शेयर बाजार 4 घंटे पहले (19 दिसम्बर 2022 ,16:15)

विनिमय दर

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर्गत अलग-अलग देशों में अलग-अलग मुद्रायें प्रचलित रहती हैं और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रारम्भ करने से पूर्व यह समस्या होती है कि मुद्राओं के बीच विनिमय दर का निर्धारण कैसे किया जाय। किसी मुद्रा की कीमत को अन्य मुद्रा के रूप में व्यक्त करना विनिमय दर कहलाता है।
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विनिमय क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है दर निर्धारण के कई सिद्धान्त हैं-
1. टकसाली सिद्धान्त
2. क्रयशक्ति समता सिद्धान्त
3. भुगतान शेष सिद्धान्त

विनिमय निर्धारण के क्रयशक्ति समता सिद्धान्त को गुस्ताव कैशल में वर्ष 1920 में प्रस्तुत किया। इसके द्वारा दो अपरिवर्ती मुद्राओं के मध्य साम्य विनिमय दर उन देशों की मुद्रा इकाईयों की क्रय शक्तियों के अनुपात द्वारा निर्धारित होती है।

विनिमय निर्धारण का भुगतान शेष सिद्धान्त बताता है कि विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मांग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होता है। विदेशी विनिमय की मांग उधार पक्ष द्वारा जबकि उसकी पूर्ति भुगतान शेष के जमा पक्ष द्वारा की जाती है और जहां विदेशी विनिमय की क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है मांग उसके पूर्ति के बराबर होती है वहीं विनिमय दर निर्धारित होती है। यह विधि विनिमय दर निर्धारण की आधुनिक विधि कहलाती है।

Spot एवं फारवर्ड विनिमय दर :- जब विदेशी विनिमय तत्काल प्रदान क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है की जाती है तो ऐसे प्रचलित विनिमय दर को Spot विनिमय दर कहते हैं परन्तु जब दो पक्षों में इस प्रकार का समझौता हो जिसमें किसी निश्चित भविष्य की निश्चित तिथि पर विनिमय किया जाता हो उसे फारवर्ड विनिमय दर कहते हैं। विदेशी मुद्राओं को इस उद्देश्य से खरीदना तथा विक्रय करना जिससे अलग-अलग बाजारों के विनिमय दर में अन्तर का लाभ उठाया जा सके, आर्विटेज कहलाता है।

हेजर्स :- ये स्वयं को विभिन्न प्रकार के जोखिम से उत्पन्न होने वाली हानि जो विदेशी विनिमय में पायी जाती है से हैजिंग कहलाती है और इन व्यक्तियों को हेजर्स कहा जाता है।

जिस विनिमय दर पर कोई अधिकृत डीलर विदेशी मुद्रा को क्रय करता है उसे विड कहा जाता है और जिस दर पर वह डालर विदेशी मुद्रा को विक्रय करता है उसे आस्करेट कहते क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है हैं।

जब विदेशी विनिमय दर का निर्धारण बाजार में स्वतंत्र रूप से बिना किसी हस्तक्षेप के मांग एवं पूर्ति की सहायता से होता है तो इसे फ्रीफ्लाट कहा जाता है परन्तु जब किसी देश का केन्द्रीय बैंक इस विनिमय दर में हस्तक्षेप करता है तो उसे मैनेज्ड फ्लोट कहते हैं।

विनिमय दर दो प्रकार की होती है-
1. मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (¼NEER)
2. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER)

नीर का तात्पर्य विदेशी विनिमय बाजार पर प्रचलित किसी विदेशी मुद्रा की एक इकाई का घरेलू मुद्रा के रूप में कीमत प्रदर्षित करना है। यदि इसमें मुद्रा स्फीति या मूल्य स्तर में होने वाले परिवर्तनों को समायोजित करें तो इसे रीर कहा जाता है।

सामान्यतः विनिमय दर की दो प्रणालियां हैं-
1. स्थिर विनिमय दर प्रणाली
2. परिवर्तनीय विनिमय दर प्रणाली

जब विनिमय दरें एक स्थिर दर पर निर्धारित की जाती हैं तो उन्हें स्थिर दर विनिमय दर प्रणाली कहा जाता है जबकि बाजार एवं मांग एवं पूर्ति के द्वारा निर्धारित विनिमय दर को परिवर्तनीय विनिमय दर प्रणाली कहा जाता है।

