanki On Dharmendra Rathore). गद्दार, धोखेबाज जैसे शब्दों के बाद अब रजिस्टर्ड दलाल की बारी आ गई है. इस बार कौन से दलालों को चुनना है? पायलट खेमे के वेद सोलंकी ने अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ इसका प्रयोग कौन से दलालों को चुनना है? किया है.

ऑनलाइन पोल रिजल्ट: देखिये, फरीदाबाद में किसकी लहर, कौन जीत सकता है चुनाव, कौन बेहतर उम्मीदवार

फरीदाबाद 13 मार्च: देश में लोकसभा चुनाव 2019 का ऐलान हो चुका है, 11 अप्रैल से 19 मई के बीच में सात चरणों में चुनाव होना है, फरीदाबाद में 12 मई को चुनाव होगा और इसी दिन हरियाणा और दिल्ली की सभी सीटों पर मतदान होगा.

फरीदाबाद में अभी किसी भी पार्टी के उम्मीदवार का नाम फाइनल नहीं है. कृष्णपाल गुर्जर को टिकट मिलना करीब करीब तय है लेकिन अन्य राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों के नाम सामने नहीं आ रहे हैं. हमने कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी मानते हुए लोकप्रियता के हिसाब से दो कौन से दलालों को चुनना है? उम्मीदवारों - करण दलाल और अवतार भड़ाना को चुना है और फरीदाबाद लेटेस्ट न्यूज़ फेसबुक कौन से दलालों को चुनना है? पेज पर एक ऑनलाइन सर्वे किया है.

सवालों के घेरे में ‘दलाल की बीवी’ के लेखक रवि बुले

रवि बुले के लेखन को मैं गंभीरता कौन से दलालों को चुनना है? से लेता रहा हूँ. हँसते हँसते रुला देने वाली कहानियों का लेखक. पॉपुलर और सीरियस को फेंटने वाला लेखक. लेकिन इधर उन्होंने ‘दलाल की बीवी’ नामक उपन्यास में ‘मंदी के दिनों में लव सेक्स और धोखे की कहानी’ क्या लिखी कि सवालों के घेरे में आ गए. यह साहित्य की कौन सी परंपरा है? क्या लेखक ने सीरियस और पॉपुलर को फेंटते फेंटते पॉपुलर के सामने पूरा सरेंडर कर दिया है? क्या यह पतन है? जानकी पुल के सवालों के घेरे में आ गए रवि बुले. पढ़िए उनसे एक रोचक बातचीत. हम सवालों के फेंस लगाते रहे, वे उनके जवाब फेंस तोड़ कर बाहर निकलने को छटपटाते रहे- प्रभात रंजन

– हिंदी में गंभीर लेखन की एक ही परंपरा मानी जाती है-प्रेमचंद की परंपरा। आप खुद को किस परंपरा का लेखक मानते हैं?

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