1992-93 ई0 में आर्थिक सुधारों के दौरान व्यापार खाते पर रू0 को आंशिक परिवर्तनीय घोषित किया गया। मार्च 1992 ई0 में उदारीकृत विनिमय दर प्रबन्धन प्रणाली लागू की गयी। मार्च 1993 में व्यापार खाते पर रू0 को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया, जबकि फरवरी 1994 में चालू खाते पर रू0 को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया। यद्यपि पूंजी खाते पर रू0 आंशिक परिवर्तनीय हो गया है।

रू0 की पूर्ण परिवर्तनीयता का तात्पर्य चालू खाते तथा पंजी खाते पर सभी प्रकार के लेन-देन को पूरा करने के लिए रू0 को किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तित करने की स्वतन्त्रता हो।

प्रवासी भारतीयों के सम्बन्ध में कुछ जमा योजनायें चलायी गयी। इन योजनाओं में विदेशी करेन्सी Non Resident Account 1993 ई0 में प्रारम्भ किया गया।

Non Resident Reputabil Deposit योजना 1992 में चलायी गयी। ये योजनायें अनिवासी भारतीयों के क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है जमा के सम्बन्ध में हैं।

1 जून 2000 से विदेशी विनिमय प्रबन्धन अधिनियम लागू किया गया जिसने विदेशी विनिमय नियमन अधिनिमय फेरा को प्रतिस्थापित किया। वास्तव में फेरा पूरी तरह से वर्ष 2002 में लागू हुआ।

ADR, GDR :-. भारत सरकार द्वारा जनवरी 2000 में विदेशी पूंजी एकत्रित करने के लिए इन दोनों को जारी करने की अनुमति दी गयी।

हार्ड करेन्सी का तात्पर्य एक ऐसी मुद्रा से होता है जो अन्य मुद्राओं में परिवर्तित हो और जिसके मूल्य के बदलने की प्रत्याशा हो। इसलिए इसे हाॅट मनी कहा जाता है।

ऐसी विनिमय दर जो उन व्यवहारों से सम्बन्धित हैं जिन्हें 3-6 महीने बाद किया जाता है। उन्हें फारवर्ड रेट कहते हैं।

अपने देश की मुद्रा को किसी अन्य देश में जमा कराना अपतटीय जमा कहलाता है। विदेशी व्यापार के अन्तर्गत कोई ऐसा पोर्ट या एयरपोर्ट जहां किसी प्रकार का प्रशुल्क नहीं लगाया जाता है उसे फ्रीपोर्ट कहा जाता है।

वस्तुओं के आयात कई प्रकार के होते हैं आयातों के सम्बन्ध में एक नकारात्मक सूची होती है। कुछ वस्तुयें ऐसी जिनका निर्यात या आयात सम्भव नही है इन्हें निषेधित वस्तुयें कहते हैं। जैसे-हाथी दांत, जानवरों की चर्बी इत्यादि।

कुछ वस्तुयें ऐसी होती हैं जिनका आयात या निर्यात प्रतिबन्धित होता है और विशेष दशाओं में ही क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है मंगाया जा सकता है। जैसे-अफीम इत्यादि। प्रतिबन्धित वस्तुयें कहलाती हैं।

भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति को लेकर निश्चिंत होकर बैठ जाना सही नहीं होगा

कोरोना महामारी के बाद वैश्विक उत्पादन के धीरे-धीरे सामान्य होने की कोशिशों को बढ़ रही खाद्य और ऊर्जा मुद्रास्फीति का तगड़ा झटका लगा है. खाद्य और ऊर्जा मुद्रास्फीति को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख ने विश्व अर्थव्यवस्था के लिए स्पष्ट और साक्षात खतरा करार दिया है.

यूक्रेन संघर्ष से हुए नुकसान का पूरा आकलन किया जाना अभी बाकी है. सच यह है कि भारत समेत ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष के समाधान से ऊर्जा और खाद्य कीमतों क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है में नरमी आने की उम्मीद के आसरे बैठी हैं.

सरकारों में ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों का पूरा बोझ उपभोक्ताओं पर लादने को स्थगित करने की प्रवृत्ति होती है. यह एक प्रेशर कुकर को पूरी आंच पर ज्यादा समय तक रखे रहने जैसा है. दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका की छोटी अर्थव्यवस्थाएं पहले ही विदेशी मुद्रा संकट के मुहाने पर पहुंच चुकी हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर ऊर्जा और खाद्य की शुद्ध आयातक है.

खुशकिस्मती से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अच्छा-खासा है, लेकिन पिछले लगातार चार हफ्ते से इसमें धीरे-धीरे गिरावट आती जा रही है. 9 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह में भारत के रिजर्व बैंक के मुद्रा भंडार में 11 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी आई और यह गिरकर 606 अरब डॉलर का रह गया.

यूक्रेन युद्ध के वास्तविक प्रभाव सामने आने से पहले ही पांच महीने में इसमें 35 अरब डॉलर की गिरावट आई थी. भारत का विदेशी क्षेत्र फिलहाल स्थिर नजर आ सकता है, लेकिन यह मानकर नहीं बैठ जाना चाहिए कि यह संकटों से अछूता रहेगा.

पहली बात, कई अर्थशास्त्री वर्तमान वित्त वर्ष में भुगतान संतुलन के नकारात्मक रहने का अनुमान लगा रहे हैं. हाल के वर्षों में भारत का चालू खाते का घाटा 1-1.5 फीसदी के आसपास (मोटे तौर पर 40 अरब अमेरिकी डॉलर) रहा है, जिसकी पर्याप्त से अधिक भरपाई कहीं ज्यादा विदेशी पूंजी प्रवाह से हो गई.

दमदार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और स्टॉक मार्केट में सकारात्मक विदेशी संस्थागत निवेशकों के पोर्टफोलियो निवेश का इसमें हाथ रहा. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता चला गया. लेकिन इस वित्तीय वर्ष में समीकरण बदल गया है.

विदेशी निवेशक अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्डों में सुरक्षित शरणस्थली तलाश रहे हैं. अमेरिकी फेडरल रिजर्व अैर ओईसीडी देशों के अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनी आसान पूंजी की नीति को धीरे-धीरे वापस लेने से स्थिति और गंभीर हो गई है.

याद कीजिए, लगभग शून्य ब्याज दरों पर यह आसान पूंजी 2020-21 में भारत के टेक (तकनीक) और ग्रीन एनर्जी (हरित ऊर्जा) क्षेत्र की और बड़े पैमाने पर मुखातिब थी, जो विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी वृद्धि कर रहा था. इन सुहाने दिनों का अंत हो गया है.

अगर मौजूदा रुझानों के हिसाब से देखें, तो 2022-23 में पूंजी के आगमन में तेज गिरावट आएगी और व्यापार घाटा लगभग दोगुना हो जाएगा. ऊंची ऊर्जा और वस्तु (कमोडिटी) कीमतों के कारण भारत का आयात निर्यात की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ रहा है.

मार्च में इसने 18.5 अरब अमेरिकी डॉलर के शीर्ष को छू लिया. वार्षिक तौर पर इसके 210 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाने की संभावना है.

अगर विदेश में रह रहे भारतीयों द्वारा हर साल लगभग 90 अरब डॉलर के रेमिटेंस को आकलन में शामिल करते हुए कहा जाए, तो चालू खाते का घाटा 120 अरब डॉलर के अभूतपूर्व शिखर तक या जीडीपी के 3.5-4 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. भुगतान संतुलन के बने रहने के लिए भारत को इस पैमाने के पूंजी निवेश की दरकार होगी.

ऐसी स्थिति में जब ज्यादातर बड़े केंद्रीय बैंक आसान पूंजी को वापस ले रहे हैं, क्या अगले दस महीनों में ऐसा हो पाना मुमकिन है? ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि भुगतान संतुलन नकारात्मक रहेगा.

उदाहरण के लिए, अगर अपने चालू खाते के घाटे को पाटने के लिए भारत को 120 अरब डॉलर की जरूरत होती है, लेकिन शुद्ध पूंजी निवेश के तौर पर इसे सिर्फ 50 अरब डॉलर की ही प्राप्ति होती है, तो बचे हुए 70 अरब डॉलर के भुगतान के लिए आरबीआई के खजाने से पैसे लेने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा.

ऐसा निश्चित लगता है कि अगले 11 महीनों में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और नीचे आएगा. समस्या यह है कि ऐसा नकारात्मक माहौल बनने से पूंजी का पलायन और भी तेज हो सकता है.

मिसाल के लिए, भुगतान संतुलन के घाटे को पूरा करने के बाद भी आरबीआई के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार हो सकता है, लेकिन इसके बावजूद मुद्रा कमजोर हो सकती है और इसे समर्थन देने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में हाथा डालना पड़ सकता है.

इन हालात में विश्वास दरक सकता है और जोखिम के दूसरे कारक खतरनाक नजर आने लग सकते सकते हैं. मिसाल के लिए, रेसिडुअल मैच्योरिटी आधार पर भारत का लघु आवधिक विदेशी कर्ज (जिनमें अगले 12 महीने में देय होनेवाली दीर्घावधिक कर्ज और एक साल से कम समय में देय छोटे मियाद वाले कर्ज की देनदारियां शामिल हैं) जून, 2021 के अंत में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का 41.8 फीसदी था. यानी जून, 2022 तक 250 अरब डॉलर के छोटे मियाद वाले कर्ज का भुगतान किया जाना है.

इस बात की संभावना है कि जून, 2022 तक देय होने वाले कुछ लघु आावधिक कर्ज का, अगर उन्हें आगे बढ़ाया जाना संभव न हुआ, भुगतान विदेशी मुद्राभंडार से किया जाएगा. सामान्य तौर पर इस तरह के कई कर्जों को आगे बढ़ा दिया जाता है, लेकिन यूक्रेन संकट के बाद हालात को सामान्य कतई नहीं कहा जा सकता है.

आईएमएफ ने कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को ‘जटिल नीतिगत दुविधाओं’ का सामना करना पड़ सकता है, जो नीतियों का जटिल मकड़जाल खड़ी कर सकती हैं.

एक साफ दुविधा यह है कि अगर विदेशी मोर्चा दबाव में आता है और अनिवार्य आयातों में कमी करने की जरूरत क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है आन पड़ती है, तो भी ऐसा करने की एक सीमा है, क्योंकि गरीब और कमजोर आबादी का ख्याल रखना जरूरी है. श्रीलंका, पेरू, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि में हम यह देख रहे हैं.

कोई भी देश, खासकर जो मध्य आय वाले वर्ग में हैं, वे इससे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं. भारत की बुनियाद बेहतर नजर आती है, लेकिन भुगतान संतुलन की स्थिति पर नजर रखना जरूरी है, जिसमें हर 10-12 साल पर पीछे की ओर फिसलने की प्रवृत्ति होती है.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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श्रीलंका वर्तमान में अपने सबसे भीषण आर्थिक संकट (Sri Lanka Economic Crisis) से जूझ रहा है. संकट के इस समय में भारत सरकार (India’s help to Sri Lanka) यूं तो शुरुआत से ही श्रीलंका के साथ है, पर अब श्रीलंका के विशेष अनुरोध पर भारत सरकार ने ऐसा काम किया है जिससे ना सिर्फ श्रीलंका की डूबती इकोनॉमी को सहारा मिलेगा, बल्कि आम लोगों को भी फायदा होगा.

डॉलर की कमी नहीं करेगी परेशान

श्रीलंका सरकार ने भारत से रुपये को विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) के तौर पर इस्तेमाल करने का आग्रह किया था. भारत सरकार ने इस दरख्वास्त को मान लिया है. इससे श्रीलंका को आर्थिक संकट के समय नकदी की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी. वहीं अपर्याप्त डॉलर भंडार (Dollar Crisis) का जो संकट बना हुआ है, उससे होने वाली परेशानी भी कम होगी.

रुपये (Indian Rupee-INR) को विदेशी मुद्रा के तौर पर मान्यता देने वाले फैसले को भारत सरकार ने कुछ महीने पहले ही स्वीकार कर लिया था. श्रीलंका के केन्द्रीय बैंक का इसे लेकर नोटिफिकेशन जारी करना अभी बाकी है.

आम आदमी को होगा ये फायदा

भारत सरकार के इस फैसले का एक फायदा वहां के आम नागरिकों को भी होगा. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक अब एक आम श्रीलंकाई व्यक्ति 10,000 डॉलर के मूल्य के बराबर तक भारतीय रुपये को अपने पास रख सकेगा. हालांकि भारतीय मुद्रा श्रीलंका में कानूनी तौर पर वैध नहीं है, लेकिन इसे अब एक विदेशी मुद्रा के तौर पर स्वीकार कर लिया जाएगा.

इससे फायदा ये होगा कि आम आदमी को ये फायदा होगा कि वह भारतीय मुद्रा को किसी अन्य मुद्रा के साथ एक्सचेंज कर सकेगा. इसके लिए श्रीलंका के बैंकों को भारतीय बैंकों के साथ एक समझौता करना होगा. इसके आधार पर INR नॉस्ट्रो अकाउंट खुलेगा. ये खाता एक बैंक को दूसरे बैंक में विदेशी मुद्रा रखने की इजाजत देता है.

बैंकों को मिलेगी ये सुविधा भी

इसी के साथ श्रीलंका के बैंकों को सरकार ने एक और सुविधा दी है. अब उनकी विदेशों में स्थित इकाइयां और शाखाएं अप्रवासी लोगों से जमा राशि स्वीकार कर सकेंगी. लंका के निवासी और अप्रवासी लोगों के बीच आयात, निर्यात और रेमिटेंस इत्यादि से जुडे़ सभी मान्य लेनदेन बैंकों के माध्यम से होंगे.

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पिचई ने वैष्णव से कहा- कंपनियों का नवाचार करने में मदद करने के लिए नियामक ढांचा तैयार करें

शेयर बाजार 4 घंटे पहले (19 दिसम्बर 2022 ,16:15)

पिचई ने वैष्णव से कहा- कंपनियों का नवाचार करने में मदद करने के लिए नियामक ढांचा तैयार करें

© Reuters. पिचई ने वैष्णव से कहा- कंपनियों का नवाचार करने में मदद करने के लिए नियामक ढांचा तैयार करें

में स्थिति को सफलतापूर्वक जोड़ा गया:

में स्थिति को सफलतापूर्वक जोड़ा गया:

नई दिल्ली, 19 दिसम्बर (आईएएनएस)। जैसा कि भारत अपने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) बिल को परिष्कृत करता है, अन्य बिलों के साथ जो डिजिटल युग को पूरा करते हैं, अल्फाबेट (NASDAQ: GOOGL ) और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने सोमवार को कहा कि सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह विनियामक ढाँचे का निर्माण करे जो कंपनियों को भूमि के उन स्थानीय कानूनों के ऊपर नवाचार करने में मदद करे।इस बात पर जोर देते हुए कि डिजिटल परिवर्तन के दौरान देश एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है, पिचाई ने खुले और कनेक्टेड इंटरनेट की वकालत की।

उन्होंने यहां गूगल इंडिया के प्रमुख कार्यक्रम में आईटी और दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव की उपस्थिति में कहा, भारत को यहां नेतृत्व की भूमिका निभानी है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आप उन सुरक्षा उपायों को संतुलित कर रहे हैं जो आप लोगों के लिए रख रहे हैं और नवीन ढाँचे बना रहे हैं ताकि कंपनियां कानूनी ढाँचे में निश्चितता के शीर्ष पर नवप्रवर्तन कर सकें।

वैष्णव ने कहा कि सरकार कई तरह के बिलों पर काम कर रही है जो यूजर्स के डेटा को सुरक्षित रखेंगे और नई इंटरनेट अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत कानूनी नियामक ढांचा तैयार करेंगे।

मंत्री ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें एक व्यापक कानूनी नियामक ढांचा बनाने का स्पष्ट लक्ष्य दिया है। पहले हमारे पास दूरसंचार बिल है जो दूरसंचार वाहकों के लिए है। दूसरा डिजिटल सुरक्षा बिल है, जो नागरिकों के निजता अधिकारों को लागू करने पर केंद्रित है। डिजिटल इंडिया बिल व्यावहारिक रूप से बाकी सभी चीजों को देखेगा जिन्हें देखने की जरूरत है।

सरकार का लक्ष्य अगले साल से इन बिलों को लाइव करना है।

पिचाई ने कहा कि अगर आप उस पैमाने को देखें जिस पर तकनीक काम कर रही है और दुनिया भर में इतने सारे जीवन को छू रही है, मेरे लिए यह समझ में आता है कि तकनीक को जिम्मेदार विनियमन की जरूरत है।

उन्होंने श्रोताओं से कहा, मुझे लगता है कि देशों के लिए यह सोचना महत्वपूर्ण है कि अपने नागरिकों की सर्वोत्तम सुरक्षा कैसे की जाए। हम रचनात्मक रूप से जुड़ रहे हैं।

गूगल के सीईओ ने उल्लेख क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है किया, ऐसा कुछ बनाना आसान है जो पूरे देश में फैला हो और यही वह अवसर है जो भारत के पास है। स्टार्टअप करने के लिए कोई बेहतर समय नहीं है, भले ही हम अभी मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिति के माध्यम से काम कर रहे हैं।

वैष्णव ने कहा कि जैसे ही पीडीपी बिल को अंतिम रूप दिया जाएगा, सीमा पार डेटा प्रवाह पर, सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि ²ष्टिकोण डेटा प्रवाह को बाधित किए बिना डेटा सुरक्षा को मजबूत करने पर केंद्रित हो।

आईटी मंत्री ने कहा कि पीडीपी विधेयक को डेटा संरक्षण के संबंध में चिंताओं और शिकायतों के निवारण के लिए इस तरह से तैयार किया जाएगा कि तंत्र समाज के हर वर्ग के लिए सुलभ और प्रभावी हो।

देश / ममता की सांसद महुआ मोइत्रा ने सरकार से पूछा- 'असली पप्पू' कौन है

ममता की सांसद महुआ मोइत्रा ने सरकार से पूछा-

Mahua Moitra Statement: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने आर्थिक संकेतकों और अर्थव्यवस्था को संभालने के सरकार के तौर-तरीकों को लेकर मंगलवार को उस पर निशाना साधा. टीएमसी सांसद ने सवाल किया क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है कि अब ‘असली पप्पू’ कौन है. लोकसभा में 2022-23 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के पहले बैच और 2019-20 के लिए अनुदान की अतिरिक्त मांगों पर सोमवार को अधूरी रही चर्चा को आगे बढ़ाते हुए महुआ मोइत्रा ने कहा, किसी को नीचा दिखाने के लिए ‘पप्पू’ शब्दावली का इस्तेमाल किया गया. आंकड़ों के जरिए पता चलता है कि ‘असली पप्पू’ कौन है?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है एनएसओ) कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने दावा किया कि अक्टूबर महीने में औद्योगिक उत्पादन चार प्रतिशत गिर गया जो 26 महीनों के न्यूनतम स्तर पर है. उन्होंने कहा, विदेशी मुद्रा भंडार में एक साल के भीतर 72 अरब डॉलर की कमी आई है.

उन्होंने कहा, विदेश राज्य मंत्री ने सदन में बताया कि पिछले नौ वर्षों में लाखों लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी. मोइत्रा ने कहा, ऐसा क्यों हो रहा है कि लोग नागरिकता छोड़ रहे हैं. महुआ ने दावा किया, विरोधी दलों के नेताओं को परेशान करने के लिए ईडी को इस्तेमाल किया जा रहा है. यह बताना चाहिए कि ईडी के मामलों में दोषसिद्धि का प्रतिशत क्या है? क्या सिर्फ लोगों को परेशान करने के लिए इस एजेंसी का इस्तेमाल हो रहा है? असली पप्पू कौन है?

उन्होंने सवाल किया, सरकार अतिरिक्त राजस्व, खासकर कर से इतर राजस्व संग्रह के लिए क्या कर रही है? तृणमूल सांसद ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक बयान का उल्लेख करते हुए कहा, हम लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारा यह अधिकार है कि सरकार की अक्षमता को लेकर उससे सवाल करें. यह सरकार का राजधर्म है कि वह जवाब दे. वह ‘खिसियानी बिल्ली’ की तरह व्यवहार नहीं करे.

उन्होंने हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजों और खासकर हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम का हवाला देते हुए कहा, सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष अपना गृह राज्य क्या भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार करना कानूनी है नहीं बचा सके, वहां हार का सामना करना पड़ा. अब ‘असली पप्पू’ कौन है? तृणमूल सदस्य ने कहा कि सरकार वह होनी चाहिए जो ‘मजबूत नैतिकता’, ‘मजबूत कानून व्यवस्था’ और ‘मजबूत अर्थव्यवस्था’ सुनिश्चित करे.

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